चैप्टर-2
यह सुनते ही धनीराम और बाकी सब लोगों को भी हंसी आ गई। पर वे अपनी हंसी दबाकर रह गए क्योंकि उन्हे लग रहा था कि कहीं मुन्ना की बातों से कोई नया बखेड़ा खड़ा नहीं हो जाए।
इसके बाद धनीराम उस जगह जाकर खड़े हो गए जहां एक टेबल के साथ छह कुर्सियां लगी थीं। वे कुस्रियों की तरफ इशारा करके बोले— मुन्ना भौजाई से कहो कि इस पर बैठ जाएं। हम भी यहीं तुम्हारे सामने वाली कुर्सियों पर बैठेंगे।
मुन्ना — इते दमीन पे बैठवे की व्यवस्था नइयां?
धनीराम — नहीं, यहां कुर्सी—टेबल पर ही बैठकर खाते हैं।
मुन्ना — फिर ऐछो खाबो कौन काम को जी में दमीनई से जुड़ाव न होए।
धनीराम ने सोचा कि चलो पहली बार कुर्सी—टेबल पर बैठने का सिस्टम मुन्ना ने देखा है इसलिए वह ऐसी बहकी—बहकी बातें कर रहा है। फिर वे मुस्कराते हुए सपत्नीक कुर्सी पर बैठ गए। उन्हें बैठा देखकर लड्डू बाई बोलीं — अब बैठ जाओ! नईं तो घुटना पिरान लग हैं। हम तुमाई मालिश के लाने तेल भी लेके नईं आए।
मुन्ना मुर्सी की तरफ ऐसे लपके जैसे कोई लीडर हों और यदि उन्हें कोई कुर्सी नहीं मिली तो प्राण ही निकल जाएंगे। वे कुर्सी पर अपने दोनों पैर रखकर उकडूं बैठ गए।
धनीराम हैरान! वे मुन्ना को समझाइश देते हुए बोले — यदि ऐसे बैठे—बैठे तुमने टांगों के बीच में से हाथ निकालकर कान पकड़ लिए तो ठीक वैसे ही लगोगे जब बचपन में गांव के मास्साब हम सबको मुर्गा बनाते थे। अरे बैठना है, तो दोनों टांगें नीची करके बैठो।
मुन्ना ने फौरन टांगें नीची कर लीं और कुर्सी पर जमकर बैठ गए। फिर वे वहां रखी मैन्यू को देखकर बोले — जा तिताब इते ताए रखी? जामे जे का चील—बिलउआ बने? हम तो बचपन में थाबे के छात यदि तिताब पढल्ते तो हमाए पिताजी हमें खूब कूटत ते।
धनीराम — वो किताब पढ़ने वाली नहीं है। उसमें इस होटल में मिलने वाली खाने—पीने की चीजों के नाम लिखे हैं।
मुन्ना ने मेन्यू उलट—पुलट की। वह अंग्रेजी में थी अत: उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ा। हां, उसमें बनी खाने—पीने की रंगीन फोटुओं को देखकर वे बहुत खुश हो गए।
थोड़ी देर में वेटर आया। सफेद ड्रेस पहने हुए।
मुन्ना उसे देखकर बोले — अब लो जो अशगुन हो गओ। लगत है जाकी पतनी छुलग छिधाल गई जासें जाने सफेद उन्ना पहन लखे हैं। हमें जाए देखके बहुत दुख भओ।
धनीराम — अरे! वो नौकर है होटल का। वही हमारे लिए खाना लाएगा।
मुन्ना— ऐसो होत का?
धनीराम — हओ। एसोई होत है। अरे! वेटर भाई जरा हमारा आर्डर लिख लो।
वेटर — सर! सर!!
मुन्ना — जो का छल्—छल् कल् लओ! अले हमाए पाछ भी छल है बाके पास भी छल है। धनीलाम के पास भी छल है। जब छबके पाछ छल है तो जो काए छल—छल कल लओ। का हमाओ छल खे है?
धनीराम — अरे मुन्ना! तुम समझे नहीं। यहां ऐसे ही बोलते हैं।
मुन्ना ने बिना ज्यादा सोचे—समझे अपना सिर हिला दिया।
धनीराम ने आर्डर लिखवा दिया और वेटर के जाने के बाद वे खाने का इंतजार करने लगे।
अब मुन्ना को लग रही थी तेज भूख! वे कुछ देर तक टेबल पर रखे नैपकिन्स को घूरते रहे। वे अचानक उठे और लपक के उन पर ऐसे टूटे जैसे छत्ते को छेड़े जाने के बाद ततैये छत्ते को तोड़ेने वाले पर टूट पड़ते हैं। उन्होंने चार—पांच नैपकीन उठाकर मुंह में ठूंस लिए।
क्रमशः
(काल्पनिक रचना )