रचनाकार : सुशीला तिवारी, पश्चिम गांव, रायबरेली
लव यू जिंदगी!
मुझे
एक दिन यूँ ही
अनजान सफर पर चलते चलते
मेरी जिंदगी मिल गई
मैने पूछ लिया उससे कुछ यूँ ही हंसते हंसते
क्यों लुका छिपी करती रहती हो
खेलती हो खेल तुम मेरे साथ
मैं कैसे बताऊँ तुम्हे अपने हालात
क्या नही समझती हो तुम मेरे जज़्बात
उसने मुझे बड़े गौर से देखा
फिर थोड़ा सा थम कर इत्मीनान से कहा
क्या तुम्हे अपने पर भरोसा न रहा
कब तक अपने आप में भ्रमित रहोगी
मुझे जिस नजरिये से देखोगी
वैसी ही मुझे पाओगी
मैने समझा और फिर कहा
सच में #लव यू जिंदगी।
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मुस्कुराना चाहता हूँ
जिंदगी से गम ,,,,,,,,,,,मिटाना चाहता हूँ ।
बस जरा सा ,,,,,,,,,,,मुस्कुराना चाहता हूँ ।।
याद जब भी किया तड़प हिस्से में आई,
याद को दिल से ,,,,,,,,,,,हटाना चाहता हूँ । 1)
खूब सूरत सी कशिश ,,,थोड़ी सी उनमें,
बात इतनी सी,,,,,,,,,बताना चाहता हूँ । 2)
जिंदगी थम सी गई,,,,, इस दौर में आके ,
फिर वही गुजरा ,,,,,,,,,,,जमाना चाहता हूँ । 3)
साथ छूटे न कयामत,,,,,,,,,,तक तुम्हारा,
इक नयी दुनिया ,,,,,,,,,,,बसाना चाहता हूँ । 4)
सांस में मेरी सदा,,,,,,,,,,,,, रहती हो तुम ,
अब तुम्हें धड़कन,,,,,,, ,,बनाना चाहता हूँ ।5)
चले आओ अजब सी ,,,कश्मकश है मेरी ,
तुम्हें सब कुछ,,,,,,,,,, बताना चाहता हूँ । 6)
गीत गजलों में लिखा है ,,,,,,,,,जिन्दगी को ,
राग देकर इसे,,,,,,,,,, गुनगुनाना चाहता हूँ। 7)
रहे रोशन जहां तेरा”सुशीला”ने दुआ दे दी ,
दुआओं का असर होगा,,,बताना चाहता हूँ। 8)
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हमारे पूर्वज, हमारी धरोहर
हमारे पूर्वज हमारी धरोहर,
वो हमारे तीर्थ हमारे मान सरोवर
बना गये जो आदर्श पूर्वज,
हम सब उन पर चलते हैं।
वो चले गये हैं हमसे दूर,
करते प्रेम मगर भरपूर,
पितृ पक्ष के आते हम सब ,
याद उन्हें करते हैं जरूर।
उनकी कृपा द्रष्टि हम पर ,
सदा बरसती रहती है ।
पूर्वज हैं अनमोल धरोहर,
उनसे वंश की वृद्धि है ।
उनके आशीर्वाद से हरदम,
फूले फले सदा परिवार,
उनसे बढ़ती शान हमारी ,
उनका बहुत बहुत आभार।
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बने ताउम्र का साथी
न जाने कौन आया है मेरी वीरान राहों में ।
बने ता उम्र का साथी मेरी परेशान राहों में।।
मेरी आँखों की दरिया से समन्दर बन के बह निकला
किसी की बेरुखी ने मेरा किया अपमान राहों में ।
नही है सब्र अब मुझमें सहूंगी दर्दे दिल मैं कितना,
लगा है हर स्वांस पर पहरा पड़ी अब बेजान राहों में।
अंधेरा था दूर तक फैला नही थी रोशनी कोई,
किरण उम्मीद की बन चमका, मेरी नादान राहों में।
छटे गम के मेरे बादल हुई बरसात खुशियों की,
अक्स पर छा गई मेरे , दीप सी मुस्कान राहों में।
करूँ कैसे यकीं खुद पर बाद मुद्दत मिलीं खुशियाँ,
“सुशीला”सा मिला रहबर, मुझे अनजान राहों में।
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मन करता है,,,,
वापस फिर से बचपन में मैं खो जाऊँ ,
धागे से पग तितली के बांधे फिर उसे उठाऊं ।
मन करता है ,,,,
सखी- सहेली साथ में लेकर कहीं घूमने जाऊँ ,
बेरी तोड़े पेड़ पर चढ़ के पोखर ताल नहाऊं ।
मन करता है ,,,,
भरी दुपहरी धूप में जाकर आम बाग से लाऊँ ,
और करौंदा, आंवला तोडूं, इमली पत्ती खांऊं ।
मन करता है ,,,,
कुएं पर जाकर गगरी भर कर इतराती आऊं ,
गइया ,बछड़े बंधे द्वार पर पानी उन्हें पिलाऊं ।
मन करता है,,,,,,
नहर किनारे बैठे और कागज की नाव बनाऊं ,
नन्हा बैल उसी में रखकर पानी में उसे बहाऊं।
मन करता है,,,,,
अम्मा के आंचल में छुप पूरा बचपन जी आंऊ,
यादें बचपन की सभी समेंटू नन्हा सा हो जाऊं।