॥श्री सांई बाबा के व्रत की सही विधि ॥
श्री सांईबाबा का यह व्रत बहुत ही चमत्कारिक है। इस व्रत को प्रारंभ करने से पहले एक हथेली के आकार के सफेद चौकोर कपड़े को गीली हल्दी में डुबाकर सुखा लें। गुरूवार को प्रात: या सायं स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहने उसके बाद पूर्व दिशा की ओर कपड़ा बिछाकर एक आसन रखें और उस पर सांईबाबा की मूर्ति या चित्र रखें। अब बाबा को चंदन; कुमकुम और अक्षत लगाकर ताजे फूलों की माला चढाएँ; दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं । इसके बाद पहले से सूखे पीले कपड़े में एक सिक्का रखकर जिस कार्य की सिद्धि के लिए व्रत रख रहे हैं उस कार्य को निर्विध्न पूरा करने के लिए बाबा से सच्चे दिल से प्राथना करते हुए उस सिक्के को कपड़े मे लपेटकर गठान बाँध दें और बाबा के चरणों में रख दें। और मन में अपनी शक्ती के अनुसार 5, 7, 9, 11 या 21 गुरूवार व्रत रखने का प्रण करें। उसके बाद श्री सांईबाबा की मूर्ति या चित्र को प्रणाम करें उसके बाद मूर्ति या चित्र पर फूल की पंखुड़ियाँ अर्पित करते हुए श्री सांई अष्टोत्तर नामावली का पाठ करें। इसके बाद श्री सांईबाबा व्रत कथा के छ: अध्याय पढ़ें और सांईबाबा का ध्यान करें। आरती द्वारा कथा समाप्त करें और प्रसाद के रूप में घर पर बनाई खिचड़ी या मिठाई या फल सबकों बाँटें एवं स्वयं ग्रहण करें।
॥श्री सांई बाबा की अष्टोत्तर नामावली ॥
1 ॐ श्री सांईनाथाय नम:
2 ॐ श्री सांई लक्ष्मी नारायणाय नमः
3 ॐ श्री सांई कृष्णरामशिवमारुत्यादि रूपाय नमः
4 ॐ श्री सांई शेषशायिने नमः
5 ॐ श्री सांई गोदावरीतटशीलधीवासिने नमः
6 ॐ श्री सांई भक्तहृदालयाय नमः
7 ॐ श्री सांई सर्वहृन्निलयाय नमः
8 ॐ श्री सांई भूतावासाय नमः
9 ॐ श्री सांई भूतभविष्यद् भाववर्जिताय नमः
10 ॐ श्री सांई कालातीताय नमः
11 ॐ श्री सांई कालाय नमः
12 ॐ श्री सांई काल-कालाय नमः
13 ॐ श्री सांई कालदर्पदमनाय नमः
14 ॐ श्री सांई मृत्युंजयाय नमः
15 ॐ श्री सांई अमर्त्याय नम:
16 ॐ श्री सांई मर्त्याभयप्रदाय नमः
17 ॐ श्री सांई जीवधाराय नमः
18 ॐ श्री सांई सर्वाधाराय नमः
19 ॐ श्री सांई भक्तावनसमर्थाय नमः
20 ॐ श्री सांई भक्तावनप्रतिज्ञाय नमः
21 ॐ श्री सांई अन्नवस्त्रदाय नमः
22 ॐ श्री सांई आरोग्याक्षेमदाय नमः
23 ॐ श्री सांई धनमाङ्गल्यप्रदाय नमः
24 ॐ श्री सांई ऋद्धिसिद्धिप्रदाय नमः
25 ॐ श्री सांई पुत्रमित्रकलत्रबन्धुदाय नमः
26 ॐ श्री सांई योगक्षेमवहाय नमः
27 ॐ श्री सांई आपद्वान्धवाय नमः
28 ॐ श्री सांई मार्गबन्धवे नमः
29 ॐ श्री सांई भुक्तिमुक्तिस्वर्गापवर्गदाय नमः
30 ॐ श्री सांई प्रियाय नमः
31 ॐ श्री सांई प्रीतिवर्धनाय नमः
