महंगाई डायन खाए जात है! –
संजय : पापा केएलयू यूनिवर्सिटी की तरफ से मैसेज आया है। इसके अनुसार यूनिवर्सिटी ने मेरे कोर्स की फीस बढ़ा दी है। अब नए सेमेस्टर की 10 हजार रुपये की बढ़ी हुई फीस के साथ 80 हजार रुपये की जगह 90 हजार रुपये इस महीने की 28 से 30 तारीख तक जमा करने होंगे। नही तो 1800 रुपये हर रोज का फाइन लगेगा।
अपने बेटे संजय की यह बात सुनकर उसके पापा सतीश चंद्र हैरानी में पड़ गए।
सतीश चंद्र : वे झुंझलाते हुए बोले — ये केएलयू यूनिवर्सिटी वाले भी ऐसी ही स्कीमें निकालते हैं कि स्टूडेंट्स के गार्डियंस की जेबें अधिकाधिक ढ़ीली कराई जा सकें। अरे! सैलरी क्लास हूं हर महीने की 5 तारीख को सैलरी मिलती है। अब केएलयू वाले कह रहे हैं कि 28 से 30 तारीख तक पैसे जमा कर दो। क्या अंधेरगर्दी है। महीने के आखिर में एक बार में कहां से आएंगे इतनी जल्दी पैसे? घर में कोई नोटों का पेड़ तो लगा है नहीं कि जब कभी हिलाओ, फटाफट हरे—हरे नोट रूपी पत्तियां झड़ने लगेगी।
पापा की झुंझलाहट भले ही संजय को सही लग रही थी पर वह भी क्या करता। वह सिर्फ इतना ही कह सका….
संजय : पापा अब पढ़ाई करना है तो फीस तो देनी ही होगी।
सतीश चंद्र : हां बेटा तुम सही कहते हो। पर तुम खुद सोचो अपन इतने अमीर तो हैं नहीं कि इतनी बड़ी रकम का इंतजाम फौरन कर सकें। ये केएलयू वाले सोचते हैं कि हर स्टूडेंट का गार्डियन तो बस करोड़पति हैं। जब भी मांगोगे इतनी बड़ी रकम फौरन लेकर हाजिर हो जाएंगे। अब तुम्ही देखो, सैलरी मिलने में 7 दिन हैं और अभी भी खर्च पर खर्च हुए जा रहे हैं। चार दिन बाद भांजे की शादी है। कम से कम 20 हजार रुपये का चंदा तो वहां लग जाएगा। फिर तुम्हें तो मालूम है कि पिछले कुछ दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं चल रही है। आठ एमएम का किडनी स्टोन है परेशान कर ही देता है। इसलिए मेडिकल इमरजेंसी के लिए 40—50 हजार रुपये तो घर में पड़े ही रहने चाहिए।
अभी इन दोनों के बीच यों ही बातचीत चल रही थी कि संजय की मम्मी अश्विनी बाजार से सामान लेकर घर आईं और उन्होंने घर में घुसते ही एक और बम फोड़ दिया। वे बेहद गुस्से में थीं। चिल्लाकर बोली
अश्विनी : हर तरफ बस लूट मची है। ये देखो ना आज ठाकुर सब्जी वाले से टमाटर खरीदे वो भी 120 रुपये किलो! मैंने कहा कि भैया भाव कुछ कम कर दो तो वह करमजला बोला — आंटीजी! ऐसा करो आप इतने भाव में एक किलो टमाटर नहीं ले जा सकतीं तो आधा किलो ले लो। आखिर जितनी बड़ी चादर होगी उतने ही तो पैर पसारोगी!
अश्विनी : लो बताओ एक तो पैसे कम नहीं किए उपर से मुझे आंटी और कह दिया। मैं क्या आंटी दिखती हूं? मैं क्या करती मन मार कर सिर्फ पाव भर टमाटर लिए। आखिर शाम को छोले—चावल जो बनाने थे। अब बाकी सात दिन राम—राम करके काटने होंगे।
सतीश चंद्र : अरी भागवान शांत हो जाओ! अच्छा किया कम ही टमाटर लिए। इधर कमाने वाला तो एक ही है! खर्चे हैं कि कम होने का नाम नहीं ले रहे। सच में महंगाई से हर कोई परेशान है। अरे! हमने बीए, एमए की दोनों डिग्रियां सिर्फ तीन हजार रुपये में कर ली थीं। अब देखो संजय की एक सेमेस्टर की यूनिवर्सिटी फीस ही बढ़कर एक लाख रुपये को टच करने की तैयारी कर रही है। वो तो अच्छा हुआ, मैंने तुमसे शादी करने से पहले प्राइवेट जॉब शुरू कर दिया था तो आज कम से कम मेरी सैलरी बढ़कर 70 हजार रुपये महीने हो गई है। मुझे यह देखकर तसल्ली होती है कि तुम पूरा महीना खींचतान करके जैसे—तैसे निकाल ही लेती हो।
अपने पति के प्रशंसा भरे शब्द सुनकर अश्विनी का गुस्सा थोड़ा कम हुआ। वह बोली
अश्विनी : मुझे अच्छा लगा कि आपने मेरी तारीफ की। मजबूरी है करना ही पड़ता है। मैं भी तो चाहती हूं कि अपन अच्छा खाएं, अच्छे से रहें। अब कल ही मेरी बचपन की सहेली शशि का फोन आया था मोहनपुर से। वह चहकते हुए बता रही थी कि परसों उसके पति ने नया सोफा दिलाया है पूरे 60 हजार का! सोफा आने के बाद उसके घर में क्या रौनक आ गई है। एक अपन हैं जो पिछले 10 साल से वही बेंत वाला सोफा रगड़े जा रहे हैं। उसका पति जरूर उपरी कमाई करता होगा।
सतीश चंद्र : हां, वैसे भी शशि का पति अजीत बिजली विभाग में कैशियर है। उसकी सैलरी मुझसे थोड़ी अधिक होगी। सुना है कि उसकी बेटी कमला भी हैदराबाद की एक बड़ी कंपनी में नौकरी लग गई है। वह भी 60—70 हजार रुपये हर महीने छाप रही है। हां, अजीत के जिक्र से एक आइडिया आया। मैं ऐसा करता हूं कि अभी संजय की फीस भरने के लिए अजीत से 50 हजार रुपये उधार मांग लेता हूं। उसकी यह रकम हम लोग पांच—दस किश्तों में चुका देंगे। कल संडे हैं। उसकी और मेरी छुट्टी रहेगी। मैं कल मोहनपुर जाकर उससे बात करता हूं।
जब सतीश चंद्र के प्रस्ताव पर जब परिवार के बाकी सदस्यों ने मोहर लगा दी तो उनकी थोड़ी हिम्मत बढ़ गई। चेहरे पर खिंची चिंता की लकीरें कुछ कम हो गईं।
अगली सुबह सतीश चंद्र तैयार होकर रायसेन से दस किलोमीटर दूर मोहनपुर में बस से अजीत के घर पहुंच गए। अजीत नए सोफे पर बैठकर चाय की चुस्कियां ले रहा था। उसकी पत्नी सुमन कोई अच्छी सी किताब पढ़ने में लगी थी। उसकी बाई रोशनी घर के काम—काज निपटाने में लगी थी। नमस्कार—चमत्कार करने के बाद सतीश और अजीत बातों में मशगूल हो गए।
सतीश चंद्र : अजीत, भई तुम्हें बधाई हो नए सोफे की! यह सोफा बहुत जंच रहा है कमरे में! बिल्कुल रॉयल लुक आ गया!
सतीश चंद्र चेहरे पर थोड़ी मुस्कराहट लाने की कोशिश करते हुए बोले। उनकी बातें सुनकर अजीत को अच्छा लगा वह बोला..
