रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
मेरे राम प्रभुजी
ओ मेरे राम प्रभुजी ओ रघुवर
आन पड़ो एकबार
मैहर मेरा छुट गया है देखी न ससुराल।
पी ने कुरूपा देख के मुझको छोड़
गया रै कपाल
ओ मेरे राम प्रभु जी ओ रघुवर आन पड़ी एक बार
ज्योति नयन कि क्षिण हो गई तेरा पंथ निहार
दिन गिन गिन एक रेख लगाते भर गई है दीवार
ओ मेरे राम प्रभुजी ओ रघुवर आन एक बार
नीच जाति का संबोधन दे सबने है ठुकराया
एक ऋषि मातंग ने मुझको बेटी कह अपनाया
ओ मेरे राम प्रभुजी ओ आन पड़ो एक बार
तेरे आवन कि आशा में दिन ही या दोपहरी
एक आहट पर आधी डगर तक दौड़ के जाती शबरी
ओ मेरे राम प्रभुजी ओ आन पड़ी एकबार
एक दिवस पर राम,लखन संग आए धर्य बँधाने
जूठे बेर दिए शबरी ने लगे राम प्रभु खाने
ओ मेरे राम प्रभुजी ओ आही गए एकबार
ओ मेरे राम प्रभु जी ओ रघुवर आही गए एक बार ।
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त्रिलोकी
हे मेरे त्रिलोकी तुम तो हाल सब का जानते ,
सारे प्राणी के दिलों की धड़कने पहचानते।
तुम हो प्रकृति के रचेता ,हाल सब का जानते ,
जब जरूरत जैसी पड़ती , वैसी चादर तानते ।
इसीलिए तो वेद,शास्त्र सब तुमको ही तो मानते ,
हे मेरे त्रिलोकी तुम तो हाल सबका जानते ।
करे बुराई हम जो छुप कर,उस पर तेरी दृष्टि
ऐसे ही नही चलाते तुम हो , सारी सृष्टि ।
जग भलाई को यूँ ही न विष का प्याला छानते ,
हे मेरे त्रिलोकी तुमने तो हाल सबका जानते।
देके त्रिलोकी”शबनम”को एक ये सुंदर उपहार
न कभी वापस तुम लेना , ये गले का मेरा हार
वरना जान तेरे दर दूँगी ज़िद हमारी जानते,,
हे मेरे त्रिलोकी तुम तो हाल सब का जानते ।
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शक्ति की भक्ति
शक्ति की भक्ति में होता कहा समर्पण भाव
पूरा करने स्वार्थ को अपना होता क्षणिक लगाव
भय से प्रीत कभी न होवे चाहे
जितने यत्न करो
चाटुकारी हो सकती है प्रेम
का प्रयत्न करो
बीच भंवर में डूब जाएगा स्वार्थ रूपी ये नाव
पूरा करने स्वार्थ का अपना होता क्षणिक लगाव
भक्ति से शक्ति जगती है शक्ति
जागता प्राण
इसी भक्ति की शक्ति से किंचित
मिलते है भगवान
इतनी भक्ति कर ले ह्रदय से ईश्वर दे दे छाँव
पूरा करने स्वार्थ का अपना होता क्षणिक लगाव
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चुनरिया हो गई मैली
चुनरिया हो गई मैली रे
चुनरिया ही गई मैली रे
बाबुल ने, ससुराल जब भेजा
ढेरो दिए उपदेश
नजरियाँ हो गई मैली रे
चुनरिया हो गई मैली रे
मै तो ,रसो में लिप्त हुई रे
भूल गई संदेश
डगरिया हो गई मैली रे
चुनरिया हो गई मैली रे
उसने संयम बतलाया था
चुन लिया मैंनें काम
इस लिये बाबुल की दृष्टि में
हो गई रे बदनाम
डगरिया हो गई मैली रे
चुनरिया हो गई मैली रे
लाज लगे, अब बाबुल घर मैं
लौट के कैसे जाऊँ
पतरिया मैली हो गई रे
चुनरिया मैलीं हो गई रे
दुष्कर्मों से बही भर गई
*शबनम* क्या दिखलाऊँ
पतरिया मैली हो गई रे
चुनरिया मैली हो गई रे
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बहुत सुंदर रचना