32 ॐ श्री सांई अन्तर्यामिणे नमः
33 ॐ श्री सांई सच्चिदात्मने नमः
34 ॐ श्री सांई नित्यानन्दाय नमः
35 ॐ श्री सांई परमसुखदाय नमः
36 ॐ श्री सांई परमेश्वराय नमः
37 ॐ श्री सांई परब्रह्मणे नमः
38 ॐ श्री सांई परमात्मने नमः
39 ॐ श्री सांई ज्ञानस्वरूपिणे नमः
40 ॐ श्री सांई जगतः पित्रे नमः
41 ॐ श्री सांई भक्तानांमातृधातृपितामहाय नमः
42 ॐ श्री सांई भक्ताभयप्रदाय नमः
43 ॐ श्री सांई भक्तपराधीनाय नमः
44 ॐ श्री सांई भक्तानुग्रहकराय नमः
45 ॐ श्री सांई शरणागतवत्सलाय नमः
46 ॐ श्री सांई भक्तिशक्तिप्रदाय नमः
47 ॐ श्री सांई ज्ञानवैराग्यप्रदाय नमः
48 ॐ श्री सांई प्रेमप्रदाय नमः
49 ॐ श्री सांई संशयहृदयदौर्बल्यपाप कर्मवासनाक्षयकराय नमः
50 ॐ श्री सांई हृदयग्रन्थिभेदकाय नमः
51 ॐ श्री सांई कर्मध्वंसिने नमः
52 ॐ श्री सांई शुद्ध-सत्वस्थिताय नमः
53 ॐ श्री सांई गुणातीतगुणात्मने नमः
54 ॐ श्री सांई अनन्तकल्याणगुणाय नमः
55 ॐ श्री सांई अमितपराक्रमाय नमः
56 ॐ श्री सांई जयिने नमः
57 ॐ श्री सांई दुर्धर्षाक्षोभ्याय नमः
58 ॐ श्री सांई अपराजिताय नमः
59 ॐ श्री सांई त्रिलोकेषु अविघातगतये नमः
60 ॐ श्री सांई अशक्यरहिताय नमः
61 ॐ श्री सांई सर्वशक्तिमूर्तये नमः
62 ॐ श्री सांई सुरूपसुन्दराय नमः
63 ॐ श्री सांई सुलोचनाय नमः
64 ॐ श्री सांई बहुरूपविश्वमूर्तये नमः
65 ॐ श्री सांई अरूपाव्यक्ताय नमः
66 ॐ श्री सांई अचिन्त्याय नमः
67 ॐ श्री सांई सूक्ष्माय नमः
68 ॐ श्री सांई सर्वन्तार्यामिणे नमः
69 ॐ श्री सांई मनोवागतीताय नमः
70 ॐ श्री सांई प्रेममूर्तये नमः
71 ॐ श्री सांई सुलभदुर्लभाय नमः
72 ॐ श्री सांई असहायसहायाय नमः
73 ॐ श्री सांई अनाथनाथदीनबंधवे नमः
74 ॐ श्री सांई सर्वभारभृते नमः
75 ॐ श्री सांई अकर्मानेकर्मसुकर्मिणें नमः
76 ॐ श्री सांई पुण्यश्रवणकीर्तनाय नमः
77 ॐ श्री सांई तीर्थाय नमः
78 ॐ श्री सांई वासुदेवाय नमः
79 ॐ श्री सांई सतां गतये नमः
80 ॐ श्री सांई सत्परायणाय नमः
81 ॐ श्री सांई लोकनाथाय नमः
82 ॐ श्री सांई पावनानघाय नमः
83 ॐ श्री सांई अमृतांशवे नमः
84 ॐ श्री सांई भास्करप्रभाय नमः
85 ॐ श्री सांई ब्रह्मचर्यतश्चर्यादिसुव्रताय नमः
86 ॐ श्री सांई सत्यधर्मपरायणाय नमः
87 ॐ श्री सांई सिद्धेश्वराय नमः
88 ॐ श्री सांई सिद्धसंकल्पाय नमः
89 ॐ श्री सांई योगेश्वराय नमः
90 ॐ श्री सांई भगवते नमः
91 ॐ श्री सांई भक्तवत्सलाय नमः
92 ॐ श्री सांई सत्पुरुषाय नमः
93 ॐ श्री सांई पुरुषोत्तमाय नमः
94 ॐ श्री सांई सत्यतत्वबोधकाय नमः
95 ॐ श्री सांई कामादिष्ड़्र्र्र्र्वैरिध्वंसिने नमः
96 ॐ श्री सांई अभेदानन्दानुभवप्रदाय नमः
97 ॐ श्री सांई समसर्वमतसम्मताय नमः
98 ॐ श्री सांई दक्षिणामूर्तये नमः
