रचनाकार : पंकज शर्मा “तरुण “, पिपलिया मंडी (म. प्र.)
यह संसार (कविता)
जिसने यह संसार बनाया,दिया अजब आकार।
इस जीवन को जीने का,दिया अजब आधार।।
छुप कर सुंदर चित्र बनाता,नदिया और पहाड़।
कहीं हैं मृग छोनों की टोली,भय की कहीं दहाड़।।
कहीं मोर नाचे है छमछम,भ्रमर सुनाते गान।
अमराई में कोयल कूके,कहीं खेत खलिहान।।
सतरंगी धरती है अपनी, जीवों का वरदान।
उन्नत हो कर खड़ा हिमालय,देते सब सम्मान।।
लाल रंग की लीची सुंदर,केसर के उद्यान।
कहीं सेव के बाग बगीचे,बर्फीले मैदान।।
कभी -कभी मन में उठते हैं,सुंदर कुछ उद्गार।
एक वही चित्रकार दुलारा,है शिव पालनहार।।
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पल पल का साथ (गीतिका)
उन्नत करता माथ हमारा।
वो पल पल का साथ हमारा।।
हमने थामा खुशी खुशी से।
कभी न छूटे हाथ हमारा।।
नहीं किसी से डरते हैं हम।
शिव शंकर है नाथ हमारा।।
रीत रिवाज आढ़े न आते।
निष्कंटक था पाथ हमारा।।
जान नहीं पाया है अब तक।
कोई छुपा जो राज हमारा।।
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भूलती क्यों (कविता)
अर्थ की इस कामना में ,तुम भूलती क्यों नार हो।
सभ्य शिक्षित देश की बस, तुम ही एक आधार हो।।
क्यों अमावस के अंधेरे, को लिए तुम हो घूमती।
कर्ण भेदी गीत पर तुम, अश्लीलता से झूमती।।
जननी हो तुम हो धरा भी,इक प्यार का संसार हो।
मां बहन बेटी सजनिया,सुख शांति का सुविचार हो।।
तुम ही काली तुम ही दुर्गा, तुम ही पन्ना धाय हो।
आए जो संकट समय तो,तुम ही दिखाती राह हो।।
राम की शक्ति तुम्ही हो, किसना की राधा भी हो।
दुष्ट दानव के लिए तो, बनती तुम बाधा भी हो।।
रोक लो अश्लीलता को, अंत इसका होता बुरा।
हिंद की हो तुम सुता तो,सोच लो तुम रुक कर जरा।।
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किसने देखा (गीतिका)
किसने देखा है ईश्वर को।
जिस ने सजाया निज घर को।।
मिली जिसे ममता की छाया।
सदा सलामत रख उस सर को।।
खुशियों का संसार दिया है।
रख संभाल कर उस सादर को।।
मां ही प्रतिनिध है ईश्वर की।
कह दो यह हर गांव शहर को।।
ममता की शीतल छाया है।
सुत कम मतकर तू आदर को।।
अमृत की वर्षा करती जो।
मत फोड़ो तुम उस गागर को।।
गुण रत्नों की खान रही जो।
खारा मत कह इस सागर को।।
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