आखिरी चैप्टर
पाखी. मुझे यह बात कतई हजम नहीं हो रही कि इतने सस्ते में तैयार होने वाली मिठाई को वह इतनी ज्यादा कीमत पर बेचें।
स्वास्तिक . ठीक है कल अपन 10-11 बजे जाकर छगन से पूछेंगे कि उसने मिठाई के इतने रेट क्यों रखे हुए हैं।
इसके बाद मियां.बीबी सो गए।
सुबह स्पास्तिक और पाखी पूरी तैयारी के साथ छगन की दुकान पर पहुंचे। स्वास्तिक ने कहा – छगन भाई! मेरी बीबी ने घर पर पिस्ता लड्डू मिठाई बनाई थी। वह करीब 700 रुपये में ही सपा किलो बन गई थी। तम्हे इतना मुनाफाखोर नहीं होना चाहिए। अरे! एक किलो पर 100 रुपये कमा लो 200 रुपये कमा लो! पर एकदम दोगुने से ज्यादा में बेचना क्या पब्लिग को ठगना नहीं है?
छगन समझ गया कि दोनों मियां-बीबी पूरी तैयारी के साथ आए हैं। वह नरम स्वर में बोला- अरे साहब छोड़िए इन सब बातों को ! क्यो सुबह-सुबह मगजमारी कर रहे हैं?
पाखी को लगा कि छगन बात को टालने की कोशिश में है। अतः वह तैश में आ गई और बोली – तुम जैसे ठगों को तो जेल में बंद कर देना चाहिए। बिजनेस करने का मतलब पब्लिक को लूटना नहीं होता है। मैं जानना चाहती हूं तुम्हारी मिठाइयां इतनी महंगी क्यों हैं?
छगन को लगा कि धंधे के पीक आवर में हो रही कहासुनी से कहीं बाकी ग्राहक न बिदक जाएं। अत‘ वह समर्पण की मुद्रा अपनाते हए बोला- आप दो मिनट के लिए दुकान के पीछे स्थित कारखाने में चलेंगे। मैं आपको बताउंगा कि मेरी मिठाई इतनी महंगी क्यों है?
इसके बाद छगन अपने बेटे मगन को गल्ले पर बैइाकर पाखी और स्वास्तिक को कारखाने में ले गया। फिर वहां का नजारा दिखाते हुए बोला – मैडम, सर! देखिए! यहां जितने भी कारीगर हैं सबको मुझे हर महीने 10-15 हजार रुपये पगार देनी होती है। मिठाई के सामान की लागत हमें थोड़ी कम पड़ती है क्योंकि हम थोक में चीनी, काजू , पिस्ता व अन्य सामान खरीदते हैं। मैंने यह दुकान 80 लाख रुपये में खरीदी है। फिर गरम-ठंडे काउंटर आदि चलाकर रखने पड़ते हैं। दुकान खुले रहने की अवधि में एसी, फैन आदि चालू रहते हैं। मिठाई बनाने की कड़ाी, कलछी आदि पर भी खर्चा होता है। कभी-कभी खाद्य विभाग वाले, टैक्स वाले और पुलिस वाले धमक जाते हैं। उन्हें भी चढावा देना होता है। हमें कई तरह के टैक्स भरने होते हैं चूंकि हम बिजनेसमैन है अतः हमारे लिए नल-बिजली-गैस आदि महंगी रेट पर मिलते हैं। फिर दुकान की साफ-सफाई, पैकेजिंग और तमाम तामझाम पर भी खर्च होता है। जो मिठाई आदि खराब हो जाती है,बिक नहीं पाती है वह भी समस्या खड़ी करती है। घर पर जब मिठाई बनाती हैं तो इस तरह के खर्चे नही होते। इसलिए हमें ऐसे रेट रखने होते हैं। सच पूछिए बाबूजी महंगाई से हम भी परेशान हैं। रेट दोगुने रखने के बावजूद ऐसे तमाम खर्चे काटकर मुश्किल से 10 से 15 प्रतिशत ही कमा पाते हैं। हम भी महगाई के चक्र में फंसे हुए हैं। सरकार कुछ टैक्स वगैरह कम करे तो कुछ बात बने।
पाखी – छगन भाई आपने इतने विस्तार से अच्छे से सब समझाया इसके लिए हम आपके आभारी हैं। सच में मैंने जो काम घर पर किया करीब तीन-चार घंटे लगाए उसकी मजदूरी काउंट नहीं की। काश! हाउस वाइफ को भी पगार देने की व्यवस्था होती तो पता चलता कि वास्तव में उसकी मेहनत की लागत क्या है?
स्वास्तिक – छगनभाई की बातें जोरदार है और मुझे सच लग रही हैं।
इसके बाद पाखी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोली- छगनभाई मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है। अगर मैं घर पर ही मिठाई तैयार करके उसे फोन पर आर्डर लेकर बेचना शुरू कर दूं तो केसा रहेगा?
छगनभाई- बीबीजी! अगर आपके पास समय और लागत की रकम है तो यह अच्छा धंधा साबित हो सकता है। इससे साब पर भी बोझ कम होगा पर अपनी मेहनत -मजदूरी को लागत में जोड़ना मत भूलना!
छगन की बातें सुनकर सबके चेहरे खिल उठे।