चैप्टर – 2
पी राजू — बिलकुल पक्का। ये कुबेरनेट लगता है हम सबको करोड़पति बना के ही छोड़ेगा। मैं भी इसके गेम खेलकर इनाम जीतकर करोड़पति बनूंगा!
शाम को पी राजू ने अपने वादे के मुताबिक सनराइज में निशा, आशुतोष के साथ तीन और दोस्तों को भी इडली, डोसा और पायसम की शानदार पार्टी दी। पार्टी के दौरान निशा ने पी राजू से पूछ लिया ।
निशा— ओ मेरे हीरो! मेरे लिए हीरों का हार तो लाएगा न?
पी राजू — बिलकुल लाएगा। बस, पइले मेरे कूं कुछ बड़ा हो जाने दो। कुछ सर्विस—वर्विस से लग जाने दो।
निशा — ऐसे सोचेगा तो बरसों निकल जाएंगे। आखिर नेट का खजाना तो है न! एकाध तगड़ा इनाम जीत के मुझे दिला देना हीरों का हार! मैंने आनलाइन मंगाने का सोच भी रखा है। बस ज्यादा नहीं 60 थाउजेंड का है।
60 थाउजेंड का हार इसे चाहिए। यह सोचकर पी राजू चिंता में पड़ गया। जब पार्टी का बिल आया तो उसकी चिंता कम होने के बजाय और बढ़ गई। पूरे 1200 रुपये का बिल बना था! आखिरकार 200 रुपये उसने आशुतोष से लेकर बिल चुकाया।
पार्टी के बाद पी राजू घर आकर सोचता रहा कि निशा को इम्प्रेस करने के लिए वह 60 हजार का जुगाड़ कहां से करे? क्या कुबेरनेट डॉटकॉम का कोई गेम ऐसा है जिसमें इतनी बड़ी रकम मिल जाती हो? इनाम, रुपये का जुगाड़, हार आदि के बारे में सोचते—सोचते कब रात से सुबह हो गई उसे पता ही नहीं चला।
अगले दिन सुबह पी राजू बिस्तर से उठा तो उसका पूरा बदन दुख रहा था। जब वह रात के चिंतन—मनन के बारे में ब्रेकफास्ट करके आशुतोष के पास जाने वाला था तभी पापा की तबीयत और बिगड़ने लगी। उन्हें उल्टियां होने लगीं और उनकी सांस भी जोर—जोर से चल रही थी। उनकी हालत देखकर जगदंबा बोलीं।
जगदंबा — राजू! मैं इनको देखती। तू जल्दी से पास की शॉप में जाके मेडिसिन लेकर आ!
इसके साथ ही उन्होंने पापा के पर्स से पांच सौ रुपये निकालकर राजू को पकड़ा दिए।
राजू रुपये लेकर कुछ सोचते हुए बाहर निकल गया। वह भागकर तीन—चार मकान दूर स्थित आशुतोष के घर पहुंचा। आशुतोष हल्क बनाम सुपरमैन गेम कुबेरनेट डॉटकॉम पर खेल रहा था। उसके हाथ में पांच सौ रुपये का नोट देखकर आशुतोष बोला ।
आशुतोष — यार! इतनी सुबह आ गए पैसे लौटाने? इतनी भी जल्दी क्या थी?
पी राजू — ये पइसा तेरे को लौटाने वासते नही। मम्मा पापा के मेडिसन के वासते दिया। अब तुम ये गेम छोड़के मेरे साथ मेडिसिन लेने चलो न! मेरे कूं बहुत घबराहट होती!
आशुतोष — फिक्र मत करो। सब ठीक हो जाएगा। पहले मैं ये गेम फिनिश कर लूं।
पी राजू — उधर मेरे पापा का गेम बजता इधर तुम ये गेम के पीछे पड़ता। मैं अकेले ही जाता।
आशुतोष — अरे! गुस्सा मत हो। मैं अगर ये गेम जीत गया तो मुझे नब्बे लाख रुपये मिलेंगे!
पी राजू — सच्ची?
आशुतोष — सच में। मैं कहता हूं कि तू भी यह गेम खेल ले। बस दस मिनट का है। दस मिनट में तेरे पापा को कुछ नहीं होगा। भरोसा रख। हां, इसमें इनाम बड़ा है सो रजिस्ट्रेशन फीस भी ज्यादा है केवल 300 रुपये!
नब्बे लाख रुपये की बात सुनकर पी राजू की भी आंखें चौड़ी हो गईं। उसे लगा कि दस मिनट में नब्बे लाख रुपये कमाने का मौका गंवाना महामूर्खता होगी। वह कल्पना करने लगा कि जब नब्बे लाख रुपये उसके खाते में जमा होंगे तो कैसे सबकुछ बदल जाएगा। हो सकता है कि पापा की बीमारी प्राइज मनी की बात सुनकर ठीक हो जाए। निशा तो अपने गले के लिए हार ले ही लेगी और उसकी बांहें मेरे गले का हार बन जाएंगी। मम्मी की भी माली हालत सुधर जाएगी। फिर वह अपने दोस्तों के साथ होटल रेडिसन में ग्रांड पार्टी करेगा। अपने पंद्रह—बीस दोस्तों को बुलाएगा और पूरी रात धमाल मचाएगा।
तभी आशुतोष की आवाज से उसके कल्पना के दौड़ते घोड़ों पर लगाम लगी।
आशुतोष — राजू! अगर गेम खेलना है तो दो मिनट में रजिस्ट्रेशन कर ले। कहीं ऐसा न हो भारी ट्रैफिक के कारण बेवासाइट क्रैश हो जाए और कैश कमाने का मौका हाथ से निकल जाए।
पी राजू — ठीक है जी! पर मेरे पास सिस्टम नईं।
आशुतोष — वो सामने की टेबल पर मेरे पापा का लैपटॉप रखा है। जल्दी से खोल के शुरू हो जा।
पी राजू आशुतोष के कहे मुताबिक लैपटॉप खोल के बैठ गया। पर खोलते ही बोला —पर मेरे एकाउंट में पइसा नईं जी!
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )