आखिरी चैप्टर
प्रिंसिपल रिछारिया – आपका खयाल अच्छा तो है। पर जितना बड़ा शायर उसके लिए उतने बड़े दाम! अभी अपने पास ज्यादा बजट नहीं है। फिर सबको बुलाने इनवाइटेशन कार्ड छपवाने आदि का खर्च अलग से होगा। हम और कुछ नहीं सोच सकते?
असिस्टेंट प्रोफेसर सतविंदर सिंह गिल ये सब बातें सुनकर मन ही मन काफी बैचेन हो रहे थे। उन्हें लग रहा था कि प्रिंसिपल साहब को किसी का कोई भी सुझाव पसंद नहीं आ रहा है। लेकिन उनके दिमाग में एक खयाल बड़ी देर से कुलबुला रहा था और वे उस पर प्रिंसिपल सर की राय लेने के लिए बैचेन थे। अतः जैसे ही अंसारी की बात पर प्रिंसिपल का राय जताना खत्म हुआ, वे पूरे आत्मविश्वास के साथ बोले- अजी! ये सब तौर-तरीके तो पुराणे हैं। हमें कालेज के बच्चों नूं ऐतिहासिक इमारतों पर पिकनिक मनाने ले जाना चाहिए। इससे बच्चों दी नालेज भी बढ़ेगी और देश भक्ति की गल्ल भी उनके दमाग में बैठ जाएगी।
प्रिंसिपल रिछारिया – अब मैं कुछ कहूं? दरअसल, मैं चाहता था कि ये त्योहार देश के त्यौहार हैं , 26 जनवरी को अपना संविधान पूरे देश में लागू हुआ था। देश को संचालित करने वाले नियम प्रभावी हुए थे। अंग्रेजों की गुलामी से असली आजादी मिली थी और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के प्रयास रंग लाए थे। अपना विधान अपना संविधान! 15 अगस्त को देश को दो सदियों की गुलामी से आज़ादी मिली थी। 2 अक्टूबर को राष्ट्र पिता कहे जाने वाले जान नायक महात्मा गांधी का जन्मदिन होता है। मैंने देखा है कि हमलोग सामान्यतः इन तीनों दिनों को मौज-मस्ती और छुट्टी-छपाटी मनाने के तौर पर लेते हैं। इनकी मूल भावना से दूर हो जाते हैं। जबकि ये दिन वास्तव में जनता के त्योहार के रूप में मनाए जाने की जरूरत है। यह नहीं कि बस परेड देख ली, फिर पूरा दिन घूमने-फिरने पिकनिक मनाने में बर्बाद कर दिया! देशभक्ति की भावना को न तो हमें मनोरंजन का साधन बनाना चाहिए और न ही इसकी आड़ में अपना बिजनेस करना चाहिए। मेरा मानना तो यह है कि हमें इन राष्ट्रीय त्योहारों के पीछे निहित भावना को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उतारना चाहिए। हमें अपने कामों, आचार-व्यवहार आदि को देश को समर्पित करते हुए देशभक्ति की भावना को अधिकाधिक फैलाने का प्रयास करना चाहिए। तभी हम भारत माता के सच्चे सपूत कहला सकेंगे।
यह सुनकर तमाम स्टाफ सिर झुकाए हुए एक स्वर में बोले – सर! आप ही बताइए न कि कैसे इन तीनों दिनों को अनूठे और जनता के त्योहार के रूप में मनाया जाए?
प्रिंसिपल रिछारिया – मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि इन त्योहारों को ठीक वैसे ही मनाया जाना चाहिए जैसे कि कोई हिंदू दीपावली मनाता है, कोई मुस्लिम ईद मनाता है, कोई ईसाई क्रिसमस मनाता है और कोई सिख गुरु परब मनाता है। हमें इन्हें अपना त्योहार समझकर देश के लिए अपना अधिकतम योगदान करने के बारे में विचार करना चाहिए। हमें यह भी देखना चाहिए हमारी जो भी ड्यूटी है उसे हम कितनी शिद्दत के साथ पूरा कर रहे हैं। क्या हमारे कार्यों से देश और उसके लोगों का भला होने वाला है, इन सब बातों पर जरूर विचार करना चाहिए। जो विधि-विधान हमारे लिए बनाए गए हैं, कहीं हम उनका पालन करने में कोई चूक तो नहीं कर रहे हैं। ये मेरे विचार नहीं हैं। ये दरअसल, मेरे शहीद भाई के विचार हैं। उसने दो बरस पहले कश्मीर में मुठभेड़ में शहीद होने से कुछ दिन पूर्व मुझसे ये विचार शेयर किए थे।
इस पर सभी स्टाफ मेंबर बोल उठे – हम शहीद राजकिरण के विचारों से बेहद प्रभावित हैं। हम उसी के दिखाए मार्ग पर चलकर इस बार से इन त्यौहारों को मनाएंगे! इसी रास्ते पर चलकर हम हर दिल में हर दिन राष्ट्र ज्योति जगा सकेंगे!
(काल्पनिक कहानी)