अपनी योग्यता के बल पर राजू को एक बड़े कॉर्पोरेट घराने में अस्टिटेंट मैनेजर की नौकरी मिल गई। अठारह लाख रुपये सालाना का पैकेज था। राजू का हाथ खुला हुआ पहले से ही था। इतनी पेमेंट ने उसका सिर घुमा दिया। होटलबाजी, यदा-कदा ड्रिंक करने, महंगे से महंगा मोबाइल फोन और लक्ज़री गाड़ी खरीदने के लिए ढेर सारे कर्ज लेने में जुटे रहने में ही उसका अधिकतर धन जाया होने लगा। कुल मिलाकर बरसों से जो भी शौक-मस्ती के अरमान उसने दिल में दबा रखे थे, उन सबको पूरा करने में वह पैसा बर्बाद करने लगा।
उसी ऑफिस में उसका एक दोस्त था- विकास। वह राजू को बार-बार कहता कि ‘भइया, इतनी फिजूलखर्ची ठीक नहीं। अपनी आय का कम से कम दस प्रतिशत को बचाया करो। इसके अलावा आय का अन्य स्रोत भी डेवलप करने की कोशिश करो।’ पर राजू एक कान से उसकी बात सुनता दूसरे कान से निकाल देता।
पर भविष्य किसने देखा था कुछ समय पहले ही देश में कोरोना का व्यापक प्रसार हो गया। रोज हजारों लोग मरने लगे। लॉकडाउन के कारण उद्योग-धंधे सब चौपट हो गए। कोरोना की मार राजू के कॉर्पोरेट घराने पर भी पड़ी। महामारी के कारण उसमें कार्यरत कई लोगों को जान गंवानी पड़ी। राजू के भी फेफड़ों में जबर्दस्त इन्फेक्शन हो गया। कंपनी ने वर्क फ्रॉम होम का सिलसिला शुरू किया। पर राजू वह भी करने में असमर्थ हो गया। नतीजतन राजू की कंपनी ने उसकी सेवाएं खत्म कर दीं। सैलरी आना बंद हो गई। घर का खर्च चलाना व पुराना शान-शौकत भरा स्टेटस मेंटेन रखना मुश्किल हो गया। अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा राजू दिन-रात विकास की कही बातें याद करके पछताता रहता।
राजू का सरकारी अस्पताल में जैसे-तैसे इलाज हुआ। जब वह थोड़ा स्वस्थ होकर घर लौटा तो विकास उससे मिलने आया। उसे देखते ही राजू बोला, ‘दोस्त! तुमने मुश्किल वक्त तो बड़ी आसानी से काट लिया पर अपनी जिंदगी तो नौकरी नहीं रहने से ठप हो गई है। अब बताओ मैं क्या करूं?’
इस पर विकास बोला, ‘कोई बात नहीं। वक्त कभी एक जैसा नहीं होता। मैंने चींटियों को देखा है कि क्या खूब तैयारियां करती हैं वे जाड़ों का मुकाबला करने के लिए। उन्हें मालूम रहता है कि जाड़े के दिनों में खाने-पीने की मुश्किल आएगी। इसलिए वे गर्मी से ही जुट जाती हैं : राशन-पानी इकट्ठा करने में। वे गर्मियों में जमकर मेहनत और संग्रह करती हैं। ऐसे ही अपने को जब अच्छे दिन रहें अच्छी मेहनत करके कम से कम छह माह के गुजारे के लिए सामान, अतिरिक्त आय, बचत आदि का जुगाड़ रखना चाहिए ताकि नौकरी नहीं रहने पर भी जिंदगी सुकून से कटे। कम से कम एक और आय का स्रोत तलाशना चाहिए।’
राजू बोला – ‘भइया, तुम्हारी बातें समझ में आ रही हैं। पर अब मैं क्या करूंगा?’
विकास बोला – ‘फिकर नॉट। मैं हूं ना ! मैंने थोड़ा-बहुत पैसा बचाया है, उससे हम दोनों मिलकर एक दुकान डाल लेंगे। जमकर मेहनत करेंगे। बचत व निवेश की आदत डालेंगे तो मुझे भरोसा है कि हम बहुत अच्छे ढंग से कामयाब हो जाएंगे।’
मोरल ऑफ द स्टोरी: छोटे-छोटे जीवों से सीखें कि वे जिंदगी को आसान बनाने के लिए कितनी सूझ-बूझ से काम करते हैं। फिर हम सब तो इंसान हैं और इंसान होने के नाते मुश्किल वक्त में हमें अपने दोस्तों की मदद जरूर करनी चाहिए।
(काल्पनिक कहानी )