( विशेष संदर्भ : दक्षिण कोरिया )
रचनाकार: दिविक रमेश, नोएडा
मैं गांधी (गांधी), थागोर (टैगोर) और इंडो जैसे कुछ ही शब्द सुन या समझ सका। मैं विस्तार से जानने को बहुत उत्सुक था. मेरे छात्र ने बताया कि वह पुष्टि करना चाहता था कि क्या मैं भारतीय (इंडो) हूं और जब उसने पुष्टि करने के लिए हां कहा, तो लड़के ने तीन शब्द बोले – बुल (बुद्ध), गांधी (गांधी) और थागोर (टैगोर)। सकारात्मक उत्तर मिलने पर उन्होंने टैगोर की 4 पंक्तियों की कविता ‘द लैंप ऑफ द ईस्ट’ का अनुवाद सुनाया, जो उनके स्कूल की पाठ्यपुस्तक में निर्धारित थी।वह टैगोर के देश के एक भारतीय से मिलकर बहुत खुश था। मैं दंग रह गया। जब मेरे छात्र ने मुझे कविता का सार अंग्रेजी में बताया तो मैंने कविता के बारे में कभी नहीं सुना था।अंग्रेजी में कविता इस प्रकार थी:
In the Golden age of Asia
Korea was one of its lamp-bearers
And the lamp is waiting to be lightened once again
For the illumination of the East.
वस्तुतः कोरिया में भारत की विशिष्ट पहचान प्रायः बुद्ध, गाँधी और टैगोर के देश के रूप में होती आई है। बौद्ध धर्म तो एक समय में कोरिया का राजधर्म भी रहा है। 1929 में, अर्थात जापान के पराधीन कोरिया के समय में टैगोर द्वारा लिखित, पहले उद्धृत कवितानुमा पंक्तियाँ ‘पूर्व का दीप’ कोरिया के बच्चे-बच्चे की जबान पर है जिन्हें उन्होंने जापान में रह रहे अपने देश के लिए स्वतंत्रता के इच्छुक युवा कोरियाई के अनुरोध पर अपने हस्ताक्षर के साथ लिखा था। नोबल पुरस्कार को एशिया के कोरियाई लोगों ने एशिया के पहले साहित्यकार को मिले पुरस्कार के रूप में अपनाया था। खैर। ये पंक्तियां मूलत: अंगेजी में लिखी गई थीं जिनका लगभग 62 वर्ष बाद पहली बार मुझे ही, अपने दक्षिण कोरिया-प्रवास के समय, हिन्दी-अनुवाद करने का मौका मिला । यह अनुवाद, टैगोर सोसायटी ऑफ कोरिया की संस्थापक-सदस्या पद्मश्री सम्मान से विभूषित पहली और अब तक अकेली कोरियाई तथा साहित्य अकादमी का फैलो के रूप में सर्वोच्च सम्मान भी प्राप्त करने वाली वरिष्ठ कवयित्री किम यांग शिक के आग्रह पर किया गया था जिसे वे अपने द्वारा संपादित पत्रिका कोरियन इंडियन कल्चर के पिछले पृष्ठ पर कोरियाई अनुवाद और अंग्रेजी मूल के साथ प्रकाशित करती हैं। अनुवाद में पंक्तियां हैं:
ऐशिया के स्वर्णिम युग में
रहा कोरिया एक दीप वाहकों में
और कर रहा फिर प्रतीक्षा
वही दीप होने को ज्योतित
करने को फिर से आलोकित
पूरब का प्रांगण यह सारा
जान कर अचरज नहीं होना चाहिए कि इन पंक्तियों ने उस समय तो कोरिया को एक नया उत्साह और ऊर्जा दी ही थी लेकिन 1945 में स्वतंत्र होने के बाद भी इनका महत्त्व नहीं घटा। इनका कोरियाई अनुवाद स्कूल स्तर पर पाठ्यक्रम में लगा कर टैगोर और भारत को सम्मान दिया। सच तो यह है कि टैगोर के लेखन और विचारों ने कोरिया के अनेक साहित्यकारों को प्रभावित किया है जिनमें सर्वोपरि नाम हान योंग उन का है जो मानहे के नाम से प्रसिद्ध हैं।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर (ठाकुर) (1861-1941) 1913 में नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद कोरिया के लिए अज्ञात नहीं रहे। कोरिया जापान के साम्राज्यवाद के अधीन था, जिस तरह भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। कोरियाई भी अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे। स्वयं एशियाई होने के नाते, कोरियाई लोगों ने इस पुरस्कार का पहले एशियाई कवि पुरस्कार के रूप में स्वागत किया और जश्न मनाया। टैगोर की रचनाएँ अंग्रेजी अनुवाद में कोरिया पहुंचीं।माना गया कि टैगोर का साहित्य पीड़ित मानवता के प्रति टैगोर की गहरी चिंता और भविष्य की दुनिया के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संदेश को दर्शाता है- ‘जहां मन भय रहित हो और सिर ऊंचा रखा जाए।’
1916 से 1919 के बीच कोरियाई लोगों के घरों में टैगोर का नाम शामिल हो गया था। उनकी रचनाओं का अनुवाद 1916 में शुरू हुआ था और अब तक बंद नहीं हुआ है। गीतांजलि की कुछ कविताओं का कोरियाई में अनुवाद करने वाले पहले अनुवादक बांग चोंग-ह्वान थे, जो बच्चों के साहित्य के अपने कार्यों के लिए जाने जाते थे। ओ चोन सोक ने 1920 और 1921 में पत्रिका चांगजो (रचना) में अपने अनुवाद के साथ संग्रह पर गंभीरता से विचार किया और इस प्रकार आधुनिक कोरियाई साहित्य के इतिहास में कवि टैगोर को एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। कोरियाई में ‘गीतांजलि’ का अनुवाद और प्रकाशन 1920 में हुआ; ‘द क्रिसेंट मून’, 1924 में हुआ; ‘द गार्डनर’ 1924 में हुआ और प्रसिद्ध नाटक ‘पोस्ट ऑफिस’ 1926 में हुआ। ‘एल’ (एल सांग) ने 1924 में टैगोर की कुछ कविताओं का अनुवाद “सिन सी” (नई कविताएँ) शीर्षक के तहत किया।
वास्तव में टैगोर की कविताओं को कोरियाई साहित्य जगत से परिचित कराने का उनका उद्देश्य परंपरा से हटकर काम करना था। सच कहें तो कोरिया में टैगोर को न केवल एक महान लेखक के रूप में बल्कि एक महान दार्शनिक के रूप में भी स्वीकार और सम्मानित किया जाता है।
No Comment! Be the first one.