रचनाकार : दिविक रमेश, नोएडा
चैप्टर-4
ताऊ ने अपने अंदाज में कहा, ‘भाई, मैं ज्योतिषि तो हूँ नहीं कि हिसाब लगा कर समय बता देता। तेरी चाल देखकर ही तो बता सकता था। तू चला तो अंदाजा लगा लिया कि इस चाल से कितनी देर में पहुँच जाएगा। तभी तो कह रहा था- चल चल। पथिक ताऊ किसान की सूझबूझ पर गदगद हो गया।
ऊपर संकेत दे चुका हूँ कि सुनो कहानी परम्परा की हर जगह की अपनी शैलीगत विशेषता भी होती है। स्थानीय भाषा या बोली का वैशिष्ट्य भी उसमें निहित होता है। सुनाने वाले की भी एक निजी कला-क्षमता होती है। वस्तुत: कथा की परम्परा की दृष्टि से देखा जाए तो उसे तीन रूपों में देख सकते हैं।
पहली के अनुसार, पंडित यानी ज्ञानी भारतीय महाकाव्यों जिनमें संस्कृत और अन्य भाषाओं जैसे तमिल के महाकाव्य भी सम्मिलित हैं, को अपना स्रोत बना कर प्रवचन देता है, व्याख्यायित करता है। यह परम्परा भारत भर में उपलब्ध रही है।
दूसरी के अनुसार कथा सुनाने वाला शास्त्रीय संगीत में पारंगत होता है और वह मुख्य कहानी को नृत्य. संगीत, और विषयांतर की खूबियों से बुनता है। तीसरी के अनुसार घुमंतु कलाकार या कथाकार संगीत के यंत्रों के साथ आख्यान या कहानी सुनाते हैं। ये सब बुनियादी तौर पर वाचिक परम्परा से जुड़े हैं।
मैं यहाँ भारत की ‘पंडवानी’ जिसकी प्रमुख कलाकार तीजनबाई मानी गई हैं और कोरिया की ‘पंसोरी’ के बारे में विशेष रूप से चर्चा करना चाहूँगा।
आपमें से अनेक जानते होंगे कि पंडवानी छत्तीसगढ़ का लोक नट्य है जिसमें मुख्य प्रस्तुतकर्ता एक होता है। पंडवानी का अर्थ है -पांडववाणी। अत: स्रोत महाभारत है। छत्तीसगढ़ की जातियों की यह एक गायन परंपरा है। ये जातियाँ हैं परधान और देवार। परधान गोंड की एक उपजाति है और देवार घुमंतू जाति है। इन दोनों ने ही पंडवानी लोक माहाकाव्य को छत्तीसगढ और भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों तक में फैलाया है। इसमें वाद्ययंत्रों की भी भूमिका रहती है।
पंडवानी की कापालिक शैली, जिसकी प्रख्यात गायिका तीजनबाई है ‘कपाल’ या स्मृति से काम लेने वाली शैली होती है। जहाँ तक कोरिया की पंसोरी की बात है तो उसका अर्थ है-ध्वनि। इसके आशयगत अर्थ अलग-अलग भी हैं। एक के अनुसार अर्थ है ‘ऐसी स्थिति जहाँ बहुत से लोग एकत्रित हों’ और दूसरे के अनुसार अर्थ है, ‘विभिन्न स्वरों से बना गीत। पंसोरी में एक लंबी कहानी को संगीत में प्रस्तुत किया जाता है।
संक्षेप में कह सकते हैं पंसोरी ड्रम के सहारे एक गायक के द्वारा संगीतमय कहानी प्रस्तुत करती है। इसमें भी प्रस्तुतकर्ता एक ही होता है। प्रस्तुतकर्ता के हावभाव का बहुत महत्त्व होता है। वस्तुत: यह कोरियाई संगीत के पारंपरिक रूपों में से एक है जो गोसु (अर्थात वह व्यक्ति जो ढोल बजाता है) द्वारा बजाए जाने वाले ड्रम की संगत में शारीरिक गतिविधियों और गीतों को मिलाता है ।
नाटक की नाटकीय सामग्री को कोरिया के स्थानीय संगीत की धुन के आधार पर विभिन्न लय के अनुसार बदला जाता है। 20वीं सदी के अंत में, पंसोरी की दुखद “पश्चिमी शैली” ने पंसोरी की जोरदार “पूर्वी शैली” को पीछे छोड़ दिया , और पंसोरी को ” हान की ध्वनि ” कहा जाने लगा। हान को समझाना मुश्किल है।
समझने के लिए, दयायुक्त शोक या उदासी जैसे शब्द कुछ काम के हो सकते हैं। ’हान’ की सामान्य धारणा एक बार बार आने वाली और व्यापक उदासी सुझाती है। असल में यह सुखांत से अलग है।
(क्रमशः )