चैप्टर -1
अपने पड़ोसी शरद की बातें सुनकर बाबूराव शिंदे का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वे सोचने लगे कि मैं बेकार में ही इसको मिठाई खिलाने पहुंच गया। लगता है इसे हमारी खुशी बर्दाश्त नहीं हो रही। क्या ही अच्छा होता जो मेरे पैर इसके घर में नही पड़ते। लगता है अग्निपुंज का नाम सुनकर ही इसके तन—बदन में आग लग गई है! इसके बाद वे गुस्सा होकर वापस अपने घर की ओर चल पड़े। उन्हें लग रहा था कि शरद ने उनके अरमानों पर मानो कई घड़े पानी उडेल दिया हो। घर आकर बाबूराव चादर तानकर सो गए। उनकी पत्नी वृंदा पूछती ही रह गई कि क्या हआ? पर बाबूराव के मुंह से कोई बोल नहीं फूटे। करीब दो दिनों तक वे उदास बने रहे।
इस वाकये से दो दिन पहले की बात है। उस शाम को बाबूराव अपने आफिस की ड्यूटी पूरी कर घर की तरफ साइकिल से लौट रहे थे कि उनके मोबाइल फोन की घंटी बज उठी। उन्होंने साइकिल को सड़क से उतारकर एक पेड़ के नीचे रोका और कुर्ते से अपना की पैड वाला हैंडसेट निकाला। उन्हांने मोबाइल की स्क्रीन पर नजर गड़ाकर देखा कि यह काल तो पुणे में पढ़ाई के लिए गए उनके बेटे प्रवीण का है। मन में उमड़ते विचारों के सैलाब के बीच उन्होंने काल अटेण्ड किया।
बाबूराव शिंदे – हां, बोलो बेटा! सब बढ़िया तो है? फोन पर दूसरी तरफ से उन्हें बेटे का चहकता हुआ स्वर सुनाई दिया ।
प्रवीण – बाबूजी,एक खुशखबरी है। मेरा सलेक्शन अग्निपुंज के रूप में हो गया है।
यह खबर सुनकर बाबूराव के चेहरे पर बड़ी मुस्कान तैर गई। वे बोले
बाबूराव शिंदे – वाह बेटा !!! यह तो तुमने बहुत अच्छी खबर सुनाई। सब गणपति बप्पा और तुम्हारी आई का आशीष है। अब कम से कम चार साल के लिए तो मैं तुम्हारे करियर के प्रति निश्चिंत हो गया।
प्रवीण – हां, बाबा! बचपन में आपने मुझे शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, तानाजी आदि की कहानियां सुना—सुनाकर इस लायक बना दिया कि आज मुझे यह खुशखबरी आपको सुनाने का मौका मिल रहा है। बाबा अब देखना हमारे सब दुख दूर हो जाएंगे।
बेटे के स्वर में झलकते कृतज्ञता के भावों को भांपकर बाबूराव का सीना चौड़ा हो गया। वे भर्राये गले से बोले।
बाबूराव शिंदे – ठीक है बेटा! सब तुम्हारी मेहनत का नतीजा है। अब ये बताओ कब आ रहे हो नासिक?
प्रवीण – बाबा, अगले महीने की पहली तारीख से डयूटी ज्वाइन करनी है। अभी दस दिन हैं मेरे पास! मैं एक—दो दिन में ही नासिक आऊंगा और आपसे तथा अपनी आई से पैर छूकर आशीर्वाद लूंगा।
बाबूराव शिंदे – ठीक है बेटा, तुम्हें जब फुर्सत मिले आ जाना। हमें इंतजार रहेगा। बेटा, अभी मैं रास्ते में था। अब जल्दी से घर पहुंचकर तुम्हारी आई को भी यह खुशखबरी सुनाना है।
प्रवीण – अच्छा बाबा! प्रणाम!! यह कहकर प्रवीण ने फोन काट दिया।
प्रवीण द्वारा सुनाई गई खुशखबरी से बाबूराव के थके—मांदे पैरों में मानो जान आ गई। वे जल्दी—जल्दी पैडल मार कर तेजी से घंटी बजाते हुए चपरासी क्वार्टर्स में स्थित अपने क्वार्टर पहुंचे। उनके चेहरे पर बिखरी खुशी को देख कर प्रवीण की आई वृंदा के चेहरे पर भी मुस्कान तैर गईं वे चहकते हुए बोलीं।
वृंदा – क्या हुआ, प्रवीण के बाबा जो आज इतने खुश दिख रहे हो? क्या आपकी दफतर में तरक्की हो गई क्या आप चपरासी से क्लर्क बन गए?
बाबूराव रहस्यमय मुस्कान के साथ बोले – वृंदा! इससे भी बड़ी खुशखबरी है! अपना बेटा अब अग्निपुंज बनने वाला है। वह फौज में नौकरी करेगा।
वृंदा – वाह! यह तो बहुत अच्छी खबर है! पर प्रवीण की पढ़ाई का क्या होगा? वृंदा चिंता भरे स्वर में बोली।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी)