चैप्टर-1
पारुल आज बेहद परेशान थी। दरअसल कुछ महीने पहले ही वह फेसबुक पर राइटर्स के एक ग्रूप मुक्त विचार प्रवाह संकलन से जुड़ी थी। जब उसने यह ग्रुप जाॅइन किया था तो संचालक की तरफ से जो संदेश आया था, उसे पढ़कर वह झूम उठी थी।
उस संदेश में उसे ग्रुप जाॅइन करने के लिए हार्दिक बधाई देते हुए संचालन तपन मजूमदार ने लिखा था – आप जैसी हसीन और उच्च विचारों वाली नवोदित लेखिका का हमारे ग्रुप में स्वागत है। आप हमें रोज एक रचना भेजिए! हम उपयुक्त पाए जाने पर उसे न केवल अपने ग्रुप में प्रकाशित करके सर्कुलेट करेंगे बल्कि आपको एक आकर्षक सम्मान पत्र भी देंगे।
बस फिर क्या था? पारुल ग्रुप से जुड़ गई और कभी एआई से तो कभी अपने मन से तो कभी चैटजीपीटी से रचनाएं लिखकर ग्रुप में भेजने लगी। ग्रुप से जुड़े अन्य मेंबर उसकी रचनाओं पर कभी तालियांे का एनिमेशन तो कभी लाइक्स का बटन लगाकर और कभी एकाध उत्साहवर्धक कमेंट करके उसकी प्रशंसा पाने की चाहत को पूरी करने लगे।
रचनाओं में कोई विशेष क्वालिटी नहीं थी पर ग्रुप के सदस्यों के फर्जी लाइक्स आदि पाकर उसका सिर घूमने लगा। कुछ ही दिनों में वह अपने को महान लेखिका समझने लगी।
जब दो-तीन महीने यही सिलसिला चला तो उसके बाद उसके पास ग्रुप संचालक का दूसरा ई-मेल आया।
इसमें कहा गया था- डियर पारुल जी! आपकी रचनाओं ने हमारे ग्रुप में भीषण धूम मचा रखी है। आप ने देखा ही होगा कि आपको कितने सारे लाइक्स और कमेंट्स मिल रहे हैं। हम चाहते हैं कि आप रचनाएं भेजने का सिलसिला आगे भी जारी रखें। हम आपका नाम दैनिक टाॅप परफाॅरमर राइटर से रूप में प्रमोट करेंगे। इसके लिए बस आपको 2000 रुपये का पेमेंट आॅन लाइन करना है। आशा है आप अपना सहयोग पूर्ववत जारी रखेंगी!
अब, पारुल ने जब 2000 रुपये की बात पढ़ी तो वह परेशान हो गई। चूंकि इतने दिनों से इस ग्रुप से जुड़कर उसने सिर्फ झूठे लाइक्स और कमेंट्स बटोरे थे। कमाई तो धेले भर की नहीं हुई थी।
फिर इस ग्रुप में 25 से 30 ऐसे एक्टिव मेंबर थे जिससे उनकी अच्छी जान-पहचान अच्छी हो गई थी। ये ग्रुप मेंबर्स एक दूसरे की रचनाओं को जमकर लाइक्स देते रहते थे या अच्छे-अच्छे कमेंट्स लिखते रहते थे। अतः पारुल को यह पूरा भरोसा हो गया था कि वह बहुत अच्छा लिखती है और आगे चलकर बहुत बड़ी राइटर बनने वाली है।
पर 2000 रुपये वह कहां से लाए?
क्रमशः
(काल्पनिक रचना )