चैप्टर -2
प्रोफेसर रणविजय- जब से आपका मीटिंग के बारे में संदेश मिला है, हम यही कयास लगा रहे हैं कि सर ने आज अचानक हमें क्यों मीटिंग के लिए बुला लिया?
प्रिंसिपल रिछारिया – डरिए नहीं। ऐसा कुछ नहीं होने वाला। आपको तो मालूम है कि यह कालेज मेरे दिवंगत भाई की स्मृति में खोला गया है। वह दो साल पहले ठीक 26 जनवरी को कश्मीर में हुए एक आतंकी हमले में बहादुरी दिखाता हुआ शहीद हुआ था। उसने लाल चौक पर फहरा रहे तिरंगे के आसपास भीषण बम विस्फोट की आतंकी साजिश को विफल किया था। उसका साहस और हिम्मत देखकर आतंकियों का कई दिनों तक हौसला पस्त रहा था और उनकी कोई वारदात करने की हिम्मत नहीं पड़ी थी। उनकी कुर्बानी हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है!
यह कहते ही उनकी आंखों में आंसू आ गए। इन आंसुओं को उन्होंने रोकने की भरसक कोशिश की पर एक-दो आंसू उनके गाल पर लुढ़क ही आए।
उनकी यह स्थिति देखकर प्रोफेसर रंजना बोलीं- सर! राजकिरण की शहादत को हम भी नहीं भूले हैं। उन्होंने अपनी जान देकर करीब 20 नागरिकों की जान बचाई थी। आप धीरज रखिए। इसी से उस शहीद की आत्मा को शांति मिलेगी।
हां सर! आप धीरज रखेंगे तो हमें भी संबल मिलेगा। हम आपके साथ हें। -कई स्टाफ मेंबर एक साथ बोल उठे।
ये बातें सुनकर प्रिंसिपल के दिल को काफी सुकून मिला। उन्होंने वातावरण संयत करने के लिए जसराज ने कॉफी मंगवाई और फिर भर्राए गले से बोले – तो मेरे भाई की शहादत की स्मृति में खुले इस कालेज का एक मकसद है। यह मकसद है लोगों के दिलों में देशप्रेम की भावना जगाना। अब आप लोग अपने-अपने सुझाव दीजिए कि हम लोग राष्ट्रीय महत्व के पर्वों जैसे -26 जनवरी, 15 अगस्त व गाँधी जयंती पर देश प्रेम की भावना सबमें कैसे जगाएं?
प्रोफेसर रंजना – इसमें क्या है? हर बार की तरह देश भक्ति वाले गाने जोर-जोर से बजाने चाहिए । कालेज में तिरंगा झंडा फहराना चाहिए और चाय-नाश्ते का बढ़िया इंतजाम करना चाहिए ।
प्रिंसिपल रिछारिया – नहीं, यह तो बरसों से हो रहा है। कुछ नया सोचिए न!
असिस्टेंट प्रोफेसर रत्ना वर्गीज – हमें ऐसा करना चाहिए कि जब कालेज में तिरंगा झंडा फहराया जाए तब हम ग्राउंड में एक बड़ा एलसीडी टीवी लगाकर लोगों को देशभक्ति वाली पिक्चर दिखाएं।
प्रिंसिपल रिछारिया – चलो टीवी पर देशभक्ति की फिल्म दिखा देंगे लेकिन लोगों के दिल में हर दिन देश प्रेम की भावना की ज्योति कैसे निरंतर जलती रहे, इसके लिए हमें और कुछ सोचना होगा।
प्रोफेसर जावेद अंसारी – हमें वतनपरस्ती वाली गजलों का प्रोग्राम रखना चाहिए।उसमें शहर के मशहूर शायरों को बुलाना चाहिए । तीन-चार से मेरी जान-पहचान है। तीन-चार को और तलाश लेंगे। पब्लिक को भी मजा आ जाएगा और वतनपरस्ती का पैगाम भी सब तक पहुंच जाएगा।
प्रिंसिपल रिछारिया – आपका खयाल अच्छा तो है। पर जितना बड़ा शायर उसके लिए उतने बड़े दाम! अभी अपने पास ज्यादा बजट नहीं है। फिर सबको बुलाने इनवाइटेशन कार्ड छपवाने आदि का खर्च अलग से होगा। हम और कुछ नहीं सोच सकते?
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)