रचनाकार : हेमन्त पटेल
ये तेरा शहर शोर का गढ़ है
कोलाहल की ओढ़े चादर है
दिखने को तो ये सतरंग है, पर
यहाँ पौधों से ज़्यादा पतझड़ है
तहज़ीब
वो तहज़ीब से हुनर दिखाए अपने
मैं सलीक़े से मुल्तवी करता रहा
मेरा दिल बंदगी में था उसकी
वो चाक-ए-जिगर करता रहा
अर्थ –
चाक जिगर — हृदय को काटना, जिसका दिल टूट गया हो, दुःखित, हतोत्साह
चाक — फटा हुआ
मुल्तवी — स्थगित, टालना, रुकने वाला
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छंद
छंद जो चंद हैं, वो तुम्हें अर्पण हैं
तन मेरा, मन तेरा, भीतर द्वंद है
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सवाल—जवाब क्या करना?
हम जिसे पसंद करते हैं
उससे सवाल-जवाब नहीं करते
करते हैं— स्वीकार उसे
और उसे समर्पण कर देते हैं
लेना-देना तो व्यापार हो गया
इस फेर में संन्यासी-दरवेश नहीं पड़ते
यूॅं तो ख़्याल आता ही नहीं दरमियान
उसे देखकर सजदा हो जाता है
ख़ुदा क़सम किसी इरादे से नहीं करते