आखिरी चैप्टर
अब परिणिति को चिंता हुई। यदि बाहर सिर्फ चार घंटे रहने-ठहरने और किराये-भाड़े में कोई पांच हजार रुपये निकल गए तो कैसे काम चलेगा।
उसने अपनी इस चिंता के बारे में प्रांजल से बात की तो वह बोला- कोई बात नहीं यार! सब मैनेज हो जाएगा। मैं हूं ना!
शाम को दोनों फ्रेश होकर फिर से शूटिंग देखने निकल पड़ें अब जो इनके साथ होना था, उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी। ठीक 5 बजे रामनिवास बाग में फिल्म के क्लाइमेक्स सीन की शूटिंग होनी थी। इस सीन में रितिक को जलते हुए आग के गुबार के बीच से अपनी जीप कुदाकर निकालनी थी। बस, यही हादसा हो गया। जैसे ही रितिक के डुप्लिकेट ने जीप आग के बीच कुदाई उसके टायरों में आग लग गई इससे स्टंटमैन बुरी तरह घबरा गया और उसका जीप से नियंत्रण खत्म हो गया। यों तो समय रहते स्टंटमैन जीप के हवा में उछलते ही उससे कूद गया पर जीप अनियंत्रित होकर भीड़ के उपर गिरने को हो गई।
यह हौलनाक दृश्य देखकर भीड़ में शामिल प्रांजल और परिणिति के छक्के छूट गए। दोनों मारे डर के पसीने से तरबतर हो गए। अन्य लोगों की तरह उनके मुंह से चीखें निकल गईं। वो तो भला हो शूटिंग स्थल पर खड़ी छोटी सी दमकल के चालक का। उसने सूझबूझ से काम लेकर जीप की तरफ कैमिकल और पानी का छिड़काव करके उसे पूरी तरह से जलने से रोक दिया। जीप के जमीन पर गिरने से पहले आग काफी हद तक कंट्रोल में आ चुकी थी। यह बात अलग है कि जीप के बेतरतीब ढंग से गिरने के कारण चार लोग बुरी तरह घायल हो गए। उन्हें फौरन शूटिंग को मैनेज करने में लगे कर्मियों ने एंबुलेंस को बुलाकर स्ट्रेचर पर रखकर अस्पताल पहुंचाया।
इस दुघर्टना के साथ ही उस दिन की शूटिंग कैसिंल हो गई। इस हादसे से घबराए प्रांजल और परिणिति को अपने-अपने घरों की याद सताने लगी।
तब उन्होंने अपने-अपने घरवालों को मोबाइल से फोन लगाया। जैसे ही एक घंटी बजी प्रांजल के पिता अमित त्रिवेदी ने फोन धड़कते दिल के साथ आक्रोश में भरकर उठाया।
‘‘हां! हैलो! क्यों बे तुझे अब याद आई! यहां हम सब मरे जा रहे हैं और तू अभी फोन कर रहा है! बता कहां है तू? क्या कर रहा है?”
पापा की तरफ से आई सवालों की इस बौछार को प्रांजल ने बड़ी मुश्किल से झेलां। वह समझ गया कि इस भागमभाग के चक्कर में पापा का बीपी बढ़ गया है। अतः उसने उन्हें शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘पापा! वो मैं आइ एम वैरी वैरी साॅरी!* फिर उसने भर्राए और घबराए सुर में अपने पूरे जयपुर टूर का हाल एक ही सांस में कह सुनाया। इस बीच, पापा ने मोबाइज फोन का स्पीकर आन कर दिया ताकि अन्य लोेग बाप-बेटे की बातचीत साफ-साफ सुन सकें। घरवालों की जान में जान यह जानकर आ गई कि चलो, प्रांजल सही-सलामत है।
उधर जब चौहान फैमिली में परिणिति का फोन पहुंचा तो मम्मी ने फोन उठाया। उन्होंने करीब डेढ़ मिनट तक सुबुक-सुबुक करते हुए अपने फोन को आंसुओं से भिगोते हुए काॅल अटैंड किया। अपनी मां के रोने की आवाज को सुनकर परिणिति की आंखें डबडबा आईं। वह इतना ही कह सकी – ^आय एम वैरी-वैरी साॅरी!* इसके बाद वह जोर-जोर से रोने लगी। उसका रोना-धोना सुनकर मां की ममता का बांध पिघल गया और वे कुछ संभलकर बोलीं- ^घर आ जा बेटी! यहां सब तुझे ढूंढ ढूंढ कर परेशान हैं।”
इसके फौरन बाद पापा ने मम्मी से फोन छीनकर बातचीत शुरू कर दी। वे तैश में बोले- “बेटा! तुम ऐसी हरकत करोगी हमने सपने में भी सोचा नहीं था! अरे! जयपुर जाना ही था तो मुझे बता देती। मैं तो वैसे भी ज्यादा रोकटोक नहीं करता! पर अब जो हुआ सो हुआ। आगे से ऐसा नही होना चाहिए! क्योंकि बिना बताये घर से जाने पर यदि तुम्हारे साथ कोई मुश्किल आती है तो हम चाहते हुए भी कोई मदद नहीं कर पाएंगे *
पापा के नरम पड़ते तेवरों को भांपकर परिणिति बोली – ^पापा मैं आपके लिए जयपुर से एलएमबी की कचैड़ी और देसी घी की जलेबी ला रही हूं! हम सब मिलकर उनका आनंद लेंगे। पापा! आय एक रियली वैरी-वैरी साॅरी!”
“ठीक है बेटा! अब नए सिरे से नई शुरुआत करना! नो भागमभाग बगैर परमीशन!” – पापा ने मजाकिया लहजे में कहे गए इन शब्दों को सुनकर परिणिति के दिल का बोझ हलका हो गया और वह प्रांजल के साथ फिर अपने घर वापस लौटनेे के लिए बस में सवार हो गई।
(काल्पनिक कहानी)