पंकज शर्मा “तरुण “, जिला मंदसौर (म. प्र.)
बात कई साल पुरानी है, कुछ युवा आपस में शमशान में भूत रहते हैं, पर चर्चा कर रहे थे ।रमेश का कहना था कि अक्सर मैं जब खेतों में रात को निगरानी पर जाता हूं ,तो अपने खेत से कुछ दूरी पर श्मशान में मैने रात बारह बजे आग की ऊंची लपटें अचानक लगते देखी है! जिसकी ऊंचाई पांच, दस फीट ऊंची होती हैं,कुछ देर में फिर अचानक से शांत हो जाती है!
तो किशन लाल रमेश से सहमत नहीं था।किशन ने कहा यह बिल्कुल झूठ है ऐसा तभी होता होगा जब कोई शव दाह होता होगा।इसी बहस में यह भी निकल कर आया कि यह अक्सर अमावस पूर्णिमा या ग्यारस के दिनों में होता है।
किशन लाल ने कहा कि मैं भूत प्रेत में कतई विश्वास नहीं करता।इस पर रमेश ने कहा कि ऐसा है तो अमावस की रात को बारह बजे जहां शव दाह होता है, उस स्थान में बीचों बीच कीला गाड़ कर आ सकते हो ?यदि सफल हो गए तो सौ रुपए दूंगा और असफल हुए तो दोगुना रुपया यानी दो सौ रुपए लूंगा।शर्त तय हो गई।
दूसरे ही दिन अमावस की रात्रि थी।किशन लाल हिम्मत कर के श्मशान में गया और कीला गाड़ने लगा, गाड़ने के बाद जैसे ही चलने के लिए मुड़ा नीचे गिर पड़ा उसे लगा कि भूत ने उसका पांव पकड़ लिया है।
सुबह जब गांव वाले श्मशान में गए और देखा किशन लाल का शव औंधे मुंह पड़ा था ठंड से कड़क हो गया था।गांव वालों ने देखा किशन लाल की धोती का नीचे का हिस्सा उस कीले में ठोकते समय फंस गया था।इसीलिए किशनलाल की दहशत से मृत्यु हुई।
अफसोस शर्त मौत में तब्दील हो गई।
(काल्पनिक रचना)
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