चैप्टर-3
अब मुन्ना को लग रही थी तेज भूख! वे कुछ देर तक टेबल पर रखे नैपकिन्स को घूरते रहे। वे अचानक उठे और लपक के उन पर ऐसे टूटे जैसे छत्ते को छेड़े जाने के बाद ततैये छत्ते को तोड़ेने वाले पर टूट पड़ते हैं। उन्होंने चार—पांच नैपकीन उठाकर मुंह में ठूंस लिए।
धनीराम और तमाम लोग यह दृश्य देखकर हैरान रह गए। धनीराम चौंकते हुए बोले — अरे! मुन्ना ये क्या कर रहे हो?
मुन्ना मुंह में नैपकिन चबाते हुए बड़ी मुश्किल से इतना कह पाए — लोटी खा लए!
यह सुनकर धनीराम और लछमी ने सिर पकड़ लिया। धनीराम गरज कर बोले — मुन्ना! मुन्ना रोटी तो अभी आएगी। वो तो हाथ पोंछने के कागज हैं!
मुन्ना— हैं? इतेक बलो धोखा? हम तो छमझ लए थे कि जेई लोटी हैं।
इतना कहकर उन्होंने मुंह में ठूंसे सारे नैपकिन टेबल पर उगल दिए। यह दृश्य देखकर पास ही में खड़ा एक वेटर फौरन आया और उसने टेबल साफ कर दी। फिर मुन्ना ने बिसलरी की बोतल में रखा पानी एक गिलास में डालकर गटका। पानी बेहद ठंडा था।
मुन्ना — जा पानी में बलफ काए डाल दई। हमाए घर के मटका में पानी ठंडो तो लहत है पल इतेक नईं। जाको पीबे में ऐछो लग लओ जैसे पिलाण कढ़वे वाले हों।
धनीराम — मुन्ना! वो बिसलरी का पानी है।
मुन्ना — हओ!तबई तो हमें लग लओ कि पिलाण कढ़वे वाले हैं। वो तुमने का नाम बताओ— बिस बिस लरी? हम छमझ गए। होटल वाले विष यानी जहर वालो पानी पिलात है।
उनकी बात सुनकर धनीराम ने अपना सिर ठोक लिया। वे बोले — मुन्ना! वो शुद्ध पानी है। वो तो उसे बनाने वाली कंपनी का नाम है बिसलरी! उस पानी में कोई विष थोड़े ही होता है।
मुन्ना — अब हम ठहले दांब—देहात के आदमी। दिंदगी भल तुआं को पानी पिओ। हमें का पतो बोतल में जहल है या छुद्ध पानी!
धनीराम — चलो, कोई बात नहीं।
इस बीच, होटल के डाइनिंग हाल में एक वायलिन के सुर गूंज उठे। वायलिन बजाने वाला वहां बैठे लोगों के इर्द—गिर्द जाकर वायलिन बजा रहा था।
मुन्ना उसे देखकर बोले — जो पनमेसरो का बजा रओ। अगर जाके पास बीन होती तो हम नाच लेते। जो तो जाने का उल्टो—सीधो होके बजा रओ? कहूं जाखों भवानी तो नईं चढ़ गईं।
धनीराम — अरे! उसे कुछ मत कहना। वो तो लोगों को खुश करने के लिए बादशाह का गाना बजा रहा है— अभी तो पार्टी शुरू हुई है।
मुन्ना — हमें कछु नईं आ रओ समझ में। हमें तो ऐसो लग रओ कि कोई पिल्ला मारे दरद के कैं—कैं कर रओ।
धनीराम मुन्ना की टिप्पणी को दांत पीसते हुए बड़ी मुश्किल से हलक के नीचे उतार पाए।
इस बीच, एक वेटर ने आकर टेबल पर छुरी—कांटे, प्लेटें और कटोरियां जमाईं। यह सब देखकर मुन्ना के भीतर वीर बुंदेले का भाव जग गया।
उसने एक छुरी दाएं हाथ में पकड़ी और उसे दाएं—बाएं घुमाने लगे और ढाल की तरह बाएं हाथ में प्लेट को पकड़ लिया। फिर धनीराम से बोले — चलो! अपन लड़ाई—लड़ाई खेलिएं।
धनीराम — मुन्ना मुन्ना! रहे तुम ढक्कन के ढक्कन! अरे इन्हीं प्लेटों में तो हमें खाना खाना है। चलो, रखो ये सब चुपचाप!
लड्डू बाई — जे ऐसई चाल करत हैं। जो नहीं होत कि सांति से बैठे रएं।
धनीराम और लड्डू की फटकार सुनकर मुन्ना चुपचाप बैठ गए।
वेटर पहले तो सलाद लाया। उसमें गोल—गोल कटी प्याज और गाजर देखकर मुन्ना खुश हो गए। वे बोले — ऐसो लगत है प्लेट में रंग—बिरंगे कलदार सजा के ले आओ है।
क्रमशः
(काल्पनिक रचना )