रचनाकार : पलक नेमा, मुंबई
काफी दिनों बाद आज मौका मिला व्यस्त दिनचर्या से बाहर निकलने का। बस फिर देर किस बात की, चलिए चलते हैं आज एक अनजान यात्रा पर।
मुझे हमेशा से ही यूँ ही बिना कोई काम के, बिना कोई वजह के घूमना बड़ा अच्छा लगता और जगह-जगह रुककर बस लोगों को आते जाते देखना, काम के लिए इतनी मशक्कत करते देखना, यहाँ-वहाँ दोड़ भाग करते हुए देखना, कभी खुश, तो कभी हारे, तो कभी परेशान देखना…कुछ सिखा देता है…हमेशा। इसीलिए कहते हैं ना जीवन में अवलोकन बेहद ज़रूरी है, हमें इस धरती पर हर जीव कुछ ना कुछ तो सिखाता ही है लेकिन कभी भी अवलोकन करने के बाद एकदम से निर्णय पर नहीं पहुँचना चाहिए।
खैर, आते-जाते आजकल मैं मंदिरों में बड़ी भीड़ देख रही हूँ, हर छोटे से छोटा मंदिर एक लंबी इंसानी कतार में छुप सा गया है। ऐसा क्यों???
अब जैसे ही ये श्रावण मास खत्म होगा, मंदिर कितने सूने हो जाएंगे, मुश्किल से एक आध् ही इंसान जल लेकर आएगा चढ़ाने। ऐसा क्यों???
और सिर्फ श्रावण मास ही नहीं, अभी देखियेगा… आप आने दीजिये जन्माष्टमी, गणेश उत्सव, नवरात्री… सबकी भक्ति में इन कुछ दिनों के लिए एक अलग ही शक्ति होगी, जो की बहुत अच्छी बात है… ऐसा जोश, ऐसी भक्ति, इतना विश्वास, इतना प्रेम भगवान के प्रति…ये सब एक अलग ही सकारात्मक ऊर्जा होती जो की बस आपको खींच लेती है, भक्ति में ही मगन कर देती है, लेकिन उसके बाद क्या या इन सब त्यौहारों से पहले क्या???
इन सब त्यौहारों के दिन हर मंदिरों में इतनी भीड़ होगी, इतने लोग होंगे, इतनी भक्ति होगी की संभालना मुश्किल हो जाता है लेकिन ये सारे त्यौहार खत्म होने के ठीक एक दिन बात कभी उसी मंदिर के सामने से गुज़र कर देखियेगा, कितना सूना लगेगा, भगवान अकेले बैठे रहते, कोई शोर शराबा, कोई चहल पहल, कोई रौनक, कुछ नहीं। ऐसा क्यों???
अगर यही चीज़, बिल्कुल ऐसी की ऐसी यही चीज भगवान हमारे साथ करें तो???
चलो! आज इस भक्त का जन्मदिन है आज मैं इसकी सुन लेता हूँ, आज ये जो चाहता है मैं इसे दे देता हूँ, आज ये किसी मुश्किल में है, परेशानी में है, खतरे में है… ठीक है चलो आज मैं इसे बचा लेता हूँ… जन्मदिन है ना इसका। कल से एक साल तक ये कुछ भी कहता रहे, कितनी भी क्यों ना इसे मेरी ज़रूरत हो पर मैं अगले साल इसके जन्मदिन में ही इससे मिलूँगा या इसकी सुनूँगा।
लेकिन हमें तो पता भी नहीं होता ना जाने कितनी बारी वो हमें बचा लेते हैं, वो हमारे साथ रहते हैं, एक पल के लिए भी हमें अकेला नहीं छोड़ते, ये जो अभी हम साँस ले रहे हैं ये इस बात का प्रमाण हैं की वो हर साल, हर महीने, हर हफ़्ते, हर दिन, हर घंटे, हर मिनट, हर सेकेंड, हर पल हमारे साथ हैं।
मैं मानती हूँ आजकल की दिनचर्या काफी व्यस्त है सबकी, इसीलिए लोगोँ का हर रोज़ मंदिर जाना और उसी भाव से पूजा पाठ करना जैसा की त्यौहारों के वक़्त करते हैं ये सबके लिए संभव नहीं होगा।
अरे बाहर बने मंदिर तो छोड़िये लोग अपने ही घर के मंदीर में, अपने ही घर के भगवान की पूजा नहीं करते, एक धन्यवाद का हाथ तक नहीं जोड़ते उनके आगे। क्या ये सही है???
हमारे पास आज जो कुछ भी है सब ऊपर वाले की ही देन है, वो खुद विविध रूपों में आ जाते हैं हमें दो वक़्त की रोटी देने के लिए और हमारे पास दो मिनट भी नहीं होते उनको धन्यवाद कहने के लिए और सीना तानके, दोड़ते-भागते, कैसे भी बस पहुँच जाते हैं उनके पास ज़रा सी मुश्किल आने पर और जब कोई खुशी या हर्षोउल्लास का समय आता हम बस पहुँच जाते कहीं और जश्न मनाने।
चलो इस अनजान यात्रा की दो जानी पहचानी जादुई मंज़िल माफ़ी और धन्यवाद पर ये सफ़र खत्म करते हैं।
मांग लो आज ऊपर वाले से माफ़ी की हमने उन्हें कहीं ना कहीं कभी ना कभी भुला दिया है और कह दो उन्हें धन्यवाद की हमारी इतनी गलतियों के बावज़ूद भी हमारा दिल धड़कता रहे, उन्होंने इस बात को कभी भुलाया नहीं है! ये मुस्कान व तमाम चमक-दमक प्रभु तुम्ही से है !
4 Comments
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Very good content
बोहत ही खूब 👏👏👏दिल छू लिया👏
👍Good writeup 👏
👍Good writeup👏
Keep it up