रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम “, लखनऊ
रेगिस्तान की रात
रेगिस्तान की रात हों
और तेरा साथ हों
वीरान सी जगह हो
बस हम तुम साथ हों ।।
न कोइ आ सके यहां
न कोई जा सके वहा
धूल का पहाड़ हों
बस हम तुम साथ हों ।।
चांदनी सी रात हों
न कोई आस पास हों
रेत मे दबे हुए
मेरे तेरे ख्वाब हों
बंधनों से तोड़ दो
ख्वाब की नर्म सास को
आके तुम गले मिलो
इस अंधेरी रात को ।।
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तुम जगा गई मुझे
नींद मे सोया हुआ था
क्यु तुम जगा गई मुझे
अपने भीगे हुए केशो से
गाल सहला गई मेरे ।।
खुल गई आँखे मेरी जब
तेरे रूप का सौंदर्य देखा
खुली रह गई पलके मेरी
मन मचल मचल गया ।।
अब न जाओ छेड़ कर
आओ मेरे पास तुम
भर कर तुम्हे बाहो मे
जी भर के चूम लूँ तुम्हे ।।
प्यार के अनमोल पल को
न चुराओ तुम अभी
रख कर अधर को अधर पर
प्यास बुुझा लूँ अभी ।।
हो गई सुबह अब
रात प्यारी जा चुकी
अब न भरो बाह मे
चाय की प्याली आ गई ।।
रात भर सोये गज़ब तुम
तब न आई याद मेरी
गैस पर चढ़ा है कुकर
और सीटी उसमे आ गई ।।
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ये मेरी कहानी
ये तन्हाई ये ढलती हुई जवानी
ये खुशिया ये गम ये मेरी कहानी
बस यही देखते देखते बीतती जा रही
ये मेरी जवानी ये मेरी जवानी ।।
ये गुमान ये मेरे अरमान
ये मेरे मान ये मेरे सम्मान
सब ये है मेरी लिखी कहानी
ये मेरी जवानी ये मेरी जवानी ।।
ये उगता सूरज ये ढलती दुपहरी
ये आती हुई शाम ये है रात की निसानी
न जाने कहा खो गई सुबह की रवानी
ये मेरी जवानी ये मेरी जवानी ।।
ये पतझड़ ये नव दल
ये मुरझाये से फूल
ये खिली हुई कलियां
बताती जा रही अपनी कहानियां
ये मेरी जवानी ये मेरी जवानी
ये भटकी जवानी बोले जुबानी
सुनो तुम मेरी बीती कहानी
लिखा है किताबों मे अपनी कहानी
ये मेरी जवानी ये मेरी जवानी ।।