99 ॐ श्री सांई वेंकटेशरमणाय नमः
100 ॐ श्री सांई अद्भुतानन्दचर्याय नमः
101 ॐ श्री सांई प्रपन्नार्तिहराय नमः
102 ॐ श्री सांई संसारसर्वदु:खक्षयकराय नमः
103 ॐ श्री सांई सर्ववित्सर्वतोमुखाय नमः
104 ॐ श्री सांई सर्वान्तर्बहि:स्थिताय नमः
105 ॐ श्री सांई सर्वमंगलकराय नमः
106 ॐ श्री सांई सर्वाभीष्टप्रदाय नमः
107 ॐ श्री सांई समरससन्मार्गस्थापनाय नमः
108 ॐ श्री सांई समर्थसद्गुरुसाईनाथाय नमः
ॐ सांई ॐ
॥श्री सांई बाबा की व्रत कथा॥
अध्याय 1 – बाबा ने राह दिखाई
श्री साईं बाबा अपने भक्तों का ना केवल ध्यान रखते हैं बल्कि उन्हें सच्ची राह भी दिखाते हैं। सूरत निवासी श्रीमती शीला देवी का प्रसंग ऐसा ही है। श्रीमती शीला देवी अपने पति श्रीनाथ के साथ आनंदपूर्वक रहती थीं। लेकिन समय कब एक सा रहता है। श्रीनाथ को व्यवसाय में लगातार घाटा होने लगा। उनका अच्छा खासा व्यवसाय ठप होने की कगार पर आ गया। कुछ समय बाद तो उनकी दुकानों में ताले पड़ गए। श्रीनाथ खाली बैठे रहने लगे और उनका आचार—व्यवहार भी बेहद आक्रामक हो गया। वे जरा—जरा सी बातों पर ही चिडचिडाने लग गए। शीला देवी धार्मिक प्रवृत्ति वाली महिला थीं। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि ईश्वर इस विपत्ति से निपटने की कोई न कोई राह अवश्य दिखाएंगे। एक दिन वे इसी सोच—विचार में अपने घर में बैठी थीं। तभी द्वार पर दस्तक हुई। उन्होंने देखा कि सामने चेहरे पर अद्भुत तेज वाला एक साधु खडा है और उनसे दान में खिचडी मांग रहा है। शीला देवी ने आदरपूर्वक साधु को बैठाया और तुरंत खिचडी का सामान उसे भेंट किया। साधु महाराज उनकी सेवा दानशीलता तथा भक्ति भाव देखकर बेहद प्रसन्न हुए और शीला को उसके समस्त दुखो को दूर करने के लिए श्री साईं बाबा के गुरुवार को किए जाने वाले व्रत की विधि समझाई। उन्होंने बताया कि सामर्थ्य अनुसार मानकर 5,7,9,11 अथवा 21 गुरुवार तक साईंबाबा का व्रत करने विधि से उद्यापन गरीबों को भोजन कराने से उनकी मनोकामना पूरी होगी। इस व्रत को करते समय झूठ छल आदि बुरी आदतों का त्याग करना उचित रहता है। व्रत पूर्ण होने पर इस चमत्कारिक व्रत के प्रचार और प्रसार के लिए अपने स्नेह जनों को इस व्रत की विधि और कथा के बारे में बतायें।श्री साईं के वचन हैं श्रद्धा और सबूरी। इन्हें ध्यान में रखकर व्रत रखें। इतने आसान से व्रत के बारे में सुनकर श्रीमती शीला बेहद प्रसन्न हो गईं। उन्होंने अगले गुरुवार से श्री साईंबाबा के व्रत का पालन किया। देखते ही देखते उनके पति के स्वभाव में आश्चर्यजनक बदलाव हो गया और उन्होंने फिर से अपना व्यवसाय शुरू कर दिया और उनका कारोबार बेहद प्रगति करने लगा। घर में श्री साईंबाबा की कृपा से सुख—शांति हो गई। ऐसी है श्री साईंबाबा व्रत की महिमा।
