रचनाकार : सुशीला तिवारी, पश्चिम गांव, रायबरेली
मई ,जून का महीना था ,,,
चिलचिलाती हुई धूप से पशु पक्षी मानव प्रकृति सब परेशान से हो जाते हैं।
उस पर भी शादी-ब्याह के निमंत्रण में जाना अपने आप में बड़ा कष्टदायक होता है ,फिर भी मजबूरन जाना ही पड़ता है,कुछ रिश्तों में जो ज्यादातर खास होते हैं ,उनमें पहुँचना जरूरी हो जाता है।
ऐसे ही अनिकेत के अपने दोस्त ने शादी में निमन्त्रण दिया था बारात चलने के लिए ,,,
अब मरता क्या न करता, दोस्ती का मामला था।
मन न हो फिर भी जाना ही पड़ेगा आखिर दोस्त जो है, कहीं नाराज हो गया तो दोस्ती बिखर जायेगी।
बड़ी मुश्किल से आजकल अच्छे दोस्त मिलते हैं, कुछ तो दोस्ती के नाम को कलंकित करते हैं।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए बारात जाने का प्रोग्राम बनाया, एक दूसरे दोस्त को तैयार किया कहा कि चलो मोटर साइकिल से चलते हैं। चूँकि बारात गाँव से थोड़ी दूर ही दूसरे गाँव में जानी थी, दूर जाना होता तो मोटर साइकिल से जाना सम्भव नही था, रात में लौट कर आना भी था क्योंकि जिस दोस्त को तैयार किया था वो अभी पढ़ाई कर रहा था ,सो उसे स्कूल जाना था ।
और अनिकेत को रोजी रोटी कमाने के लिए लखनऊ जाना था, वो वहीं रहता था। सप्ताह में एक दिन की छुट्टी मिलती थी ,शनिवार की शाम आना होता और रविवार छुट्टी होती थी। सोमवार को वापस जाना होता था।
इत्तेफाक से दोस्त की बारात का दिन रविवार था, इसलिए प्रोग्राम बन गया ।
रविवार का पूरा दिन बीत गया शाम हो गई ,अब बारात जाने की तैयारी जोर शोर से शुरू हो गई।
सजनें संवरने की प्रकिया देखकर तो ऐसा लगा जैसै खुद की शादी में जा रहे हैं।
बाप रे ! कपडों को जैसै कूड़ा बना दिया ,पूरे कमरे में जिधर देखो कपड़े ही कपड़े फैले हुए थे, कुछ पसंद ही नही आ रहा था।
इतने में दूसरा दोस्त आ गया अपनी गाड़ी लेकर आवाज लगाई, चलना नही है क्या आखिर कितनी देर लगाओगे
अभी तक तैयार नही हुए, मैं तैयार होकर आ गया?
अनिकेत ने उसकी आवाज सुन कर बोला तैयार हो गया आ रहा हूँ काफी देर तक इन्तजार के बाद जब बाहर नही निकला ।अनिकेत तो दोस्त अंदर चला गया ,अंदर का नजारा देखकर
दग रह गया।
उफ्फ! इतने कपड़े फैलाकर रख दिये ,चलो जो पहन लिया ठीक है आखिरकार तुम्हारी शादी नही है तुम्हारे दोस्त की बारात है ।
पर तेरा सजना संवरना ठीक है शायद कोई लड़की पसंद कर ले ,अनिकेत उसकी बातें सुनकर झेंपकर बगलें झांकने लगा।
अब दोनो दोस्त परफ्यूम वगैरह छिड़क कर पूरी तरह से तैयार होकर मोटर साइकिल से सीधे बारात स्थल पर पहुँचने का विचार बनाकर निकल पड़े ।
सूरज अपनी लालिमा समेंट कर पूरी तरह से बादलों की गोद में समा चुका था ,आसमान में सितारे निकल कर झांक रहे थे
अंधकार अपने पूरे जोश के साथ अपना प्रभाव फैला चुका था।
अनिकेत और उसका साथी अपनी धुन मे चले जा रहे थे।
कुछ देर में पूछते हुए बारात स्थल पर पहुँच गए ।
जिस दोस्त की बारात थी उससे मुलाकात कर बधाई दी।
फिर कहा,,,
क्रमश ,,,,
2 Comments
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बहुत ही सुंदर 👌
Bahut hi Jabardast kahani