चैप्टर – 3
प्रवीण — बाबा ऐसा करते हैं कि हम इस बारे में दिमाग लगाने के बजाय किसी जानकार की मदद ले लेते हैं।
बाबूराव ने थोड़ी देर तक सोचने के बाद कहा — बेटा, तुम्हें विजय चव्हाण अंकल याद हैं? जब फौज में वे कर्नल की पोस्ट पर थे उनकी पोस्टिंग कश्मीर में हुई थी। छुट्टियां मिलने पर शनिवार बाड़ा स्थित बंगले पर आते—जाते रहते थे। वे पांच—छह साल पहले राजौरी में हुई आतंकियों से एनकाउंटर में अपनी वीरता का जबर्दस्त प्रदर्शन करने के कारण सुर्खियों में आए थे। इसके लिए उन्हें वीरता का पदक मिला था। अब वे फौज से रिटायर होने के बाद उसी बंगले में रह रहे हैं। सरकारी आफिस में चपरासी की नौकरी लगने से पहले मैंने उनके बंगले पर लगभग एक साल तक माली का काम किया थां।
प्रवीण – हां, बाबा याद हैं। मैं उनका रोब—दाव और वर्दी देखकर मोहित हो जाता था। आपने अगर मेरे मन में शिवाजी महाराज, संभाजी,तानाजी आदि की कहानियां सुनाकर देशभक्ति का बीजारोपण किया तो उन्होंने मुझमें पनप रहे इस पौधे को अपनी बातों और स्टेटस से खाद—पानी मुहैया कराया। हमलोग उन्हीं से राय—मशविरा लेकर किसी नतीजे पर पहुंच सकते हैं।
बाबूराव – ठीक है बेटा! क्या उस शरद को भी उनके घर ले चलें ?
प्रवीण – यह तो और भी अच्छा रहेगा।
बाबूराव ने जैसे-तैसे मनाकर शरद को चव्हाण के बंगले पर जाने को राजी किया। रविवार को बाबूराव, प्रवीण और शरद चव्हाण के बंगले पर पहुंच गए।
कर्नल साहब को देखते ही प्रवीण ने जोरदार सैल्यूट ठोका जोर से बोला ।
प्रवीण – जयहिंद सर!
जवाब में कर्नल साहब ने भी जयहिंद कहा और तीनों को अपने ड्राइंग रूम में बुला लिया। तीनों ही ड्राइंगरूम का नजारा देखकर दंग रह गए। दरवाजे के ठीक सामने भारतमाता की भव्य तस्वीर। कर्नल साहब की बहादुरी का बखान करने मैडल्स व अखबारों की कतरनों से सजा हुआ बड़ा सा शोकेस! उनके स्पंजी सोफे पर तीनो बड़े संकोच के साथ बैठे।
कर्नल साहब ने बाबूराव को देखते ही पहचान लिया। उन सबके लिए चाय—नाश्ता मंगवाया और फिर पूछा।
कर्नल साहब – और भई, कैसे आना हुआ?
प्रवीण कुछ संकोच के साथ बोला – साहब, मैंने अग्निपुंज बनने का फैसला किया है। मेरा सलेक्शन भी हो गया है लेकिन इस फैसले को लेकर शरद अंकल और मेरे बाबा के मन में कुछ शंकाएं हैं।
कर्नल साहब – अरे बेटा! यह तो बहुत अच्छी बात है। तुम्हें सलेक्शन के लिए बधाई हो। लेकिन वे शंकाएं क्या हैं, खुलकर बताओ।
शरद – साहब! अग्निपुंज बनने से चार साल का गुजारा तो हो जाएगा पर चार साल बाद क्या होगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि अग्निपुंज बनने के बाद इस बच्चे का भविष्य ही दांव पर लग जाए। इसे अभी तो लंबी जिंदगी काटनी है।
बाबूराव – हां, साहब! कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे बेटे को इस फैसले पर बाद में पछताना पड़े।
उन दोनो की ऐसी बातें सुनकर कर्नल साहब थोड़े तैश में आ गए । वे अपनी रौबदार आवाज में बोले ।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )