रचनाकार : शिखा तैलंग
राइटर्स कल भी थे आज भी हैं। वे अपना एक्सपीरिएंस, जज्बात और आइडियाज को लिखकर व्यक्त करते हैं। परिश्रम करते हैं। मेहनत करते हैं। एक—एक शब्द को सार्थक रूप देने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। फिर सीप जैसी पीड़ा सहकर रचना रूप मोती को जन्म दे पाते हैं।
जब इन रचनाओं के मूल्यांकन और उनसे कुछ धन—द्रव्य मिलने की बात आती है तो वे कुछ ऐसे पब्लिशर्स के चंगुल में फंस जाते हैं जो केवल अपनी जेबें भरना चाहते हैं। राइटर्स की रचनाओं का व्यापार करके माल कमाना चाहते हैं! और तो और कुछ पब्लिशर्स तो इतने शातिर हैं कि रचना छापने के लिए राइटर्स से बकायदा चंदा लेते हैं।
कल ही मैंने एक ऐसे पब्लिशर का एड सोशल मीडिया पर देखा। उन्हें रचनाकार की कविताएं भी चाहिए, फोटो भी और तमाम जानकारियां भी। फिर सहयोग राशि 651 रुपये भी चाहिए! यानी मेहनत राइटर करे, दिमाग राइटर लगाए, अपनी रचना के प्रकाशन का खर्चा भी उठाए। और जब ऐेसी रचनाओं का संकलन प्रकाशित हो तो जो भी लाभ रूपी मलाई मिले उसे पब्लिशर चाट जाए।
इस मेहनत, निवेश या सहयोग राशि के एवज में राइटर्स को क्या मिलेगा — बस, दो—चार कविताओं का प्रकाशन, एक मैडल और फर्जी डिजिटल सार्टिफिकेट! यानी पब्लिशर ने न हींग लगाई न फिटकरी बस रंग चोखा आ गया! माल बटोरा और छपास के रोग से पीड़ित राइटर्स से चंदा लेकर धंधा किया और जिसने सैकड़ों बाधाओं को झेलकर एक रचना को जन्म दिया, उसे ठेंगा दिखा दिया!
फिर एक अन्य राइटर की सोशल मीडिया पोस्ट देखी। उन्होंने लेखन से होने वाली न के बराबर आमदनी का रोना रोया और एक क्यूआर कोड डाल दिया जो कोई भी मेरी रचना पढ़े वह क्यूआर कोड स्कैन करके पैसे भेज दे! धन की देवी लक्ष्मी के आगे राइटर के मान—सम्मान, कौशल आदि सबको तिलांजलि!
और भी ऐसे हजारों राइटर्स हैं जो आए दिन फर्जी डिजिटल सम्मान पत्रों को पाने और उन्हें सोशल मीडिया पर डालकर लाइक्स बटोरने के चक्कर में पड़ जाते हैं। सम्मान सर्टिफिकेट की भारी—भरकम शब्दावली से स्वयं शब्दों के जादूगर यानी राइटर्स मोहित हो जाते हैं और झूठी आत्मप्रशंसा की गलियों में भटककर अपने कौशल व कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं!
लेखन पुराने जमाने से ही एक सम्मानित पेशा रहा है पर इसमें पैसे का अभी भी अभाव है। राइटर्स ऐरे—गैरे पब्लिशर्स के चंगुल में फंसकर समय व धन बर्बाद करते रहते हैं। वे इन बहुरूपिये पब्लिशर्स की चालों व सुनियोजित लूट का शिकार बन जाते हैं। अब यह दौर बंद होना चाहिए।
(क्रमशः)