चैप्टर—2
अपने राम — अरे! वो जब होगा तब होगा! अभी तो मुझे वह उपन्यास लिखने के लिए जरूरी एनर्जी जुटा लेने दो। क्यों बस्ती बसने से पहले ही उजाड़ने में लगी हो!
सपना ने सोचा कि चलो! इस बार संतोष कर लेती हूं। आगे जो होगा सो देखा जाएगा। अत: वह चाय बनाने किचन में घुस गई। कुछ ही देर में सपना एक ट्रे में चाय—नाश्ता ले आई तो अपने राम खुश हो गए। फिर चाय—नाश्ता करने के बाद जब दोनों का मन शांत हो गया तो अपने राम धीरे से बोले — सपना! मैं जरा बिट्टन मार्केट जा रहा हूं। अभी सुबह मशहूर लेखिका कविता शाह का फोन आया था कि वहां सम्मान मेला लगा हुआ है। जरा देखकर आता हूं माजरा क्या है?
सपना ने उन्हें सम्मान मेले में जाने की अनुमति दे दी।
अपने राम अपनी फटफटी उठाकर सम्मान मेले में जा पहुंचे। वहां मेन गेट से लेकर काफी अंदर तक रौनक ही रौनक दिखाई दे रही थी। भीड़—भाड़ भी अच्छी खासी थी। कुछ बुजुर्ग थे—कुछ बुजुर्गियां! कुछ युवा थे तो कुछ युवतियां! कुछ नन्हे—मुन्ने अपने पापा—मम्मी की अगुली पकड़ कर चल रहे थे तो नन्ही—मुन्नियां इधर—उधर फुदक रही थीं। मेन गेट पर लक्ष्मी के सिक्के बरसाती मूर्ति और सरस्वती जी की मूर्ति किताब पकड़े हुई रखी गई थी। लाउडस्पीकर पर कभी ये ऐलान तो कभी वह ऐलान हो रहा था! कभी गाने बजने लगते तो कभी किसी किताब के चुनिंदा अंश श्रोताओं को तेज आवाज में सुनाए जाते। मेले में किताबों के स्टाल के साथ खाने—पीने के भी ढेरों स्टाल थे। मेले के ठीक बीच में एक मंच बनाया गया था जिस पर लेखक—लेखिकाओं के सम्मान समारोह का आयोजन हो रहा था। मंच के इर्द—गिर्द जमा भीड़ सम्मान पाने वाले लेखक—लेखिकाओं के पक्ष में जमकर नारेबाजी कर रही थी। ये सम्मान स्थानीय विधायक कालू राम तिवारी के हाथों दिलवाए जा रहे थे।
अपने राम मंच के सामने लगी कुर्सी पर जमकर बैठ गए। मंच पर समारोह के आयोजक चंदा मित्तल ने अशफाक कुरैशी का नाम लिया! उन्हें उनके ताजा—तरीन उपन्यास आग का दरिया के लिए नेशनल दरख्ता सम्मान के लिए चुना गया था। अपना नाम आयोजक द्वारा पुकारे जाने पर अशफाक साहब उठे, अकड़ते हुए मंच पर पहुंचे और कालू राम के हाथों बतौर सम्मान एक शॉल, एक सर्टिफिकेट तथा 20 हजार रुपये का चैक ग्रहण किया।
कुरैशी के मंच से उतरते ही आयोजक ने मालविका घोरपड़े का नाम पुकारा। उन्हें रस—मंजरी नाम श्रंगाररस की पुस्तक के लिए सम्मानित किया जा रहा था। मालविका इतराती हुईं मंच पर चढीं और कालू राम से नजरें मिलाते हुए सम्मान ग्रहण किया। कालू राम ने सम्मान देने के बाद उनके कंधे पर धौल जमा दी तो वे और खुश हो गईं और पहले से कहीं अधिक इतराते हुए मंच से नीचे उतरीं। मालविका को बतौर सम्मान 25 हजार रुपये का चैक और एक प्रशस्ति पत्र दिया गया।
इसके बाद कार्यक्रम के आखिर में जमना प्रसाद जलज का नाम पुकारा गया। उन्हें उनके कथा—संग्रह दूर खजूर की छांव में के लिए कथा—सम्राट भरमचंद सम्मान के लिए चुना गया था। जमना प्रसाद मंच पर सीना तान कर चढ़े और दोनों हाथों से सम्मान पत्र के अलावा लक्ष्मी—सरस्वती की दस इंच की प्योर स्टील की मूर्ति और 50 हजार रुपये का चेक थामे हुए नीचे उतरे।
इन सबको देखते—देखते अपने राम भी खुश हो गए और कल्पना करने लगे कि कभी उनका भी ऐसा ही सम्मान होगा। तब सपना गर्व से कह सकेगी कि मैं कितना काबिल हूं। अगर किसी की काबिलियत पर सम्मान का ठप्पा लग जाए तो सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है। यही सब सोचकर वे समारोह खत्म होने के बाद आयोजक बिदकी पांडे के पास पहुंचे। वे मंच के पास खड़े होकर चायपान कर रहे थे।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)