अशोक – अम्मा लगता है कि आप पागल हो गई हो। अब छोटे बेटे की याद में ये टसुए बहाना बंद करो। उसे ढूंढने का इंतजाम करो। चलो, पुलिस थाने चलते हैं। फरियाद लिखाकर आते हैं।
अपनी मां शारदा देवी का रोना-धोना देखकर उनका बड़ा बेटा अशोक भड़क उठा और गुस्से से लाल-पीला होने लगा।
शारदा देवी – अरे कोई तो पता करो कि सुरेश कहां गया, हमें छोड़कर कहां निकल गया, मैं उसके बिना कैसे रह पाउंगी। रोज सुबह वह अम्मा-अम्मा कहकर दूध मांगता था, नाश्ता मांगता था और थोड़ी सी देर होने पर कैसे मचलने लगता था। कहां गया होगा मेरी आंखों का तारा–
शारदा देवी यों प्रलाप करके अपने गायब हुए सात साल के बच्चे को याद किए जा रही थी। रोते-रोते उनका बुरा हाल था। गला रुंधा जा रहा था और हिचकियां थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं।
इसी दौरान शारदा देवी के पति आनंद बाबू भी वहां पहुंच गए और कहने लगे –
आनंद बाबू – भागवान! सारी गलती मेरी ही है। ना मैं उसे मेला ले जाता और न यह हादसा होता। अब पता नहीं किस हाल में होगा हमारा लल्ला।
हुआ यूं कि शाम को आनंद बाबू अपने छोटे बेटे सुरेश को लेकर न्यू मार्केट में लगे मेले में घुमाने ले गए थे। वहां भीड़-भाड़ में सुरेश गुम हो गया। आनंद बाबू उसे खोजने के लिए बहुत भटके, मेले के कंट्रोल रूम से सुरेश को बुलाने के लिए एनाउंसमेंट कराया पर सब व्यर्थ हो गया। करीब चार घंटे हो गए पर सुरेश का पता नहीं चला। आनंद बाबू थक-हारकर घर पहुंचे और सुरेश के लापता होने के बारे में शारदा देवी को बता दिया। बस फिर क्या था मानो पूरे घर में तूफान आ गया। शारदा देवी का रोते-रोते बुरा हाल हो रहा था और अशोक का पारा मानो सातवें आसमान पर पहुंच चुका था।
अशोक बोला- बाबूजी आपसे ऐसी उम्मीद नही थी। आाखिर आप तो घर के बड़े बुजुर्ग हों। ऐसे कैसे मेले में सुरेश का साथ छूट गया।
आनंद बाबू बोले – बेटा! जब मुसीबत आती है तो कहकर नहीं आती। अब हम और हमारा लल्ला सुरेश गहरे संकट में हैं। हमें उसे ढूंढने की हर मुमकिन कोशिश करनी ही होगी। ऐसा करो तुम सुरेश का फोटो निकालो। अपन थाने चलते हैं। शायद पुलिस उसे ढूंढ निकाले।
अपने बाबूजी का कहना मानकर अशोक ने सुरेश की फोटो निकाली और अन्य परिचय संबंधी दस्तावेज इकट्ठे किए। फिर दोनों जा पहुंचे पुलिस थाने। वे दोनों जाते-जाते अपने पड़ोस में रहने वाली आंटी ऊषा से कह गए कि वे सुरेश की अम्मां का खयाल रखें।
ऊषा आंटी फौरन शारदा देवी के पास पहुंच गईं। उन्हें समझाने लगीं
ऊषा आंटी – धीरज धरो सुरेश की अम्मां। सुरेश मेले में इधर-उधर जरूर हो गया होगा पर वह शहर में ही कहीं होगा। बस हमें पता लगाने भर की देर है। देखना, वह जल्दी ही घर आ जाएगा और फिर से उसकी शैतानियों से पूरा घर चहक उठेगा।
शारदा बोली – वह तो ठीक है ऊषा पर मां की ममता को कौन समझाए। मेरा दिल बुरे-बुरे खयालों के कारण जोर-जोर से धड़क रहा है। ऐसा लगता है कि जैसे सांसें थमी जा रही हों। हर बार सुरेश की सूरत आंखों में झूलती है। उसकी शैतानियां, नादानियां, जिद्दीपन और चंचलता से भरी घटनाएं एक फिल्म की तरह आंखों के सामने झूल रही है। ऐसा लग रहा है मानो सबकुछ लुट गया हो।
ये दोनों महिलाएं ऐसे ही बातें कर रही थीं कि दो घंटे और गुजर गए। न शारदा देवी का रोना थमा और न ही ऊषा आंटी का उन्हें समझाना। थोड़ी देर में आनंद बाबू और अशोक थाने के चक्कर काटकर घर वापस आ गए। दोनों का मुंह लटका हुआ था।
जैसे ही शारदा देवी ने पूछा कि क्या हुआ तो आनंद बाबू भावातिरेक में अनाप-शनाप बोलने लगे….