बोलो : अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक राजाधिराज योगीराज परब्रह्म श्री सच्चिदानंद सद् गुरु साईं नाथ महाराज की जय।
अध्याय 2 – परेशानियों का निदान
अहमदाबाद निवासी यतीन्द्रनाथ जी के जीवन में श्री साईं बाबा की व्रत कथा से चमत्कारिक बदलाव आया। वे शहर के बड़े व्यवसायियों में से एक थे। उनकी कपडा बनाने की मिलें थीं। जीवन भरा—पूरा था और धन व वैभव की कोई कमी नहीं थी। किंतु काल के प्रकोप से वे भी न बच सके। किसी मामले को लेकर उनकी मिलों में श्रमिकों ने हडताल कर दी और मिलों में तोडफोड भी की। वे जितनी इस समस्या को सुलझाने की कोशिश करते उतने ही उलझते जाते। उनकी चिंताएं और हानि मानो कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। स्थानीय नेताओं के हस्तक्षेप के कारण हडताल और लंबी खिंचती जा रही थी। ऐसे समय में सेठजी के चचेरे भाई राजीवनाथ उनसे मिलने पहुचे। सेठजी की बातें सुनने के बाद राजीवनाथ ने उन्हें भरोसा दिलाते हुए हुए कहा कि वे घबराएं नहीं। बाबा की कृपा से जल्द ही वे सारे कष्टों से मुक्त हो जाएंगे। उन्होंने सेठजी को गुरुवार वाला व्रत करने कहा। उन्होंने बताया कि सेठजी और सेठानीजी दोनों ही इस व्रत को रखें। साईंबाबा की कृपा से उनका कल्याण होगा। सेठ—सेठानी ने जैसे ही व्रत का आरंभ किया वैसे ही उनके अच्छे दिन आने लगे। तीन सप्ताह में ही उनकी बंद मिलें शुरू हो गईं। वे कर्ज मुक्त हो गए । एक वर्ष में उनका व्यापार अत्यंत लाभदायक हो गया। परिवार में सुख, शांति व समृद्धि का वास रहने लगा। ऐसी है श्री साईंबाबा व्रत की महिमा।
बोलो : अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक राजाधिराज योगीराज परब्रह्म श्री सच्चिदानंद सद् गुरु साईं नाथ महाराज की जय।
अध्याय 3 – योग्य वर मिला
बाबा के व्रत से सुमन को व्यक्तिगत जीवन की भीषण कठिनाइयों से छुटकारा पाने में मदद मिली। वह एक मध्यम वर्गीय गृहिणी थी। उसकी पुत्री सुशीला बेहद गुणवान और पढी—लिखी थी और गृह कार्य में दक्ष थी लेकिन जब कभी उसके विवाह की बात आती तो उसका श्याम रंग आड़े आ जाता। फिर सुमन के पति सौरभ की आय भी बेहद कम थी और यह परिवार तंगहाली में अपना गुजर—बसर कर रहा था। लेकिन इस परिवार की एक विशेषता थी कि वह इतनी परेशानियों को ईश्वर की कृपा मानकर झेल रहा था। एक दिन सुशीला अपनी बचपन की सखी मनस्वी से मिलने गई। उसने वहां मनस्वी को को पुस्तक पढ़ते देखा। सुशीला के पूछने पर मनस्वी ने बताया कि हमारी मामी के यहां आज बाबा के सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाले व्रत का उद्यापन था जहां