रचनाकार : विजय कुमार तैलंग, जयपुर (राजस्थान)
भगवत् लीला
परमेश्वर के परम ज्ञान में लीला का है योग बड़ा!
मानव जीवन यापन और दर्शन का उपयोग बड़ा!
वृहद लक्ष्य संधारण कर ईश्वर ने सबको ज्ञान दिया!
लीला के माध्यम से, अत्याचारों पर संज्ञान लिया!
जब-जब पाप बढ़े धरती पर, तब-तब ही अवतार हुआ!
पृथ्वी पर तब दुष्ट दलन को, निराकार ‘साकार’ हुआ!
शँख, चक्र और गदा, पद्म तज, मानव का स्वरूप लिया!
नारायण ने कभी राम, कभी कृष्ण रूप में जन्म लिया!
सागर से पृथ्वी को उबारा, वराह बन हरिण्याक्ष को मारा!
मत्स्य अवतार रखा, सिन्धु से, लुप्त हुए वेदों को पाया!
कच्छप बन मन्दार गिरी को अपने पृष्ठ कवच पर साधा!
सागर मन्थन के द्वारा, चौदह रत्नों को था पाया!
मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जीवन ही सर्वश्रेष्ठ उदाहरण!
ऋषि-मुनियों को दैत्यों के उत्पातों से मिलता संरक्षण!
रावण की हठधर्मिता से, सीता को था मुक्त कराया!
दे रावण को मृत्यु, विभीषण को तब था लंकेश बनाया!
हुए प्रकट प्रहलाद के लिए, नरसिंह का अवतार लिया!
हरिण्यकश्यप के अत्याचारों से भक्त को मुक्त किया!
रखा मान हर वरदान का, इसी से भिन्न स्वरूप लिया!
खम्भ चीरकर, अत्याचारी नृप को मोक्ष प्रदान किया!
जहाँ कृष्ण ने बाल लीला से, सबके मन को मोह लिया!
गोवर्धन पर्वत को लीला कर, छिंगुली पर उठा लिया!
गीता के माध्यम से कृष्ण ने, विश्व को ये संदेश दिया!
कर्मानुसार फल है पाता, जिसने यहाँ पर जन्म लिया!
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युग निर्माता तुम ही होगे!
माना बहुत दूर है जाना, निरुत्साह न मन को करना!
मेहनत का विकल्प मेहनत है, मेहनत से तुम जरा न डरना!
आयेंगी बाधायें मार्ग में, उनके रहते रुक न जाना!
लक्ष्य एक निर्धारित करना, बहु लक्ष्यों में भटक न जाना!
मंजिल उन्हीं को मिलती है जो मंजिल पाने की हठ करते!
दुनिया के बहकावे में आकर न कदापि विचलित होते!
साधन और साधना से ऊँचे मक्सद भी पूरे होते!
ठान ले मन में लक्ष्य साधना, कर्म न फिर अधूरे रहते!
समय प्रबंधन, सतत अध्ययन, जो इसमें तत्पर होते हैं!
उनका ही भविष्य उज्ज्वल है, वो न किसी से कम होते हैं!
उनकी लगन व श्रम को देखकर, अन्य भी प्रेरित होते हैं!
कायनात भी संग चल पड़ती, अगर इरादे दृढ़ होते हैं!
आशान्वित मानस हो तुम्हारा, युग निर्माता तुम ही होगे!
योजनाओं का लाभ उठाकर, रोजगार उत्पन्न करोगे!
‘सेवक’ ही केवल न होगे, तुम विकास के पुरुष बनोगे!
अपने सत्कर्मों से देश का, दुनिया में तुम नाम करोगे!