रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम ” , लखनऊ
लरिका पीछे लग गये
जुल्फ रागाई काली काली
मुँह पर चुपड़ी खड़िया ।
भाहों बना कर होंठ रंगा कर
घर से निकली बुढ़िया ।।
लरिका पीछे लग गये ।
छोटी कुर्ती जींस पहन कर
पहनी सैंडिल ऊंची ।
कमर हिलावत नैन मटकावत
कान मा पहिनिस झुमकी ।।
लरिका पीछे लग गये ।
ऊपर का धड़ पतला पतला
कमर है जैसे कमरा
अंग्रेजी मा बात करै
जैसे बोले बकरा ।।
लरिका पीछे लग गये ।।
खड़ी बज़ार मे चस्मा पहिने
लारिका देखि देखि मुस्कावे ।
अगल बगल से निकरै मेहरिया
देखि देखि के आपस मा बतलावै ।।
लरिका पीछे लग गये ।।
एक लरिकवा देखि के उनका
गाइस एक गाना
रास्ते रास्ते देखो आँख मेरी लड़ी है
आँख जिससे लड़ी है वो पास मेरे खड़ी है
उसने उत्तर मे उस लड़के को दीया एक जवाब
आँख जिससे लड़ी है वो तेरी अम्मा से बड़ी है ।।
लरिका पीछे लग गये ।
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कातिल नज़र
तुमने बड़ी सफाई से कातिल नज़रो से मेरा कत्ल किया ।
न खून गिरा न कोई इल्जाम लगा और मुझे मार दिया ।।
तुम्हारे हुनर को मै सलाम करता हूँ ।
तुम जिसको देख लेती हो वो तुम्हारा हो जाता है ।।
तुम्हारी नज़रो मे एक मदहोश अदा है ।
जिधऱ घूमती है उधर मैखाना खुल जाता है ।।
तुम्हारी मुस्कराहट पर चाँद तारे चमकते है
पलकें झुका लेती हो तो अधेरी रात हो जाती है ।
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साड़ी की दुकान
साड़ी दुकानदार की है महिमा न्यारी
साडी पहना कर खड़ी किये महिला प्यारी
वो महिला भी खड़ी जोड़ के कर को देख रही
लिखा हुआ उसके ऊपर बिकाऊ साड़ी प्यारी
हमने पूछा उससे कि कितने की है ये साडी
नौकर बोला पीछे से अंदर जा कर देखो साडी
चौक गया सुन कर नौकर की सुन्दर प्यारी बोली
आओ साहेब देखो सुंदर सुंदर नग वाली साडी
देखा हमने ये अजब गज़ब की दुकानदारी
जैसे ही हम घुसे दुकान मे प्रगट हुई महिला प्यारी
होठो पर मधुर मुस्कान लिए करने लगी मीठी बाते
हम भी फसे किस चक्कर मे मति गई आज मेरी मारी
लगी दिखाने वो हमको सिल्क जारजट बंधानी साड़ी
हमको देख मुस्करा रही वो खोल रही साडी पर साडी
हर साडी पर वो कहती जाती कितनी सुंदर साडी प्यारी
हम भी उसकी हसी मे फस गये ले डाली ” उत्तम” साडी
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