शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
मॉं
मॉं ,
मॉं अगर दीया है
माने तो पिता —
बाती है
परिवार की थाती है
मॉं थाली तो पिता
भोजन है ।
मॉं पानी तो पिता
रोगन है ।
बच्चों के सर का साया
साया है
पिता से बच्चों की काया है
पिता स्कूल है
पढ़ाई है
बच्चों की परछाई है
अपने खून का हर कतरा
जलाकर भोजन लाता है
बच्चों के लिए जलता है
बच्चों के लिए तपता है
कभी इज्जत तो बेइज्जती
सहता है
कहने तो तो पिता इंसान है
मगर सोचो वह भगवान है
भगवान है,,भगवान है,,, भगवान है।
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दुआ
बहुत करती असर मॉं की दुआ
मॉं के चरणों में स्वर्ग है
स्वर्ग लोक किसने देखा ; पर मॉं चरणों में स्वर्ग दिखता
जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था ;मॉं की दृष्टि में बच्चा रहता
भेज रहा था जब मानव को
इस धरती पर भगवन
मानव बोला प्रभु अकेला कैसे
जाऊँ मैं मृतुभुवन
बोले भगवन संग में तेरी माँ होगी ; जिसमें रक्षण क्षमता
जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था तक ;मॉं की दृष्टि में बच्चा रहता
मॉं न होती बच्चा न होता रुक
जाती यह श्रृष्टि
कोई बच्चा नहीं जन्मता ज्यों
फसलें बिन वृष्टि
रोते विलखते माता स्नेह से वंचित ; हर बच्चा खुद मरता
जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था तक ;मॉं की दृष्टि में बच्चा रहता
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ममता
माँ की ममता से धरा पर कुछ भी नहीं अनमोल
राजा रंक या राम कृष्ण भी चुका सके न मोल
ईश्वर का प्रति रूप में आती
सबकी माता
बच्चों के लालन पालन में
नष्ट कर देती काया
जैसे सूर्य को देखती रहती है ये पृथ्वी डोल
राजा रंक या राम कृष्ण भी चुका सके न मोल
किस्मत लिखने का अधिकार
गर माता को मिल जाता
सच कहता हूँ कोई भी बच्चा
दरिद्रता में न पल पाता
एक क्षण माता लिखने में न करती टालमटोल
राजा रंक या राम कृष्ण भी चुका सके न मोल
Kudos! Bravo!