अजीत : यार! वो कमला की अम्मा पिछले महीने से पीछे पड़ी थीं कि सोफा ले लो, सोफा ले लो! सो इस बार गुंजाइश बन गई तो ले लिया।
सतीश चंद्र : चलो बधाई हो। यार! एक बात समझ में नहीं आती। हम दोनों सैलरी क्लास है। पर तुम्हारे और हमारे बीच में जमीन—आसमान सा फर्क है। तुम बढ़िया ठाट—बाट से रहते हो। घर पर बाई भी लगा रखी है और भाभीजी नितांत सुकून से बैठी हैं। हम तो महंगाई डायन के कारण परेशान हैं। हमें महीना पूरा करने में ही दिक्कत हो जाती है। मैं जितना भी कमाता हूं सब सुरसा रूपी मंहगाई के मुंह में समा जाता है। अब देखो न, केएलयू यूनिवर्सिटी वालों ने बेटे की फीस भरने के लिए अल्टीमेटम भेज दिया है। फिर टमाटरों व अन्य चीजों के भाव जैसे आसमान को छू रहे हैं। इसके अलावा चार दिन बाद ही भांजे की शादी का चंदा अलग है। बॉस जब इन्क्रीमेंट लगाएंगे, लगाएंगे पर अभी तो वर्तमान काटना ही मुश्किल हो रहा है। ऐसा करो ना मुझे 50 हजार रुपये उधार दे दो, अगले माह से पांच—पांच हजार की दस किश्तों में दे दूंगा।
अजीत : सतीश, पैसे तो तुम्हें मिल जाएंगे। चिंता नहीं करो, जैसे संजय तुम्हारा बेटा है वैसे ही वो हमारा भी बेटा है। लेकिन यह मत समझना कि मेरे पास कोई खजाना गड़ा हुआ है।
सतीश चंद्र : तो फिर वह राज क्या है, जिससे तुम्हें कभी उधार लेने की जरूरत नहीं पड़ती? सतीश चंद्र भौंचक्के होकर पूछ ही बेठे।
अजीत : देखो, यह प्लानिंग का करिश्मा है। मुझे जो सैलरी मिलती है उसमें से 10 प्रतिशत हर माह मेरे रैकरिंग खाते में चला जाता है। फिर मुझे बोनस, एरियर आदि मिलता है उसमें से आधे की मैं एफडी करा देता हूं। बाकी आधा हिस्सा सैर—सपाटा, वार—त्यौहार, शादी—ब्याह आदि के खर्च के लिए बचाकर रख देता हूं। अपनी सैलरी का पंद्रह प्रतिशत म्युच्युअल फंड और शेयर बाजार में लगाता हूं जिससे उपरी खर्चे संभले रहते हैं। मैं पिछले दस सालों से नौकरी कर रहा हूं और तभी से प्लानिंग करके खर्च कर रहा हूं। साथ ही मेरे पिताजी दिवंगत होने से पहले गांव में एक बडा खेत हमारे नाम वसीयत कर गए थे। उससे भी आय हो जाती है।
सतीश चंद्र हैरत से बोले : भई वाह! तुम तो बड़े ही छुपे रुस्तम निकले पर यकीन नहीं होता कि खेती से भी कमाई होती है।
अजीत :अब तुम मोहनपुर आ ही गए हो तो क्यों न मैं तुम्हें अपने खेत पर भी ले चलूं। चलोगे मेरे साथ?
सतीश चंद्र ने उत्सुक होकर पूछा : हां, हां क्यों नहीं? वैसे खेत है कितनी दूरी पर?
अजीत : बस,थोड़ी ही दूर पर! पैदल चलने पर मुश्किल से दस मिनट का रास्ता! यहीं हनुमान मंदिर से थोड़ा आगे है अपना खेत।
फिर वह सतीश चंद्र को लेकर अपने खेत पर पहुंच गया।
वहां पहुंच कर सतीश चंद्र ने देखा कि अजीत का खेत चार हिस्सों में बंटा हुआ है। यह देखकर सतीश चंद्र अपनी उत्सुकता छिपा नहीं पाए और पूछ ही बैठे —
सतीश चंद्र : क्यों भइया, इस खेत के ऐसे हिस्से क्यों कर रखे हैं?
अजीत : हम खेत के एक हिस्से में सीजनल सब्जियां लगवाते हैं, दूसरे हिस्से का इस्तेमाल फल व अनाज उगाने में करते हैं। तीसरे हिस्से में एक छोटी सी डेयरी खोल रखी है। चौथे हिस्से में चारागाह बना रखा है। इससे हमारी गाय—भैंसों के लिए रोज चारे आदि का इंतजाम हो जाता है और हम फूल, सब्जी—अनाज आदि में से कुछ हिस्सा अपने घर के लिए रखकर बाकी हिस्सा बाजारभाव पर बेच देते हैं। उस खेत से होने वाली कमाई में अपनी पत्नी को दे देता हूं। उसने भी उस पैसे को जोड़—जोड़कर अपने नाम पर डाकघर मासिक आय योजना का खाता खोल लिया है। वह उस खाते से मिलने वाले ब्याज को अपने हिसाब से खर्च करती रहती है। उसी खेत की कमाई से हमने सोफा लिया है। तुम्हें तो मालूम ही है कि खेती से होने वाली आय पर कर संबंधी कई लाभ मिलते हैं। फिर कमला भी ईश्वर की कृपा से कमाने—धमाने लगी है। वह अपना खर्चा खुद निकाल लेती है।
यह सब सुनकर सतीश चंद्र खुश होकर बोले : यह है तुम्हारी समृद्धि का राज! तुमने बड़े ही सुनियोजित ढंग से अपनी आय के स्रोत डेवलप किए हैं।
अजीत : हां, भाई महंगाई डायन का यही इलाज है! खर्च तो बढेंगे ही, अब वे खर्च चाहे जिंदगी में जरूरतें बढ़ने से बढें या उम्र के बढ़ने से अथवा महंगाई के बढ़ने से! उन्हें काबू में लाने का उपाय यह है कि फिजूलखर्ची से बचते हुए आय के अधिकाधिक स्रोत विकसित करते जाओ। आपके पास जितने ज्यादा स्रोत होंगे, उतनी ज्यादा आपकी प्यास बुझ सकेगी। केवल सैलरी के भरोसे मत रहो।
अजीत और सतीश ऐसी ही बाते करते रहे। दो घंटे कब के बीत गए पता ही नहीं चला। फिर अजीत सतीश को अपने घर ले गया और वहां उनके लिए दोपहर के भोजन के तौर पर बढ़िया दाल—बाटी का प्रबंध करवाया। भोजन आदि से निवृत्त होने के आद उसने अपनी अलमारी से चेकबुक निकाली और पचास हजार रुपये का चेक सतीश चंद्र के हाथों में थमा दिया।
यह आदर—सत्कार और अजीत की उदारता देखकर सतीश चंद्र गदगद हो गए। वे बोले —
सतीश चंद्र : यह चेक तो ठीक है। अभी मेरी फौरी जरूरतें पूरी हो जाएंगी। पर भइया तुमने मेरी आंखें खोल दी हैं। इसके लिए मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं। मुझे लगता है कि मैं तुम्हारी दिखाई राह पर चलकर अपनी आय अच्छी खासी बढा सकूंगा ताकि आगे से किसी के भी आगे हाथ फैलाने की नौबत नहीं आए। मैं भी तुम्हारी तरह प्लानिंग से चलकर अपनी आय के अधिक से अधिक स्रोत डेवलप करूंगा ताकि सैलरी पर निर्भरता कम हो सके। मैं अपने बच्चे से भी कह दूंगा कि वह भी अपने लिए कोई ठीक—ठाक सा पार्टटाइम काम तलाश ले ताकि हमारी थोड़ी आय और बढ़ जाए।
अजीत : हां, एक बात और। यदि तुम चाहो तो भाभीजी भी घर बैठे कोई काम पकड़ सकती हैं। आनलाइन बहुत सारे जॉब हैं जो घर से ही बैठकर किए जा सकते हैं और उनसे भी आमदनी बढ़ सकती है।
सतीश चंद्र : जरूर! अजीत जरूर!! आखिर उसने भी तो डीटीपी का कोर्स कर रखा है। मैं उसे राजी करने की पूरी कोशिश करूंगा। तुम्हारा बहुत—बहुत शुक्रिया। यह कहकर नए उत्साह से लबरेज सतीश चंद्र अपने घर की ओर वापस निकल पड़े।
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