चैप्टर-1
यह कहानी तब की है जब मैं छोटा था। यानी कोई पाँच दशक पहले की। तब हम राजापुर में रहते थे। यूपी का एक छोटा सा कस्बा। शहरों की जगमगाहट से दूर। न आने-जाने के ढंग के साधन थे और न ही सड़कें। बस, रोज सुबह शाम एक बस चला करती थी। इस में इलाहाबाद जाने वाले यात्री लद-फद कर बैठ जाते थे और जब पूरी बस उपर से नीचे तक फुल हो जाती तो कंडक्टर ड्राइवर को बस चलाने के लिए कह देता। फिर बस पौं-पौं हाॅर्न बजाती हुई उंची-नीची सड़क पर हिचकोले खाते हुए चल देती।
करीब तीन घंटे का यह सफर येे समझ लीजिए अपनी जान जोखिम में डालकर पूरा होता था। इस बस की टूटी-फूटी कुर्सियों पर बैठकर भी लोग अपने आप को धन्य महसूस करते थे।
और जब बस की छत पर पर भी बैठे मुसाफिर सफर के पूरा होने के बाद नीचे सही-सलामत उतरते तो हम हैरान रह जाते थे कि चलो भोले बाबा की कृपा से आज इनकी जिंदगी बच गई! अन्यथा, सफर पूरा होने से पहले यही धुकधुकी लगी रहती थी कि पता नहीं बस के साथ कौन सा हादसा हो जाए और हम सभी मुसाफिर कहीं इस 50 किलोमीटर सफर से स्वर्ग का रास्ता तय नहीं कर लें।
वह दिन भुलाए नहीं भूलता। 29 जनवरी 1970। तब मैं तैयार हो कर इलाहाबाद में लगे वार्षिक मेले को देखने के लिए अपनी मां नयना तिवारी के साथ रवाना हुआ था। मेरे पिताजी रामाधार तिवारी तहसील कार्यालय में एलडीसी की डयूटी बजाने गए हुए थे। ऐसे में लाजिमी था कि मेरी मां मुझे यह मेला दिखाने अपने साथ ले जाएं। हमें बिलकुल भी आभास नहीं था कि इस सफर में ऐसा कुछ होने वाला है जिससे मेरी जिंदगी बिलकुल ही बदलने वाली है।
हमें उस दिन बस में सबसे आगे ड्राइवर के पास वाली सीट मिली थी। मेले के चक्कर में न केवल राजापुर के बल्कि श्यामपुर और मनोहरपुर जैसे पास-पड़ोस के गांव के लोग भी बस में लद-फद कर भर चुके थे। करीब 60 यात्रियों की क्षमता वाली बस मेें 80.85 लोग भेड़-बकरियों की तरह भर लिए गए थे। बस की छत पर ढेरों लोग बैठे हुए थे।
हमने तड़के 7 बजे यह खतरनाक सफर शुरू किया था। अभागी बस कच्चे-पक्के रास्ते पर हिचकोले खाते हुए बढ़ती जा रही थी। रतनपुर तक का सफर तो ठीक चला। पर इसके बाद सड़क पर भीड़-भाड़ बढ़ती जा रही थी। जब हम इलाहाबाद से मात्र दो किमी दूर रह गए तब सामने से आता एक ट्रक मानो मौत का परवाना लेकर आ गया। उसके ब्रेक फेल हो चुके थे।
ट्रक ड्राइवर दुर्घटना की आशंका भांपकर दरवाजे से कूद चुका था। बस फिर क्या था? उस बेकाबू ट्रक की हमारी बस से आमने-सामने की टक्कर हो गई।
जोरदार धड़ाके की आवाज आई। शीशे चटखे। बस भी बेकाबू हो गई। वह रोड पर किसी डायनोसोर सी पसर गई।
कोहराम। हल्ला-गुल्ला। बचाओ-बचाओ की चीख-पुकार। सब ओर गूंजने लगी।
मेरे सिर पर किसी ग्रामीण की फूलगोभी से भरी बोरी गिरी थी। मै अर्द्ध बेहोशी की हालत में पहुंच गया।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)