अभी दो दिन पहले की बात है। राजा शॉपिंग माल के सामने रमेश मिला था – लक्जरी कार से उतरता हुआ। बिलकुल साहबों जैसा – तन पर बढ़िया सूट, नामी-गिरामी कंपनी के बूट! हाथ में बड़ा खूबसूरत महंगा मोबाइल थामे हुए। मैं हतप्रभ रह गया। कभी मेरे सामने फटी निकर-कमीज में रहने वाला रमेश अब बिलकुल ही अलग दुनिया का इंसान लग रहा था। मैं अपनी दुपहिया स्कूटी का टूटा-फूटा हेलमेट संभालता हुआ विचारों के सैलाब में गोते लगा रहा था।
मैंने हैरानी से पूछा – ‘और रमेश भाई! अरे तुम तो बिलकुल ही बदल गए। यह बदलाव हुआ कैसे?’
रमेश बोला – ‘चलो यार! सामने के कैफ़े हाउस में चलते हैं। वहीं जमकर बातें करेंगे।’
जल्द ही हम दोनों कैफ़े हाउस में बैठ गए। थोड़ी देर में बढ़िया से कॉफी आ गई। कॉफी की चुस्कियां लेते हुए रमेश ने बताना शुरू किया। वह बोला – ‘भाई तुम्हें तो मालूम है कि अपन दोनों पांच साल पहले एक ही मल्टीनेशनल कंपनी के लिए काम करते थे। अपन दोनों ने कमाई भी अच्छी की। वहीं काम करते-करते मैंने सेल्फ हेल्फ, फाइनेंशियल मैनेजमेंट, मोटिवेशन आदि विषयों पर किताबें पढ़नी शुरू कीं। मुझे धीरे-धीरे यह बात जमने लगी कि एक न दिन मैं यह कंपनी छोड़ दूंगा और अपना कुछ ऐसा काम शुरू करूंगा जिससे मुझे बिना ज्यादा कुछ किए अच्छी खासी आय होनी शुरू हो जाए।’
मैंने पूछा – ‘फिर तुमने आय अर्जित करने के लिए क्या किया?’
रमेश बोला – ‘मैंने तय कर लिया कि मेरी जो भी आय होगी उसका सिर्फ 50 फीसदी राशन-पानी, कपड़े- लत्तों आदि पर खर्च करूंगा। 20 प्रतिशत इमरजेंसी खर्चों के लिए बचाऊंगा। बाकी तीस प्रतिशत का शेयर, गोल्ड, प्रॉपर्टी, मासिक आय योजना आदि में निवेश करूंगा। अब मेरे पास एक खूबसूरत सा बंगला है। चार दुकानें खरीदकर किराये पर चढ़ा दी हैं। शेयर बाजार, गोल्ड, प्रॉपर्टी आदि मुझे अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से अच्छा-खासा कमाकर देते रहते हैं। बस, ऐसे ही जुगाड़ से सब कुछ चल रहा है। अब तुम बताओ, तुम क्या कर रहे हो?’
मैं बोला – ‘रमेश भाई ! मैं तो कोल्हू के बैल की तरह उसी कंपनी के लिए काम कर रहा हूं। क्या करें किस्मत साथ नहीं देती। बस हर महीने पांच तारीख को सैलरी मिल जाती है। जिस दिन सैलरी मिलती है उस दिन जबर्दस्त खुशी होती है। फिर 10-12 दिनों में सब साफ! बाकी समय तो बस हाथ पर हाथ धरकर बैठे और अगली सैलरी के इंतजार में कट जाता है। महंगाई के हिसाब से मेरी तो इनकम ही नहीं बढ़ रही। अब तुमने गुरुमंत्र दे दिया है, तो मैं भी ऐसा ही कुछ करूंगा। आंखें खोलने के लिए धन्यवाद रमेश भाई!’
मोरल ऑफ द स्टोरी: हालात को लेकर बिलकुल निराश मत होइए। सोचिए कम और कामयाब लोगों का अनुकरण कीजिए। सफलता मिलेगी।
(काल्पनिक कहानी)