आखिरी चैप्टर
आशुतोष — वो सामने की टेबल पर मेरे पापा का लैपटॉप रखा है। जल्दी से खोल के शुरू हो जा।
पी राजू आशुतोष के कहे मुताबिक लैपटॉप खोल के बैठ गया। पर खोलते ही बोला —पर मेरे एकाउंट में पइसा नईं जी!
आशुतोष ने माथा ठोकते हुए धत् तेरे की कहा और बोला — राजू! चिंता मत कर! ये पांच सौ रुपये मुझे दे दे। मैं अपने एकाउंट से तेरे एकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर देता हूं, फटाफट!
पी राजू ने आशुतोष को फौरन वह नोट बिना कुछ सोचे—समझे पकड़ा दिया। और आनलाइन ट्रांसफर हुई रकम से हल्क वर्सेज सुपरमैन गेम के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करके खेलना शुरू कर दिया।
अभी इस गेम का क्लाइमेक्स आने को ही था कि आशुतोष के पापा सूर्यकांत की आवाज आई — बेटा, आशु! मेरा लैपटॉप लाना। मुझे आफिस लेकर जाना है।
उनकी आवाज सुनते ही पी राजू को लगा मानो उसके अरमानों पर बिजली गिर पड़ी हो। आशुतोष के पापा कड़क मिजाज हैं। उन्हें उनका लैपटॉप फौरन लौटाना ही होगा। अब गेम भले ही अधूरा रह जाए। इनाम मिले या न मिले! हल्क वर्सेज सुपरमैन का गेम पूरा हो या न हो! अगर उसके पापा को पता चल गया कि मैं इस पर गेम खेल रहा था तो मुमकिन है कि उनका पारा बेहद हाई हो जाए और एंग्री यंग मैन बन जाए! यह सब सोचकर उसने फटाफट लैपटॉप बंद किया और चुपचाप बैठ गया।
पापा की रौबीली आवाज सुनकर आशुतोष भी सहम गया। उसने भी अपना पीसी बंद कर दिया। तभी उसके पापा कमरे में आए। उन्हें ऐसा लगा कि जरूर दोनों कुछ गड़बड़ कर रहे थे। उन्हेांने कड़क आवाज में पूछा — क्या चल रहा था यहां?
आशुतोष सहमते—सहमते बोला — वो पापा! हम हम गेम गेम खेल रहे थे।
सूर्यकांत — कौन सा गेम?
आशुतोष ने सोचा कि अब झूठ बोलना मुश्किल है। क्योंकि पापा कंप्यूटर के अच्छे जानकर हैं। हो सकता है कि कंप्यूटर की हिस्ट्री चेक करके पता कर लेंगे कि वे कौन सा गेम खेल रहे थे। अत: उसने हथियार डालना ही उचित समझा।
वह डरते—डरते बोला — पापा! हम पैसे वाला गेम खेल रहे थे। वो हल्क और सुपरमैन की फाइट वाला!
यह सुनकर सूर्यकांत ने सोचा कि बच्चा सच बोल रहा है। उन्हें आफिस जाने की जल्दी भी है। अत: ऐसे में बच्चे को डांट—डपट करना ठीक नहीं होगा। फिर भी उन्होंने तनिक दिखावटी अंदाज में आशुतोष को डपटते हुए कहा —बेटा! आज तुम ये गेम खेल रहे हो। कल ये गेम तुम्हें खेलेंगे। ये शुरू में लोगों को आसान से क्विज आदि खिलाकर फंसाते हैं। इसके बाद जब गेम्स की लत लग जाती है तो इनके साफ्टवेयर का एलगोरिद्म ऐसा सेट रहता है कि लोग बार—बार हारने से एक बार सिर्फ एक बार अच्छा दांव लगाने के चक्कर में पड़ जाते हैं। इससे लोगों की जेबें ढीली होने लगती हैं और लत लग जाने से कइयों का तो दिवाला ही पिट जाता है। तीन चार दिन पहले ही दैनिक प्रभा संदेश में ही एक खबर आयी थी कि एक चौबीस साल के लड़के ने ऑनलाइन गेम्स में बार बार हरने के कारण आत्महत्या कर ली थी इतनी बुरी होती है ऑनलाइन गेम की यह लत।आई बात समझ में?
यह सब बातें सुनकर पी राजू और आशुतोष कान पकड़ते हुए बोले — अब से ऐसे गेम्स से तौबा!
फिर पी राजू ने बताया कि कैसे उसने मम्मी से पापा की दवा के लिए मिले पांच सौ रुपये आशुतोष को आनलाइन गेम के चक्कर में आकर दिए थे।
यह सुनकर सूर्यकांत झुंझलाहट भरे स्वर में बोले — बेटा! ऐसा नहीं करना चाहिए। अंकल के लिए दवा बहुत जरूरी है। तुम लौटाओ इसके पांच सौ रुपये!
इसके बाद आशुतोष ने पांच सौ रुपये पी राजू के हाथ में दे दिए। पी राजू को अब बेहद पछतावा हो रहा था कि वह इनाम के लालच में अपने पापा की सेहत को दांव पर लगाने चला था। उसके मन में अपने पापा,अपनी घर की स्थिति, गर्लफ्रेंड आदि को लेकर भावनाओं का सैलाब उमड़ आया। वह अस्फुट आवाज में बोला — सॉरी अंकल! मैं गलत था जी!
सूर्यकांत उसे थपथपाते हुए बोले— बेटा! अभी देर नहीं हुई। चलो आशुतोष के साथ जल्दी जाकर पापा के लिए दवा ले आओ। मुझे आफिस भी जाना है — दिनभर कोल्हू के बैल की तरह जुतने!
यह सुनकर दोनों बच्चों के चेहरे पर मुस्कान तैर गई और वे फौरन पी रवींद्र के लिए दवा लेने के लिए निकल गए।
(काल्पनिक कहानी )