आखिरी चैप्टर
धनीराम और लड्डू की फटकार सुनकर मुन्ना चुपचाप बैठ गए।
वेटर पहले तो सलाद लाया। उसमें गोल—गोल कटी प्याज और गाजर देखकर मुन्ना खुश हो गए। वे बोले — ऐसो लगत है प्लेट में रंग—बिरंगे कलदार सजा के ले आओ है।
फिर टेबल पर पनीर बटर मसाला आया। उस पर सफेद क्रीम से सजावट की गई थी।
मुन्ना — लगत है बड़ी जल्दीबाजी में जा सब्जी बना दई। जा के उपर डलो भैंस को दूध तो मिलई नई पाओ।
धनीराम — वो मलाई है। सजावट के लिए डाली जाती है।
वेटर अगली डिश के रूप में दाल फ्राई लाया। उसमें एक बड़ी सी लाल मिर्च उपर तैर रही थी। लाल मिर्च को देखकर मुन्ना का दिमाग भन्ना गया। वह बोला — लगत है जा होटल वाले खों मालूम नइयां कि हमें पित्त की शिकायत है। अगर लड्डूबाई हमाई दाल में जरा सी ज्यादा लाल मिर्च डाल देत है तो हम खात नइयां। हमें मिर्च बर्दाश्त नहीं होत।
तब धनीराम ने दाल में से मिर्च निकालकर अलग प्लेट में रख दी।
तभी मुन्ना को लगा कि उनके पेट में चूहों ने कबड्डी खेलना शुरू कर दिया है। अत: वे दाएं—बाएं होने लगे। जब उन्हें लगा कि भूख बर्दाश्त नहीं हो रही तो वे फटाक से पनीर की सब्जी पूरी पी गए। फिर उन्होंने दाल की छोटी बाल्टी उठा ली और हलक से नीचे उतार ली। सारा सलाद साफ कर दिया। धनीराम, लछमी तथा वहां बैठे तमाम लोगों की निगाहें मुन्ना पर टिक गईं। वे इस सबसे बेपरवाह वेटर जो भी लाता जाए उसे उदरस्थ करने में लगे रहे। धनीराम ने यह दृश्य देखकर सिर पकड़ लिया और मारे आश्चर्य के उनके मुंह से कुछ बोल ही नहीं फूट पा रहे थे।
जब वेटर रोटी लेकर आया तो मुंह पर जीभ फेरते हुए बोले — जे कैसी लोटी बनाईं। लड्डू से अच्छी तो नइयां! बस ऐसो लगत है जैसे गीलो—सीलो आटो फैला—फैलू के चूल्हे पे सेंक के ले आए। हमाई लड्डू तो बिलकुल सुफेद रोटी बनात है। वो तो भलो हो मोदी सरकार को,जो उज्जवला कनेक्शन हमाए घर में लग गओ। अब लड्डू को चूल्हे में आंखें नईं फोड़नी पड़ती। और घर में भी धुआं नहीं भरत!
इससे पहले कि धनीराम कुछ कह पाते उन्होंने वेटर द्वारा लाई गई पांच रोटियों को पेट में पहुंचा दिया।
वेटर जो भी डिश लाता, मुन्ना भाई उसे फटाफट निगल कर पेट में पहुंचा देते। इस स्थिति में धनीराम, लछमी और लड्डू के चेहरे देखने लायक थे। डिनर के अंत में वेटर हाथ धोने के लिए कटोरियों में नींबू डालकर लाया तो मुन्ना भाई उस नींबू को पानी में निचोड़कर एक ही बार में पी गए। जब पेट में जमा होते—होते खाना गले तक आ गया तो उन्होंने जमकर डकार मारी कि आसपास के बैठे सब लोग हिल गए।
धनीराम को अब पक्का यकीन हो गया कि मुन्ना भाई का कोटा पूरा हो गया है तो उन्होंने वेटर से अपने और बाकी सब लोगों के लिए खाना पैक कराके मंगा लिया और 5000 रुपये का बिल भी भर दिया।
इस प्रकार भले ही धनीराम, लछमी और लडडू बाई भले ही उस दिन डिनर का आनंद उस होटल में नहीं ले सके पर घर पहुंचकर वे पैक कराए गए खाने पर ऐसे टूटे कि पेट में कूद रहे तमाम चूहों को शांति मिल गई और वे उस रात चैन से सो सके!