शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
विदाई गीत
आने को फिर हर साल,विदाई आज ले लो माँ।
खुशियों को करने बहाल,विदाई आज ले लो माँ ।
अश्रु पुरित नैन हमारे ,
कैसे विदाई दे दूँ ।
परम्परा है मगर मैं तुमसे,
कैसे जुदाई ले लूँ।
होता न ऐसा सवाल , विदाई आज ले लो माँ।
आने को फिर हर साल , विदाई आज ले लो माँ ।
नौ दिवस तक धरा पे रह कर ,
इतनी दया बरसाई ।
ऐसा लगा था सदा सदा के,
लिए तू रहेने आई ।
आता है जग का ख्याल ,विदाई आज लेलो माँ ।
आने को फिर हर साल ,विदाई आज के लो माँ ।
जाती हो तो जाओ माता ,
लेकिन फिर तुम आना ।
एक वर्ष तक नैन बिछाए ,
फिर है दर्शन पाना ।
शबनम को तू ही सम्हाल, विदाई आज ले को माँ,,,
आने को फिर हर साल विदाई आज ले लो माँ ।
ख़ुशियाँ तू करने बहाल ,विदाई आज लेलो माँ ।
^^^^^^^^^^^
“कामाक्षी”
हे माता कामाक्षी
दया की हूँ आकांक्षी
तू सबकी है निर्मात्री
मानव पशु व पक्षी
दानव दैत्य की छोड़िए
आप काल की भक्षी
आप की हर कृति के
देवीपुरान है साक्षी
शबनम काली दुर्गा
या कहे कोई यक्षी
^^^^^^^^^^^
भजन
(पैरोडी -धुन – फूल तुम्हें भेजा है खत में , फ़िल्म -सरस्वती चन्द्र)
सत्य डगर पर चल कर ही तू,
ईश्वर से मिल पायेगा ।
या फिर दुर्लभ मानव तन को,
व्यर्थ में यूँ ही गवाएगा ।
काम क्रोध मद लोभ की सुंदर बगिया सामने आएगी
पुनः पुनः आकर्षण देकर ये तुमको बहलायेगी
इसमें गर तू उलझगया तो जीवन भर पछतायेगा—या फिर दुर्लभ मानव तन को व्यर्थ में यूँ ही गवाएँगे ,,,
इस बाधा के बाद भूख की गहरा सागर आएगा
भूख की इस अंतिम बाधा को विरला पार लगाएगा
इसको जो भी पार कर गया सामने ईश्वर पायेगा—या फिर दुर्लभ मानव तन को व्यर्थ में यूं ही गवायेगा —-
लोभी कामी पातक दम्भी ढेरो संत यहाँ “शबनम”
ऊपर से प्रवचन ये देते,अंदर पाप का ले परचम
कम ही संत सही मिलते है,वे ही पार लगाएगा —या फिर दुर्लभ मानव तन को व्यर्थ में यूं ही गवायेगा ।
No Comment! Be the first one.