रचनाकार उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम “, लखनऊ
मेरे पाठक मित्रो! मै आप सबके समक्ष ये बात रखना चाहता हूँ । मेरी ये रचना केवल एक रचना ही नही है ये परम दिव्य स्तुति है शिव जी की । मै आप सबसे ये प्रतिज्ञा करता हूँ जो भी व्यक्ति इस स्तुति से प्रतिदिन शिव जी की सायंकाल आरती करेगा उसके सभी कष्टों का निवारण अवश्य हो जायेगा । इस स्तुति को लिखने के बाद मै स्वयं शिव जी को सुनाता हूँ जिससे मुझे परम शांति एवं मेरे कुछ कार्य सिध्द हुए है ।
शिव स्तुति
हे रुद्र देव हे महाकाल
हे अवघड़ दानी सन्यासी
हे आशुतोष कल्याण करो अब
तुमसा नही है कोई दानी ।।
मै भटक रहा हूँ दर दर
अपनी व्यथा लिये हुए
अब तो कुछ कल्याण करो
हे शिव हे अवढर दानी ।।
तुम जगत गुरु तुम अविनाशी
तुम कैलासपति शिव शंभू हो
तुम शशिशेखर महेश्वर् हो
तुम शूलपाणि तुम गंगाधर हो ।।
तुम शितिकंठ तुम शिवाप्रिय
तुम उग्र महा कपाली हो
अब तो कृपा करो मुझ पर
तुम कवची जटाधरी हो ।।
तुम अनीश्वर तुम विश्वेश्वर
तुम गिरीश तुम गिरिश्वर हो
तुम खण्डपरशु तुम अज हो
तुमही नाथ दिगंबर हो ।।
अब आया हूँ द्वार तेरे
कर जोरे हे नाथ प्रभो
दुःख हर हर सुख कर
हे पाशविमोचन नाथ प्रभो ।।
उत्तम की करुण व्यथा सुन लो
कुछ तो मेरे ऊपर उपकार करो
अब जाऊँ कहाँ दर से तेरे
हे अष्टमूर्ति हे मृगपाणी प्रभो ।।
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बरखा की बूँदे गिरने लगी
झूलसी हुई दूब मे
हरयाली आ गई
पानी की बूँद क्या गिरी
जवानी आ गई ।
खिल गई कलिया
अपनी जवानी लिए
बेफिक्र होते मचलते
भवरे भी आ गये ।।
मौसम ने ली अंगड़ाई
तो फिजा मे मस्ती छा गई
देखते देखते हर ओर
हरियाली छा गई ।
तरुवर पर पल्लव नए आ गये
खुशबुओ से भरे पेड़ो पर फल आ गये
ये मौसम भी क्या सुहाना हो चला
मौज मस्ती करने के दिन आ गये ।।
नवयौवना भी इठलाती हुई आ गई
पिय के नाम की मेंहदी लगाने आ गई
सज गई करके सोलह श्रृंगार
पिय आये तो कज़री सोहर गाने आ गई ।।
बरखा की बूँदे गिरती गई
कोयल भी अपने गीत सुनाती गई ।।
नभ मे श्यामल घटा घिरने लगी
रिमझिम फुहारे बरसने आ गई ।।
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आकाश के बादल
दिख रहे आकाश मे
उड़ते हुए बादल
नीर से गागर भरे
दिख रहे बादल ।।
छलका रहे वो नीर को
आकाश के बादल
धरा को तृप्त कर रहे
आकाश के बादल ।।
कर रहे मौसम सुहाना
हरित पल्लव हो रहे
नव सृजन कर रहे
आकाश के बादल ।।
ऋतू सुहानी आ गई
खिल रही कलिया सभी
बरखा रानी आ गई
लेके बदली मनचली ।।
उन्मुक्त नभ से गिर रहा
आकाश से पानी
जल सरोवर को भर रहा
आकाश का पानी ।।
खामोश हलचल कर रहे
आकाश मे बादल
सप्त रंगो से सजाता
आकाश मे बादल ।।
लग रहा झोका पवन का
सिहर उठते है ये बादल
उड़ रहे उन्मुक्त हो कर
आकाश मे बादल ।।
मन मयूरी हो रहा
देख कर बादल
उत्तम कविता लिख रहे
आ गये बादल ।।
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परिदृश्य
ये घास फूस की बनी झोपड़ियाँ
फूलो से लदी हुई गाँव की गलियाँ
कच्चे गलियारों मे बरसता हुआ पानी
हरी हरी घास पर खेलती हुई बच्चियाँ।।
मह मोहती खिली हुई फूलों की कलियाँ
रंग बिरंगी उड़ती हुई तितलियाँ
बरखा की गिरी हुई पत्तों पर बूँदे
लगती है जैसे पत्तों पर जडी मोतियाँ।।
घिरी हुई घटा की काली आँधियारिया
बरसता है बादल कड़कती है बिजलियाँ
जलाशय मे भरे हुए बरखा के जल मे
झुंडो मे जलमुर्गीया करती है अठखेलियाँ।।
फूलो की सुगंध से भर गई है फुलवारियाँ
बेला चम्पा चमेली की खिलती कलियाँ
गेंदा गुलाब गुलखैरा से लदी झुकी डालियाँ
परिदृश्य स्वर्ग से सुन्दर लगती है ये गलियाँ।
फूलो की डाली पर बैठी हुई चिड़ियाँ
झूलती है झूला कलरव करती है चिड़ियाँ
गाती है गाना सुनाती है तराने
कितनी सुन्दर है सावन मे गाँवो की गलियाँ ।।
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किनारे
ये नदिया ये समंदर
ये दिलकश नज़ारे
ये लहरों का उठना
पवन के सहारे ।।
मिलना वही पर
नदिया किनारे
लिखेंगे बैठ कर
अपने फ़साने ।।
कंधे पर मेरे अपने
सिर को टिकाएं
करोगी बाते नदिया किनारे
खाओगी कसमे
मोहब्बत की अपने
यही बैठ कर नदिया किनारे ।।
बहती रहो तुम
चंचल सी नदिया
मंजिल तुम्हारी है
समुन्दर मे मिलना ।।
नदी के किनारे पे
बैठी हुई तुम
पाँवो से पानी को
छप छप से करना
तेरे पायल की बोली
छम छम ये सुनना
मै बैठा रहूँगा
नदिया किनारे ।।