आनंद बाबू – अरे पूरी अंधेरगर्दी है। पुलिस ने तो हाथ खड़े कर दिए हैं। टीआई विजय रावत कह रहा था कि अभी सुरेश को गुम हुए चौबीस घंटे नहीं हुए। अतः वे रिपोर्ट नहीं लिख सकते और न ही उसे ढूंढने की कोशिश कर सकते हैं। बस सबको बैठे-बैठे पगार चाहिए। न कुछ करना , न कुछ धरना भाड़ में जाए जनता। सच में मुझे इतना गुस्सा आ रहा है कि
इसी बीच ऊषा आंटी ने उनकी बात काटते हुए कहा…..
ऊषा आंटी – अरे आनंद बाबू तनिक शांत हो जाइए। अब पुलिस वाले भले ही सहयोग करें या ना करें। हमारे पास और भी रास्ते हैं सुरेश का पता लगाने के। क्यों न हम काली मंदिर वाले मसानी बाबा की मदद लें।
आनंद बाबू ने हैरान होकर पूछा – मसानी बाबा….वे हमारी मदद कैसे कर सकते है।
ऊषा आंटी – आनंद जी तंत्र-मंत्र में बहुत शक्ति होती है। बताया जाता है कि मसानी बाबा इस कला में गोल्ड मैडलिस्ट हैं। बस, वे थोड़ा हवन-पूजन करेंगे। हो सकता है कि वे हमारे सुरेश को वापस ला दें।
ऊषा आंटी की बातें सुनकर आनंद बाबू के परिवार की दुखभरी धड़धड़ाती ट्रेन की मानो किसी ने जंजीर खींच दी। आनंद बाबू और उनके परिजन कुछ संयत हुए। आधी रात हो चुकी थी। अतः आनंद बाबू बोले…
आनंद बाबू – आप कह रही हो तो उन्हें भी आजमा कर देख लेते हैं। कल सुबह मैं सुरेश की अम्मा को लेकर बाबा के पास चला जाऊँगा।
वह रात आनंद बाबू के परिवार को अपनी जिंदगी की सबसे लंबी रात की तरह लग रही थी। घर के सभी सदस्य सुरेश की याद में गमगीन होकर करवटें बदलते हुए वक्त बिता रहे थे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि मानो रात बेहद काटे नहीं कट रही हो और सुबह तो मानो होने का नाम ही नहीं ले रही हो।
खैर। जैसे-तैसे रात कटी। सुबह आनंद बाबू शारदा देवी को लेकर मसानी बाबा की शरण में पहुंच गए।
मसानी बाबा – क्या कष्ट है बच्चा, क्या बच्चे का दुख है।
नमस्कार-चमत्कार के बाद मसानी बाबा की तरफ से उछले इस प्रश्न से आनंद बाबू और शारदा देवी दोनों हतप्रभ रह गए। वे दोनों बाबा के चरणों में साष्टांग लेट गए।
मसानी बाबा – उठो बच्चा! तुम्हारे सब कष्ट दूर होंगे। बस मां काली की कृपा चाहिए होगीं। मसानी बाबा ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा।
आनंद बाबू – बाबा! हमारे बेटे सुरेश को बचा लो। वह पिछले 18 घंटे से लापता है। पुलिस ने उसे ढूंढने में मदद करने से इनकार कर दिया है। अब हम मां काली को खुश करने के लिए आप जो भी पूजा-पाठ करना चाहोगे हम उसके लिए तैयार हैं। बाबा हमें आपका आशीर्वाद चाहिए।
मसानी बाबा – ठीक है बच्चा। कल अमावस है। मैं एक विशेष तांत्रिक् अनुष्ठान करूंगा सुरेश को खोजने के लिए। मैं तुम्हें एक लिस्ट दूंगा तुम उसमें दिए गए सामान को लाकर कल रात 8 बजे से पहले घर पर रख लेना।
अशोक बाबू – जैसा आप चाहेंगे बाबा, हम वैसा ही करेंगे। इस काम के लिए आपकी दक्षिणा कितनी होगी?
