रचनाकार : राजेन्द्र कुमार पाण्डेय “राज” , बिलासपुर,छत्तीसगढ़
शमा पिघलते रहे
मोहब्बत के परवाने जलते रहे
तेरे ख़्याल के दीप सदा जलते रहे
चमकते चांद की रौशनी फीकी लगे
जब तेरे हुस्न के काजल सजते रहे
ख़्वाबों में तेरा चेहरा सजा हर रात,
हम अधूरी दुआओं में बसते रहे।
दिल की धड़कन भी तेरा नाम पुकारे,
साँसों के तराने तुझसे बंधते रहे
गुलों की ख़ुशबू भी तेरे पास मुरझाए
जैसे पतंगें दीये पर गिरते रहे
तेरी हर बात थी जैसे एक हकीकत
जिसे ख्वाबों में हर रोज़ बुनते रहे
आँखों में चमक और दिल में आग है
तेरी यादों के शोले मचलते रहे
हमारी मोहब्बत में दर्द का सागर
और तूफान में भी कश्ती तैरते रहे
तू पास नहीं फिर भी हर जगह
तेरे एहसास से लम्हे सजते रहे
हर आहट पे तेरा साया नज़र आए
हम बस तेरे इंतजार में चलते रहे
तेरे बिना ये ज़िंदगी अधूरी लगे
सपने बिखरते और हम सँभलते रहे
मोहब्बत का ये सफ़र कभी खत्म न हो
दर्द भी अपने संग संग चलते रहे
दिल की किताब में तेरा नाम लिखा
और पन्ने मोहब्बत से भरते रहे
आसमां के तारे भी तेरी गवाही दें
हम चाँदनी रातों में तुझसे मिलते रहे
तेरे बिन है अधूरी ये पूरी कहानी
फिर भी तेरे ख्यालों में डूबते रहे
मोहब्बत के परवाने जलते रहे,
तेरी यादें होंठों पर प्यास लिखते रहे
^^^^^^^^^^^^^^^^^
मन के मीत
मेरे मन के मीत
मेरे मन की थी कल्पना
कोई भोली भाली अल्पना
आती है मुझे बार बार सपना
बाहों में भरकर उसको बना लूँ अपना
मेरे मन के मीत
मुझे तुम बहुत याद आते हो
सपनों में क्यूँ सताया करते हो
रोज रोज मिलने का वादा करते हो
अपना वादा रोज तोड़कर मुझे रुलाते हो
मेरे मन के मीत
जब तुमसे मेरा नेह हुआ है
मन मेरे वश में नहीं तेरा हो गया है
तुम बिन मेरी कोई खुशियां नहीं है
याद आते ही मेरी आँखें भर आती है
मेरे मन के मीत
तुम मेरे जीवन की संगिनी हो
हे प्रिय मेरे नैनों में तुम समाए हो
इसलिये बारम्बार मेरी नींद उड़ाते हो
मन मे बसे मनमीत तुम बहुत याद आते हो
No Comment! Be the first one.