आखिरी चैप्टर
अतः पारुल को यह पूरा भरोसा हो गया था कि वह बहुत अच्छा लिखती है और आगे चलकर बहुत बड़ी राइटर बनने वाली है।
पर 2000 रुपये वह कहां से लाए?
पारुल ने अपने बाॅयफ्रेंड आशुतोष से इस बारे में बात की। आशुतोष बीसीए का छात्र था और एक कंपनी में पार्टटाइम कंम्प्यूटर का कार्य भी करता था। उसे जब पारुल की परेशानी का पता चला तो उसने कहा – कोई बात नहीं। दो हजार रुपये मैं दे दूंगा। तुम तो बस लिखती रहो।
आशुतोष पारुल की फेसबुक पर प्रकाशित हर रचना को पढ़ता जरूर था और यदा-कदा लाइक्स, कमेंट्स आदि करके उसका उत्साह बढ़ता रहता था। उसे पारुल की कमजोरी अच्छे से समझ में आ गई थी कि मैडम पर राइटर बनने का भूत सवार है और वह प्रशंसा बहुत पसंद करती है।
खैर ग्रुप के संचालक को 2000 रुपये का पेमेंट हो गया। उसके बाद उसे ग्रुप की ओर से दैनिक टाॅप परफाॅरमर राइटर के शीर्षक वाला एक आकर्षक सर्टिफिकेट प्रदान किया गया। उस दिन पारुल को खूब सारे लाइक्स और कमेंट्स मिले। पारुल को राइटर बनकर, झूठे डिजिटल सर्टिफिकेट लेकर उन पर लाइक्स व कमेंट्स बटोरने में मजा आने लगा। इसके साथ ही आशुतोष की जेब खाली होने लगी। वह 10 हजार रुपये महीने कमाता था। अब पारुल पर झूठे डिजिटल सर्टिफिकेट बटोरने का भूत सवार होने के बाद महीने में छह-आठ हजार रुपये इसी में होम होने लगे।
जब आशुतोष की हालत पतली होने लगी तो उसने पारुल को सीधे-सीधे झूठे डिजिटल सर्टिफिकेट बटोरने के लिए मना करने के बजाय कहा कि क्यों न वह फेसबुक पर प्रकाशित अपनी रचनाओं को शहर के टाॅप पब्लिशर अजय पब्लिकेशन को बुक पब्लिश करने के लिए भेज कर देखे। अगर इस प्रकाशन को उसकी रचनाएं पसंद आईं तो उन्हें न केवल बुक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा बल्कि उसे मोटी रकम भी बतौर मेहनताने के मिल जाएगी।
कुछ दिनों के बाद पारुल और आशुतोष अजय पब्लिकेशन में पहुंचे। वहां उन्होंने पारुल की कविताओं व कहानियों को बुक के रूप में छपवाने के इरादे के बारे में बताया। उनकी बातें सुनकर पब्लिकेशन हाउस के एमडी अजय अग्रवाल बोले- आप अपनी रचनाओ को हमारे पास छोड़ जाओ। हम उनकी समीक्षा करा लेंगेे और यदि उनको हमारे पैनल ने मंजूरी दे दी तो आपसे राॅयल्टी व मेहनताने के बारे में करार कर लेंगे।
इसके बाद पारुल और आशुतोष घर वापस आ गए। पारुल उस दिन का बैचेनी से इंतजार करने लगी जब उसकी रचनाएं बुक के रूप में छपेंगी और उसकी अच्छी संख्या में बिक्री होगी और मेहनताने व राॅयल्टी के रूप से उसे मोटी रकम मिलेगी।
पर सुख स्वप्न अगर साकार हो जाएं तो वे सुख स्वप्न क्यो कहलाएं। करीब दो माह बाद अजय अग्रवाल का फोन पारुल के पास आया। उन्होंने पारुल से जो कहा वह सुनकर सन्न रह गई और उसकी आंखों में आंसू आ गए।
मालूम है अजय ने उससे फोन पर क्या कहा था – बिटिया! आपने लिखा तो खूब है। पर आपकी रचनाएं फेसबुक पर ही चलने लायक हैं। यदि हम उन्हें बुक के रूप में प्रकाशित कर दें तो कोई उन्हें खरीदेगा नहीं! हमें नुकसान अलग होगा। आप झूठी प्रशंसा पाने के चक्कर में न केवल अपना समय, पैसा और मेहनत बर्बाद कर रही हैं बल्कि स्तरीय सृजन भी नहीं कर पा रही हैं। हमारी आपको सलाह है आप फेसबुकिया राइटर बनने के बजाय वैसी सच्ची वेबसाइट्स, जैसे- शिविका झरोखा डाॅट काॅम आदि पर अपनी रचनाएं भेजो जो क्वालिटी को प्राथमिकता देती हैं। वहां पब्लिशिंग पूरी तरह से फ्री भी है और कभी राइटर्स की झूठी प्रशंसा नहीं की जाती है और न ही राइटर्स से पैसे लेकर उन्हें झूठे डिजिटल सर्टिफिकेट दिए जाते हैं! अभी आपकी उम्र ही क्या है? आपने अगर सही राह पकड़ ली तो संदेह नहीं कि आप वास्तव में एक टाॅप क्लास की राइटर बन सकेंगी!
पारुल ये सब बातें सुनकर दुखी तो हुई पर उसने उसी दिन कसम खा ली कि वह झूठे फेसबुकिया ग्रुप्स के चक्कर में नहीं पड़ेगी और अपना वक्त व मेहनत सच्ची वेबसाइटों के लिए समर्पित करेगी।
जब उसने शाम को एक खूबसूरत रेस्तरां में आशुतोष के सामने यह निश्चय दोहराया तो आशुतोष खुशी से झूम उठा और बोला – सच डियर! देर से ही सही पर तुम्हारी अक्ल का ताला खुल ही गया! वैसे मुझे पूरा भरोसा है कि तुम एक दिन बड़ी राइटर जरूर बनोगी!
आशुतोष के अपने प्रति भरोसे को देखकर पारुल उत्साह से लबरेज हो गई!
(काल्पनिक रचना)