मसानी बाबा – धन तो हाथ का मैल है बच्चा। इसे जितना खर्च करोगे उतने ही सुखी हो जाओगे। बस, 11 हजार रुपये दानपेटी में डाल देना। देखना मैं ऐसा अनुष्ठान करूंगा कि मां काली की कृपा से उनके सामने जलने वाले दीपक की लौ में उसकी फोटो भी दिखने लगेगी,। उसका पता-ठिकाना सब मालूम हो जाएगा।
मसानी बाबा ने शांत स्वर में आनंद बाबू और शारदा देवी को आश्वस्त किया। उनकी बातें सुनकर इन दोनों को पक्का यकीन हो गया कि बाबा जरूर अपने अनुष्ठान से सुरेश का पता-ठिकाना बता देंगे।
अमावस वाले दिन आनंद बाबू अनुष्ठान की तैयारी में सुबह से ही जुट गए। उन्होंने दिनभर भाग दौड़ करके तंत्र-मंत्र का सामान इकट्ठा किया। शाम को काली मंदिर में जाकर दानपेटी में 11 हजार रुपये डाल आए। रात को आठ बजे से कुछ पहले मसानी बाबा अपने दो चेलों के साथ आनंद बाबू के घर आ गए।
इसके बाद मसानी बाबा ने एक कमरे में अपना तामझाम फैलाया। उन्होंने घर से सभी सदस्यों को कमरे में बैठा दिया। सारी खिड़कियों पर परदे गिरवा दिए और दरवाजा लगवा दिया। इसके बाद उन्होेंने नाइट बल्ब की रोशनी में एक पटे पर मां काली की तसवीर रखी। उसके सामने बड़ा सा दीपक शुद्ध घी डालकर जलाया। सुरेश की मां को दीपक के पास हाथ जोड़कर बैठा दिया। फिर उन्होंने भांति-भांति की आवाजें निकालते हुए कुछ मंत्र पढ़े। आखिर में नाईट बल्ब भी बंद करा दिया और हवन शुरू किया और हवनकुंड में भर-भर मुट्ठी लोबान डालने लगे। लोबान के कारण कमरे में सुगंधित धुआं भरने लगा। ज्यों-ज्यों हवनकुंड में आग की लपटें ऊँची होती जातीं मसानी बाबा का स्वर भी ऊँचा होता जाता और उनके चेले तरह-तरह की आवाजें निकालने लगते। जब कमरे में धुआं ही धुआं भर गया और दीपक की ज्योति जबर्दस्त तेज हो गई तो मसानी बाबा जोर से बोले….
मसानी बाबा – अम्मां ध्यान से दीपक की लौ देखो। अब तुम्हें उसमें सुरेश दिखेगा। यह भी दिखेगा कि वह कहां है- भोपाल में, पटना में या इलाहाबाद में या दिल्ली में। अपनी नजर दीपक की लौ पर गड़ाओ अम्मां!
शारदा देवी पूरा ध्यान करके हाथ जोड़कर दीपक को टकटकी लगाकर निहारने लगी। एक मिनट, दो मिनट, पांच मिनट , दस मिनट, बीस मिनट घड़ी की सुइयां तेज गति से घूमी जा रही थीं पर शारदा देवी को दिए की लौ में न तो सुरेश दिखा और न ही उसका पता-ठिकाना। हवन के धुएं से उनकी आंखों में जबर्दस्त जलन होने लगी और वे टप-टप आंसू बहाने लगीं। यह दृश्य देखकर मसानी बाबा बोले…..
मसानी बाबा – बच्चा! लगता है लोबान अपना असर नहीं दिखा पा रहा है। तुमने यह लोबान किस दुकान से लिया था
बाबा के अचानक दागे गए इस प्रश्न से आनंद बाबू अचकचा गए और हड़बड़ाकर बोले
आनंद बाबू – रिद्धि-सिद्धि पूजा भंडार से!