से उसे यह पुस्तक मिली। उस पुस्तक के कुछ पृष्ठ बांचने के बाद सुशीला के मन में भी यह व्रत करने की इच्छा जाग्रत हुई। उसने तत्काल हर गुरुवार को विधिपूर्वक व्रत करने का संकल्प ले लिया। साथ ही उसने अपनी मां को भी साईं बाबा के महात्मय से परिचित कराया। इसके बाद सुशीला ने 21 गुरुवार तक नियम तथा श्रद्धा के साथ श्री साईंबाबा का व्रत किया। व्रत के पूर्ण होने के साथ ही सौरभ को उसके कार्यालय में पदोन्नति मिल गई। उसी दिन शाम को चाचाजी सुशीला के लिए एक सुशिक्षित इंजीनियर लडके का रिश्ता लेकर आए। सुमन को भी वह लड़का सुशीला के लिए अत्यंत योग्य प्रतीत हुआ। सौरभ को सुशीला का आचार—व्यवहार बेहद पसंद आया। सुमन और सौरभ ने लड़के माता—पिता से बातचीत की और तीन माह बाद शुभ मुहूर्त देखकर सुशीला का विवाह अत्यंत सादगीपूर्वक कर दिया। ऐसी है श्री साईंबाबा व्रत की महिमा।
बोलो : अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक राजाधिराज योगीराज परब्रह्म श्री सच्चिदानंद सद् गुरु साईं नाथ महाराज की जय।
अध्याय 4 -उधार की वसूली
राजकुमार जी पटना के छोटे—मोटे जौहरी थे। वे परिवार में पत्नी तथा एक पुत्र के लालन—पालन के दायित्व को पूर्ण सामर्थ्य से निभा रहे थे। उनके बेहद प्रयास करने के उपरांत भी आय अपेक्षित गति से बढ नही पा रही थी। फिर व्यवसाय को चलाए रख्रने के लिए उधार देना भी आवश्यक हो गया था। एक बार उन्होंने एक व्यापारी को पांच लाख रुपये का माल उधार दे दिया। उस व्यापारी की नीयत अच्छी नही थी । वह राजकुमार की उधारी चुकाने में आनाकानी करने लगा। इस उधारी के कारण राजकुमार की परेशानियां बढ़ गईं और व्यवसाय तो व्यवसाय घर का खर्च चलाना भी कठिन हो गया। राजकुमार की रातों की नींद और दिन का चैन खटाई में पड गया। एक दिन राजकुमार अपनी स्थिति के बारे में चिंतन—मनन करते हुए बैठे थे कि तभी उनके मित्र वर्माजी उनसे मिलने आए। वर्माजी ने पूछा मेरे मित्र तुम्हारे चेहरे पर ये चिंता की लकीरें कैसे? ‘ राजकुमार जी ने उनके सामने अपनी चिंता के कारणों का खुलासा किया। तब वर्माजी ने कहा, आप तमाम चिंताओं को छोड़कर साईं बाबा के व्रत का पालन कीजिए। यह व्रत घोर कलियुग में भी अत्यंत फलदायी है। इसके साथ ही वर्मा जी ने उन्हें साईंबाबा व्रत की विधि और कथा के बारे में बताया । राजकुमार जी ने पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ सपत्नीक व्रत आरंभ किया। चौथे गुरुवार को उनसे उधार लेने वाला व्यापारी उनके पास आया और बोला कि उसे अब बेहद लाभ हो रहा है। उसे और माल की आवश्यकता है। साथ ही उसने राजकुमार जी से उधार ली रकम ब्याज समेत चुका दी और इस अदायगी में हुई देरी के लिए क्षमा याचना भी की। साईंबाबा के व्रत का ऐसा चमत्कारी प्रभाव देखकर राजकुमार जी गदगद हो गए। उन्होंने इस स़िद्धिदायक व्रत के और अधिक प्रचार—प्रसार के लिए अपने 101 प्रियजनों को इस व्रत की विधि और कथा के बारे में बताया । ऐसी है श्री साईंबाबा व्रत की महिमा।
