रचनाकार : यशवन्त कोठारी, जयपुर
मिसेज राघवन ने सब्जी वाले को अपने सामने ठहरवा लिया। मिसेज गुप्ता वहां नहीं आई।
मिसेज राघवन ने सब्जी तो बहुत कम ली, मगर ठेले वाले को एक घण्टा रोके रखा। बस मिसेज गुप्ता के लिए यही काफी था।
देखो मुटल्ली को, सब्जी वाले से ही आंखे लड़ा रही है।
हाँ बहन। यह मिसेज शर्मा थी, जो मकान मालकिन थीं।
शर्म हया तो कुछ रह ही नहीं गयी है।
अरे जवानी हम पर भी आई थी। हाय क्या दिन थे वो भी, लेकिन कसम ऊपर वाले की, अगर ऐसी कोई ओछी हरकत की हो तो।
हां-हां, अपने जमाने में यह बस कहां था भाई।
अब देखो कैसेे दीदे मटका रही है। लेगी पाव भर बैंगन और दुनिया जहान की बातें करेगी। जाते-जाते कुछ मिर्च और धनियां भी मांग लेगी।
ये मुए मरद होते ही ऐसे हैं जी।
चल भाई ए सब्जी वाले। मिसेज शर्मा ने आवाज दी।
आया मेम साहब। ठेले वाला भी चिल्लाया।
ये बैंगन क्या भाव हैं ?
पचास पैसे पाव।
वहां तो चालीस के दे आया।
नहीं बीबी जी, चालीस के नहीं दिए।
क्या बात करते हो। हमने देखा है।
वो तो चेन्ज नहीं थी न। इसलिए।
अच्छा चालीस के देगा।
नहीं।
नहीं, कैसे नहीं देगा। एक ही मोहल्ले में दो भाव नहीं चलेंगे। देगा न बोल ?
अच्छा ले लो बेनजी।
बेचारा सब्जी वाला।
मिसेज प्रोफेसर मिसेज खन्ना के पास बैठी है। मिसेज खन्ना मोहल्ले की नाक है और अपनी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देतीं। कहने लगी इस शर्मा के बच्चे को चाहिए कि अपनी पत्नी को बांध के रखे। पता नहीं कहां-कहां मुंह मारती है। उस दिन मेरी बेबी को बुलाकर पूछ रही थी।
क्यों बेटी, पापा ने दौरे से चिट्टी लिखी या नहीं।
अरे नही लिखी तो तेरे बाप का क्या जाता है ? तू क्यों रो रही है, कहे तो तुझे प्रेम पत्र लिखवा दूं। कमी से भरी औरत हैं।
मिसेज प्रोफेसर नई-नई आई हैं लेकिन दुनियादारी से वाकिफ। ऐसे मौके पर क्या कहना चाहिए, जानती है, बोल पड़ती हैं।
आप से क्या कहूं, भाभीजी, किसी से कहना नहीं। एक रोज खिड़की से मेरे उनको देख-देख कर हँस रही थी। मैंने तो तुरन्त खिड़की बन्द करवा दी।
ठीक किया जी,उसका मुंह नोच लेना था।
सुना है, प्रोफेसर साहब विदेश जा रहे हैं ?
हां, चांस आ गया तो चले ही जायेंगे। पोस्ट डाक्टरल वर्क के लिए जाना पडे़गा।
चलो फिर तो तुम्हारे मजे ही मजे।
क्यों मैं तो यही रहूंगी।
अरे यही तो मैं कह रही हूं।
यहीं होगी तभी तो, साजन घर नहीं, मुझको किसी का डर नहीं।
आप तो भाभीजी बस………और मिसेज प्रोफसर शरमा कर उठ जाती हैं।
कॉलोनी में शोर मच गया है। प्रोफेसर साहब विदेश जा रहे हैं। हर घरवाला उनसे अपने नाजुक और महत्वपूर्ण संबंधों की घोषणा कर रहा है। मिसेज शर्मा बोल पड़ी –
मेरा मकान बड़ा शुभ है जी, देखो आते ही विदेश जाने का चांस मिल गया।
क्रमश:
(काल्पनिक रचना)
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