यह सुनकर मसानी बाबा की त्यौरियां चढ़ गईं और वे गुस्से में भरकर बोले
मसानी बाबा – तभी मैं बोलूं कि लोबान क्यों असर नहीं दिखा रहा। अरे वो दुकानदार तो महा फर्जी है। उसके पास असली सामान तो मिलता नही है। अब ऐसा करना कि मां कामाख्या पूजा भंडार से पूरी हवन-सामग्री ले लेना। हम सुरेश को ढूंढने के लिए इससे भी बड़ा अनुष्ठान करेंगे। मां काली की कृपा जरूर बरसेगी, बच्चा! धीरज रखो।
बड़ा अनुष्ठान! यानी बड़ा खर्चा! आनंद बाबू ने मन ही मन सोचा। उन्हें कुछ खठका सा हुआ पर गमजदा शारदा देवी के सामने कुछ कहने की उनकी हिम्मत नहीं पड़ी। वे सिर्फ इतना ही बोल सके…
आनंद बाबू – बाबा! उसमें कितना खर्चा आएगा ।
मसानी बाबा – बच्चा अगला अनुष्ठान सुपर होगा। तुम्हें सिर्फ 21 हजार रुपये दान करने होंगे। अगर चाहो तो अगले दिन मंगलवार है। यह दिन ऐसे अनुष्ठान के लिए बहुत शुभ होता है। मां काली जरूर कृपा करेंगी और हो सकता है कि सुरेश सुपर अनुष्ठान पूरा होते ही तुम्हारे घर के सामने आकर खड़ा हो जाए।
शारदा देवी – अब मान भी जाओ। मसानी बाबा ने तो पहले ही कहा था कि रुपया-पैसा सब हाथ का मैल है। अगर 21 हजार रुपये खर्च करके सुरेश का पता चल जाए तो क्या बुरा है। अपनी आंखों का तारा है वह! उसके लिए तो अपनी सारी धन-दौलत न्यौछावर कर दें तो वो भी कम है। शारदा देवी कुछ घबराहट भरे सुर में रोते-बिलखते हुए बोलीं।
अशोक बोला- हां, बाबूजी! सुरेश का पता लगाना बेहद जरूरी है। मान लो न मसानी बाबा की बात!
आखिरकार आनंद बाबू ने सरेंडर कर दिया और मसानी बाबा के सामनेे। उन्होने मंगलवार को विशेष पूजा अनुष्ठान करने पर हामी भर दी। उनकी मंजूरी मिलते ही मसानी बाबा अपना ताम-झाम समेटकर अपने चेलों के साथ मंदिर चले गए।
उधर, टीआई विजय रावत आनंद बाबू और उनके घर-परिवार में क्या क्या हो रहा है, इसके बारे में लगातार सूचनाएं जुटा रहा था। उसने मेले में लगे तमाम सीसीटीवी फुटेज जुटाने और उन्हें खंगालना शुरू कर दिया। टीआई ने अपने मुखबिरों से यह भी पता लगा लिया था कि आनंद बाबू सुरेश का पता लगाने मसानी बाबा की शरण में गए थे और उन्होंने इस सिलसिले में एक छोटा अनुष्ठान भी करा लिया है। उसे यह भी पता चल गया था कि अब आनंद बाबू एक बड़े अनुष्ठान की तैयारी में हैं। उसे यह प्रश्न बार-बार परेशान कर रहा था कि मसानी बाबा को आनंद बाबू के बिना बताए ही यह कैसे पता चल गया था कि उनका बच्चा गुम हो गया है।
टीआई विजय दरअसल बिना हल्ला-गुल्न्ना करके अपनी ड्यूटी को अंजाम देने वाला शख्स था। वह इस बात की भनक किसी को भी लगने नहीं देना चाहता था कि उसके इलाके में होने वाले हर क्राइम की उसे पुख्ता जानकारी रहती है और उसने मन ही मन ठान लिया था कि वह सुरेश को तलाशने का काम गुप्त रूप से जारी रखेगा।
टीआई विजय अपने कक्ष में बैठकर मेले के फुटेज खंगाले जा रहा था तभी उसे कुछ दाल में काला नजर आया। उसने फुटेज में देखा कि एक शख्स भीड़ में से निकलकर जानबूझकर आनंद बाबू को धक्का दे रहा है और बार-बार एक रूमाल सुरेश की तरफ बढ़ा रहा है। उसे सुरेश की गुमशुदगी का मामला धीरे-धीरे खुलता नजर आने लगा। उसने अन्य सीसीटीवी फुटेज गहराई से खंगाले तो देखा कि सुरेश मानो नींद में चलता हुआ जा रहा है और एक शख्स उसे कार में बिठा रहा है। उसने कार की नंबर प्लेट को जूम किया तो टीआई विजय उछल पड़ा। उसने फौरन डाइवर से गाड़ी निकालने को कहा और दस कांस्टेबलों को लेकर बाहर की ओर चल पड़ा।