बोलो : अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक राजाधिराज योगीराज परब्रह्म श्री सच्चिदानंद सद् गुरु साईं नाथ महाराज की जय।
अध्याय 5 -संतान की प्राप्ति
राजेश और कुणाल यों तो बचपन के मित्र थे लेकिन आजीविका के कारण अलग—अलग शहरों में रहने लग गए थे। राजेश का विवाह सुमंगला से हुआ था। उन दोनों के विवाह को पंद्रह वर्ष हो गए थे किंतु उन्हें संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ था। इस कारण से राजेश और सुमंगला के जीवन में एक सूनापन सा आ गया था। सुमंगला को उसकी सास ताने मारती रहती और ससुर भी उससे उखडे उखडे रहते थे। जब राजेश और सुमंगला पास—पडोस में बच्चों को खेलते देखते तो मन मसोसकर रह जाते और सोचते कि काश! इनके जैसी कोई संतान हमें भी होती। विधि का विधान देखिए। कुछ समय बाद कुणाल का स्थानांतरण राजेश के ही कार्यालय में हो गया। एक दिन राजेश कार्यालय में अपने काम में व्यस्त था कि तभी कुणाल मिठाई का डिब्बा लेकर आया। वह कार्यालय में मिठाई बांटता फिर रहा था। राजेश ने जब उसके इतने प्रसन्न होने के कारण के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसकी पत्नी लक्ष्मी भी पिछले छह वर्षों से संतान नहीं होने के कारण दुखी रहती थी। फिर उसे किसी ने श्री साईं बाबा के चमत्कारी व्रत के बारे में बताया। कुणाल ने अपनी पत्नी के साथ इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ किया। 11 गुरुवार व्रत करने के उपरांत श्री साईं बाबा की कृपा से लक्ष्मी गर्भवती हुई और उसने एक अत्यंत सुंदर तथा स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। यह चमत्कार सुनकर बाद में राजेश ने सुमंगला के मन में भी बाबा का व्रत करने का दृढ़ संकल्प जगाया। बस फिर क्या था? सुमंगला हर गुरुवार को पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत को करने लगी। यथासमय उसने व्रत का उद्यापन किया और 11 लोगों को प्रसाद के साथ इस व्रत की विधि और कथा के बारे में बताया ।जल्द ही सुमंगला की भी गोद भर गई और इस दंपति के सूखे जीवन में फिर बहार आ गई। अपने कुलदीपक को साईं बाबा की कृपा से पाकर पूरा परिवार सुखी—सुखी रहने लगा। ऐसी है श्री साईंबाबा व्रत की महिमा।
बोलो : अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक राजाधिराज योगीराज परब्रह्म श्री सच्चिदानंद सद् गुरु साईं नाथ महाराज की जय।
