रचनाकार : यशवन्त कोठारी, जयपुर
मेरा मकान बड़ा शुभ है जी, देखो आते ही विदेश जाने का चांस मिल गया।
अरे ऐसा था तो तुम ही क्यों नहीं चली गई, इतने वर्षों से इसी मकान में हो। यह तमाचा मिसेज गुप्ता का था। मिसेज शर्मा कब चुप रहने वाली थीं –
तुम्हारे रहते मैं कैसे जाती ? तुम्हेें पहले भेजूंगी, तब जाऊंगी।
कहां भेजोगी?
स्वर्ग में।
तब तो अपन नहीं मिल सकेंगी, क्यांेकि तुम तो वहाँ भी नरक में रहोगी।
मिसेज प्रोफेसर बेचारी हैरान, परेशान। प्रोफेसर साहब के जाने के बाद हमारी देखभाल कौन करेगा ?
शर्माजी ने कहा………आप चिन्ता मत करिए। मैं किसलिए हूं। आप निश्चिंत रहिए, मैं पीछे से सब देखभाल कर लूंगा।
और प्रोफेसर साहब विदेश चले गये।
शर्माजी, सुबह शाम मिसेज प्रोफेसर के फ्लैट के चक्कर लगाने लगे।
पड़ोसिन को नया मौका मिला।
अरे देखो, यह शर्मा हर समय यहीं घुसा रहता है।
अपना क्या है।
अरे यह तो मुहल्ले की इज्जत का सवाल है – मिसेज गुप्ता बोलीं।
अरे भाई जब मियां बीबी राजी को क्या करेगा काजी।
वो तो ठीक है, लेकिन ये मुआँ तो रात को भी यहीं रहता है।
दिन में तो मौका नहीं मिलता होगा।
बुड्ढा हुआ, पर जरा भी शऊर नहीं। बेटी ब्याहने लायक है।
अरे तुमने नहीं सुना क्या ?
क्या……..? आश्चर्य से सभी की आंखे खुली रह गयीं।
यही, उस दिन रात को बेबी मन्दिर गयी तो दूसरे दिन सबेरे आई। बस तब से ही मिसेज शर्मा की बोली बन्द है।
होगा जी किस किस को रोएं। लंका में सब बावन गज के।
हां, सो तो है।
अब हमारे ये तो बिल्कुल गऊ है जी, बूढ़ा बेचारा कहीं मुंह नहीं मारता।
और मेरे वो, नीचे नजर करके आते हैं और नीची नजर करके जाते हैं।
हां-हां, मैं देखती नहीं। एक रोज बाजार में मिल गए, तो पहचाना भी नहीं, वो तो मैंने ही बताया।
हां जी, आदमी को ऐसा ही होना चाहिए।
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तुम इतनी रात यहां क्या कर रहे हो ?
देखो तुम भी देखो इश्क का चमत्कार। उन्होंने लाइट बुझा रखी है और ऐश कर रहे हैं।
अरे तो तुम्हंे क्या करना है ?
उसका पति उसे उसी को सौंप गया है, तुम चाहो तो भी वह तुम्हें हाथ नही धरने देगी।
मुझे क्या करना है जी उसका, मगर यह शरीफाों का मोहल्ला है। वह अन्दर चली जाती है और पति महोदय फिर दरवाजे पर पहरा देने लग जाते हैं।
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टूटी-फूटी खाट ठीक………..करवा लो।
मोहल्ले में खाती, मोची, सब्जी वाला सभी आते और मिसेज खन्ना की आया उन्हें फ्रिज का ठण्डा पानी पिलाती। आंख मारती, मुस्कराती और कुछ न कुछ प्राप्त कर लेती। सब्जी वाले से कहती-
तुम तो गोभी का फूल हो।
नहीं, मैं तो तेरे प्यार में अप्रेल फूल हूं। और आया शरमा जाती या शरमाने का अभिनय करती। एक नींबू उठाती और अन्दर भाग जाती।
क्रमश:
(काल्पनिक रचना)