भारत त्योहारों का देश है!
भारत मेरा देश अनोखा, त्योहारों का देश है!
इसमें अलग-अलग संस्कृति और अलग परिवेश है!
त्योहारों की धरती है ये, दुनिया का आकर्षण है!
चाहे कोई संप्रदाय हो, सबका यहाँ समर्पण है!
संक्रान्ति से दान पुण्य और पतंगों की बहार है!
तिल के लड्डू और गजक से मनता ये त्योहार है!
लगती है बसंत पंचमी, जब सरसों के खेत भरें!
पीत वस्त्र में क्या महिलाएं, पुरुष, बाल भी खूब जँचें!
होली का त्यौहार, उमंग और रंग की लाये फुहार है!
जन-जन मगन हो गायें तराने, लगती मुख पे गुलाल है!
सावन में लगते हैं झूले, तीज-महोत्सव का मेला!
शिव-पूजन की परंपरा है, मन्दिर में डालें डेरा!
रक्षा बन्धन पर बहिना भाई को रक्षा सूत्र बाँधती!
भाई के निर्देशों को वह जीवन में कभी न लाँघती!
दशहरा का पर्व असत्य पर सत्य की विजय दिखाता है!
दशानन का घमण्ड, राम के हाथों ध्वस्त हो जाता है!
दीपावली त्यौहार निराला, धन, वैभव का द्योतक है!
दीपों की रौशनी से होता, कोना-कोना जग मग है!
इनके अलावा राष्ट्रीय, प्रादेशिक बहुल त्यौहार हैं!
भारत त्योहारों का देश है, सबका यहाँ सत्कार है!
– विजय कुमार तैलंग, जयपुर
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मन चलो रे
राम नाम अरदास से पूरण होते सब काज ,
इस लिए ये मन मेरे चलो अयोध्या आज ।
मन चलो रे अयोध्या नगरिया,
चैन सुख के सहारे मिलेंगे।
नाम जिनका है श्री रघुराई ,
सिया ,लक्ष्मण हमारे मिलेंगे।
कितनी सुन्दर गले में है माला ,
और जनेऊ को उर में है डाला ,
बड़ी सुन्दर छबि है तिलक की
धनुष कांधे पे डाले मिलेंगे ।
राम जी मेरे अद्भुत निराले ,
सारे पतितो को पल भर में तारे,
देखो जा करके शबरी मडईया
प्रेम बन्धन निराले मिलेंगे ।
दिन कितने बीते विरह में,
अब आये हैं अपने अवध में,
मन मगन है ये सारी नगरिया
राम सरयू किनारे मिलेंगे।
-सुशीला तिवारी ,रायबरेली
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मॉं के चरणों में स्वर्ग है
स्वर्ग लोक किसने देखा पर मॉं चरणों में स्वर्ग दिखता
जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था मॉं की दृष्टि में बच्चा रहता
भेज रहा था जब मानव को जब
इस धरती पर भगवन
मानव बोला प्रभु अकेला कैसे
जाऊँ मैं मृतुभुवन
बोले भगवन संग में तेरी माँ होगी जिसमे रक्षण क्षमता
जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था मॉं की दृष्टि में बच्चा रहता
मॉं न होती बच्चा न होता रुक
जाती यह सृष्टि
कोई बच्चा नहीं जन्मता ज्यों
फसलें बिन वृष्टि
रोते विलखते माता स्नेह से वंचित हर बच्चा खुद मरता
जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था मॉं की दृष्टि में बच्चा रहता
=शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
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संघर्ष
है छल झूठ की छांव यहां,
आज कैसे करूॅं विश्राम यहा ,
क्या नभ के नीचे खड़ी रहूं ?
रवि के किरणों को सहा करू ?
दोनों तरफ हैं दंश ही दंश यहाॅं
कहीं नहीं शीतल एकांत यहाॅं,
अंबर से क्या मैं बात करू ?
घटाओं पर कैसे विश्वास करू?
अंबर स्वयं में श्रेष्ठता संजोएं ।
अन्यभिज्ञता संग अज्ञानता बोए।
तटस्थ रह क्यों अन्याय सहूं मैं।
न्याय संग सर्वश्रेष्ठ मार्ग चुन्नू मैं।
मैं स्वयं काली की अंश रही हूॅं।
अर्धनग्न जग को काट चली हूॅं।
सोचो कैसे मैं, क्यों डर जाउंगी?
क्यों टूट कर मैं बिखर जाऊंगी?
अब करना हमें संघर्ष यहां।
न सहूं किसी का दंभ यहां ।
सक्षम बन न्याय को दर्शाना है।
अन्यायी से सदैव दूरी बनाना है।
=सुनीता मिश्रा,देहरादून
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