अध्याय 6 – स्वप्न पूरा हुआ
कुछ समय पहले की बात है। मेरठ में एक चिकित्सक रहती थीं डॉ राजेश्वरी। उनका जीवन कष्टों से भरा था। पति के आसामयिक निधन ने उनकी परेशानियां और बढ़ा दी थीं। राजेश्वरी का एक पुत्र भी था — गौतम। वह यों तो बहुत मेधावी था और विद्यालय में होने वाली तमाम प्रतियोगिताओं में अव्वल रहता था किंतु जैसे—जैसे बड़ा होता गया बुरे दोस्तों की संगति में पड़कर उसका आचरण बिलकुल बदल गया। पढाई से उसका मन उचट गया। वह उपद्रवी और उद्दंड होने लगा। डॉ राजेश्वरी अपने पुत्र की यह दशा देखकर बेहद दुखी रहने लगीं। 10वीं कक्षा तो गौतम ने जैसे—तैसे उत्तीर्ण कर ली किंतु 11वीं कक्षा में आते—आते वह अधिकतर विषयों में अनुत्तीर्ण होने लगा। डॉ राजेश्वरी उसे एक प्रतिष्ठित चिकित्सक बनाना चाहती थीं किंतु उन्हें अब अपना यह सपना बिखरता सा लग रहा था। एक दिन वे उदास बैठी थीं। तभी उनकी पुरानी मित्र डॉ गीता आई। डॉ गीता ने उनसे कहा कि चिंता मत करो। बाबा बैठे हैं वे तुम्हारा कल्याण करेंगे। उनकी कृपा से तुम्हारा स्वप्न अवश्य पूर्ण होगा। तुम विश्वासपूर्वक श्री साईंबाबा के व्रत का पालन करो। डॉ राजेश्वरी ने जल्द ही श्री साईंबाबा के व्रत का पालन शुरू कर दिया। छह गुरुवार तक नियम पूर्वक व्रत का पालन करने के बाद उन्होंने सातवें गुरुवार को इस व्रत का उद्यापन श्रद्धा भक्ति और हर्षोल्लास के वातावरण में किया। गरीबों को यथा सामर्थ्य रुचिकर भोजन कराया तथा अपने स्नेह जनों को इस व्रत की विधि और कथा के बारे में बताया ।इसके बाद उन पर बाबा की ऐसी कृपा हुई कि उनके प़ुत्र को सदबुद्धिआ गई और उसने कुसंगत को त्याग दिया। वह पढाई मंल अथक श्रम करने लगा। उस वर्ष उसने न केवल अपने विद्यालय में बल्कि पीएमटी की प्रदेश की प्रावीण्य सूची में भी प्रथम स्थान हासिल किया। उसे अच्छे चिकित्सा महाविद्यालय में प्रवेश मिल गया। डॉ राजेश्वरी उसकी प्रगतिदेखकर आश्चर्यचकित रह गईं और अपने प्रियजनों में साईं बाबा के व्रत की महिमा के प्रचार—प्रसार में जुट गईं। ऐसी है श्री साईंबाबा व्रत की महिमा।
बोलो : अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक राजाधिराज योगीराज परब्रह्म श्री सच्चिदानंद सद् गुरु साईं नाथ महाराज की जय।
॥श्री सांई बाबा की आरती॥
आरती श्री साई गुरुवर की परमानन्द सदा सुरवर की
आरती श्री साई गुरुवर की परमानन्द सदा सुरवर की
जाके कृपा विपुल सुख कारी दुःख शोक संकट भ्ररहारी
शिर्डी में अवतार रचाया चमत्कार से जग हर्षाया
कितने भक्त शरण में आए सब सुख़ शांति चिरन्तर पाए
आरती श्री साई गुरुवर की परमानन्द सदा सुरवर की
आरती श्री साई गुरुवर की परमानन्द सदा सुरवर की
