रचनाकार : सुशीला तिवारी. पश्चिम गांव,रायबरेली
योग करो रहो निरोग
बीमारी से सभी ग्रसित और दुखी सब तन से,
योग करो रहो निरोग खुश रहोगे सब मन से।
शुभ मुहूर्त में रोज सुबह – सवेरे उठ कर,
जितनी क्षमता शरीर में उतना योगा नित कर।
ऋषी मुनी से ये विद्या मिली तुम्हें विरासत में,
बाबा रामदेव शिक्षा देते देश विदेश भारत में।
योग में ईश्वर बसते हैं उनका होता ध्यान,
काया निरोगी होगी तेरी हो “तिवारी”कल्याण।
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योग अपनायें
बहुमूल्य समय अपने जीवन का सदुपयोग करो ।
सुबह सवेरे उठ करके थोड़ा- बहुत योग करो ।।
योग से होती निरोगी काया चलो योग अपनायें,
अनुलोम विलोम करें नित जीवन सफल बनायें ।
सुंदर प्रकृति बनाई ईश्वर थोड़ा सानिध्य में बैठो,
योग करो बहे पसीना कुछ पल फुर्सत से बैठो ।
ध्यान करो ईश्वर का मिल जायेगी फिर मुक्ति,
अंतर्मन को स्वयं टटोलो और करो उसे शुद्धि ।
योग करो ध्यान लगाओ ओम करो उच्चारण,
सुंदर काया होगी निरोगी योग बड़ा साधारण ।
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वो बीता हुआ कल
अतीत की स्मृतियों में बस गया
वो बीता हुआ कल
कभी दुख की बदली छाई,
कभी मिले खुशियों भरे पल।
यादें अक्सर बोध कराती हैं,
क्या खोया क्या पाया
हांथ मलते रह गये कुछ हांथ न आया
ये जीवन यूँ ही हमने गंवाया।
पर समय के साथ स्मृतियों से बाहर निकलना
वर्तमान के साथ पड़ता है चलना
जिंदगी भर हम कोई न कोई जंग लडते हैं
कभी जीत हासिल कभी हार जाते हैं।
सबकुछ छोड़कर जिंदगी जियो बेफिक्र
समय के सफहों पर भर दें कई रंग
जो पाल रक्खे है स्मृतियों के भ्रम
छोड़कर आगे की तरफ बढ़ चले हम ।
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द्रौपदी पूछ रही पांडव से
द्रौपदी पूछ रही पांडव से किसने तुमको अधिकार दिया
मैं कोई जागीर हूं क्या जो खेल जुए में हार दिया
मछली की आँख बेध स्वयं अर्जुन ने स्वयंवर जीता था
मां कुन्ती ने वस्तु समझ कर हमको पांचो में बांटा था
धिक्कार तुम्हारे पौरुष पर सब सर को झुकाये बैठे हो
गदा भीम की कहाँ गई अर्जुन तुम गांडीव गिराये बैठे हो
अब तुम सबसे आस गई मेरी ये स्नेही जन जो बैठे हैं,
इनसे ही कुछ बात करूँ पर ये तो धर्म को खोये बैठे है
भीष्म पितामह कुछ तो बोलो अपने पौरुष को कुछ तोलो।
कुल की मर्यादा लज्जित हो रही नीति धर्म पर कुछ बोलो
अंधेर नगर वो हो जाता तब जहाँ का राजा चौपट हो,
उसके अधर्मी पुत्रों की मर्यादा लांघ रही जब चौखट हो
धर्म विमुख इस सभा बीच किसी से आसा क्या करना,
आर्त भाव मे रोई द्रोपदी आओ कन्हैया लज्जा रखना।
कृष्णा”ने पुकारा कृष्ण”को आये कृष्णा” न देर करी।
दुख हर लिया याज्ञसेनी का पल भर में”सारी”ढेर करी