उधर, सुरेश के मामले में पुलिस के एक्शन से ना वाकिफ आनंद बाबू बड़े अनुष्ठान की तैयारियों में व्यस्त थे। उन्होंने बाबा की बताई दुकान से सारा सामान लेकर घर पर दिया था। फिर वे काली मंदिर में 21 हजार रुपये जाकर दान करने की तैयारी करने लगे। कुछ ही देर में वे अशोक को लेकर काली मंदिर के पास पहुंच गए।
जब वे दोनों वहां पहुंचे तो वहां का नजारा देखकर दंग रह गए। पुलिस ने मंदिर में बाबा के आश्रम को घेर रखा था। टीआई विजय लाउडस्पीकर पर बार-बार मसानी बाबा और उनके चेलों को चेतावनी दे रहा था
टीआई विजय – बाबा! तेरा खेल खत्म हो चुका है। सुरेश को अपने आश्रम से लेकर 15 मिनट में बाहर आ जा! नहीं तो पुलिस एक्शन में आ जाएगी।
जब टीआई ने देखा कि उसकी चेतावनियां बेअसर हो रही हैं तो उसने अपने जवानों को हवाई फायर करने के आदेश दिए। गोलियों की आवाज सुनकर बाबा और उनके चेले दहशत में आ गए। पुलिस के तेवर देखकर उन्होंने प्रतिरोध करने के बजाय समर्पण करना ही उचित समझा।
कुछ देर के बाद बाबा और उसके चेले डरे-सहमे से सुरेश के साथ अपने अपने हाथ ऊपर किए हुए बाहर आ गए। यह देखकर आनंद बाबू और अशोक की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। टीआई ने सुरेश को बाबा के कब्जे से छुड़ाकर जैसे ही आनंद बाबू को सौंपा तो उनका गला भर आया। वे अपने कलेजे के टुकड़े को सीने से लगाकर बिलख-बिलख कर रोने लगे। अपने पिता को रोते देखकर सुरेश और अशोक दोनों की आंखों में आंसू आ गए।
जब थोड़ी देर बाद वहां की स्थिति नियंत्रण में आ गई तो टीआई विजय बोला…….
टीआई विजय – आनंद बाबू! कई बार पुलिस को गोपनीयता बरतते हुए भी अपने क्राइम कंट्रोल के मकसद को अंजाम देना होता है। इसलिए हमने जानबूझकर आपके बेटे के गुम होने की रिपोर्ट नहीं लिखी थी। अब आप आनस्पॉट एफ आई आर लिखा दीजिए जब से इस मामले का पता चला था मैं चुपचाप इस मामले की जांच में लग गया था। मुझे एक सवाल बार-बार परेशान कर रहा था कि बाबा को आपके बिना बताए सुरेश के गुम होने के बारे में कैसे पता चला। फिर सीसीटीवी फुटेज देखे, घटनास्थल का मुआयना किया । कार की नंबर प्लेट ज़ूम करके देखी. उस पर माँ काली की छोटी सी तस्वीर बनी देखी. बस सारा माज़रा समझ में आ गया मेरा शक पक्का हो गया कि इस किडनैपिंग में बाबा और उसके चेलों का ही हाथ है। उसने सुरेश को किडनैप करके अपने आश्रम में छिपाकर रख लिया था और आपसे पैसे ऐंठने के लिए छोटे अनुष्ठान, फिर बड़े अनुष्ठान का नाटक रच रहा था। अब आप क्या कहेंगे पुलिस के बारे में ।
आनंद बाबू के मुंह से बोल नहीं फूट पा रहे थे। होंठ कुछ कहने को फड़फड़ा तो रहे थे पर गला साथ नहीं दे पा रहा था और न ही दिमाग। उनके मन में भावनाओं का मानो सैलाब उमड़ रहा था। तभी टीआई ने एक गिलास पानी मंगवाया और उसे आनंद बाबू को पीने को कहा। तब कहीं जाकर आनंद बाबू को थोड़ा चैन पड़ा। वे आंखों में कृतज्ञता के आंसू लिए हुए भर्राए गले से बोले….
आनंद बाबू – आपको कैसे शुक्रिया कहूं साहब! यह तो बहुत छोटा शब्द है आपके लिए, पुलिस के लिए। मैं व्यर्थ में ही मसानी बाबा की बातों में आ गया था।
टीआई विजय – कोई बात नहीं। अब जो हुआ सो हुआ। कानून अपना काम करेगा। यह कहकर टीआई विजय मसानी बाबा और उनके चेलों को जीप में बिठाकर थाने में ले गया।
उधर, जैसे ही आनंद बाबू ने सुरेश के मिलने की खबर शारदा देवी को अपने मोबाइल फोन से सुनाई तो मारे खुशी के उनका गला रुंध गया और भावातिरेक में इतना ही कह सकीं
शारदा देवी – जल्न्दी सूरेश को लेकर घर आओ। मैं अपने कुलदीपक को अपनी आंखों से सचमुच में देखना चाहती हूे। आज तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं है।
(काल्पनिक कहानी)