भाव धरे जो मन मैं जैसा पावत अनुभव वो ही वैसा
गुरु की उदी लगावे तन को समाधान लाभत उस मन को
साईं नाम सदा जो गावे सो फल जग में साश्वत पावे
आरती श्री साई गुरुवर की परमानन्द सदा सुरवर की
आरती श्री साई गुरुवर की परमानन्द सदा सुरवर की
गुरुवार सदा करी पूजा सेवा उस पर कृपा करत गुरु देवा
राम कृष्ण हनुमान रूप में जानत जो श्रधा धर मन में
विविध धरम के सेवक आते दर्शनकर इचित फल पाते
आरती श्री साई गुरुवर की परमानन्द सदा सुरवर की
आरती श्री साई गुरुवर की परमानन्द सदा सुरवर की
साईं बाबा की जय जय बोलो अंतर्मन में आनंद घोलो
साईं बाबा की जय बोलो अंतर्मन में आनंद घोलो
साईं दास आरती गावे बसी घर में सुख मंगल पावे
आरती श्रीं साईं गुरुवर की परमानंद सदा सुरवर की
आरती श्रीं साईं गुरुवर की परमानंद सदा सुरवर की
॥श्री सांई बाबा के पद॥
साईं रहम नजर करना, बच्चों का पालन करना||
जाना तुमने जगत्पसारा, सब ही झूठ जमाना||
मैं अंधा हूँ बंदा आपका, मुझको प्रभु दिखलाना||
दास गुण कहे अब क्या बोलूं, थक गई मेरी रसना||
रहम नज़र करो अब मोरे साईं| तुम बिन नहीं मुझे माँ बाप भाई||
मैं अंधा हूँ बंदा तुम्हारा| मैं ना जानूं अल्लाइलाही||
खाली जमाना मैंने गमाया| साथी आखर का किया न कोई||
अपने मशिद का झाड़ू गणूं है| मालिक हमारे, तुम बाबा साईं||
॥श्री सांई बाबा के ग्यारह वचन॥
जो शिरडी में जाएगा । आपदा दूर भगाएगा ।।
चढे समाधी की सीढ़ी पर । पैर तले दुःख की पीढ़ी पर ।।
त्याग शरीर चला जाऊँगा । भक्त हेतु दौड़ा आऊँगा ।।
मन में रखना दृढ़ विश्वास । करे समाधी पूरी आस ।।
मुझे सदा जीवित ही जानो । अनुभव करो सत्य पहचानो।।
मेरी शरण आ खली जाये, हो तो कोई मुझे बताये ।
जैसा भाव रहा जिस जन का । वैसा रूप हुआ मेरे मन का ।।
भार तुम्हारा मुझ पर होगा । वचन न मेरा झूठा होगा ।।
आ सहायता लो भरपूर । जो माँगा वह नहीं है दूर ।।
मुझमें लीन वचन मन काया । उस का ऋण न कभी चुकाया ।।
धन्य धन्य व भक्त अनन्य । मेरी शरण तज जिसे न अन्य ।।
॥श्री साईं बाबा का भोग॥
भोग लगाओ साईं बाबा रे मेरा प्रेम भरा थाल
प्रीति के पकवान बनाये भाव भरे भोजन मैंने अपने हाथों से
कहो तो मंगाऊँ ताजा मेवा बर्फी पेड़ा पकवान रे मेरा प्रेम भरा थाल
गंगा यमुना के नीर लाऊं प्रेम से पान कराऊँ
भोग लगाओ साईं बाबा रे मेरा प्रेम भरा थाल
शबरी सुदामा और विदुर की भाजी ऐसी तृप्ति कर लेना मेरे सांईबाबा
भोग लगाओ सांईबाबा रे मेरा प्रेम भरा थाल
लौंग सुपारी भरे पान के बीड़े मुखवास करो मेरे साईं बाबा रे मेरा प्रेम भरा थाल!
भक्तों के साईं प्यारे तेरी हो जय-जयकार भोग लगाओ साईं बाबा रे मेरा प्रेम भरा थाल।
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