चैप्टर – 1
अनिता — मां, क्या इस बार मैं राखी भइया के बगैर मनाउंगी? नरम सी आवाज में अनिता ने पूछा।
गोमती देवी — बेटा तुम्हें तो मालूम है कि तुम्हारा भइया अजीत आज से तीन महीने पहले…
यह कहते—कहते गोमती देवी की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा और उनकी आवाज भर्राने लगी। वे जोर—जोर से हिचकियां लेने लगीं और गले से शब्द निकलना चाह रहे थे पर होंठ साथ नहीं दे पा रहे थे। वे उदासी के साये से बुरी तरह से घिर गईं थीं।
अपनी मां के भीतर उमड़ रहे भावनाओं के ज्वार को अनिता ने महसूस कर लिया था और वह खुद को मां को दुखी करने के अपराधबोध से ग्रस्त समझने लगी। वह दबे सुर में बोली।
अनिता — मां, आपको बहुत दुख होता है न भइया के जाने का! आपकी तरह मैं भी उसे याद करके बेहद दुखी रहती हूं। दो साल पहले आंखों के इन्फेक्शन के कारण अपनी आंखों की रोशनी घटने से पहले तक ही मैंने उसकी सूरत देखी थी। वह सूरत जब भी याद आती है मन गमगीन हो जाता है। कभी—कभी तो ऐसा लगता है कि मैं भी अपने प्यारे भइया के पास…
गोमती देवी — बस आगे कुछ मत कहना। गोमती देवी अनिता को झिड़कते हुई बोलीं। बेटा! अजीत भले ही हम सबसे दूर चला गया हो पर उसकी यादें अब भी दिल में ताजा हैं। जो हुआ वह वापस तो नहीं आ सकता। कुदरत का यही दस्तूर है। तुम्हारे पापा ने यही बात तब मुझे समझाई थी तब अजीत ने, मेरे कलेजे के टुकड़े ने अस्पताल में दम तोड़ा था। आठ साल! सिर्फ आठ साल का था वह! यह भी कोई उमर थी उसके जाने की। निमोनिया बिगड़ने पर पूरी फैमिली ने उसे बचाने के लिए अस्पतालों और डॉक्टरों के जमकर चक्कर काटे थे। पापा कई—कई रातों तक सोते नहीं थे और उन्होंने जमकर पैसे खर्च किए थे उसके इलाज पर! पर होनी को कौन टाल सकता है। वही हुआ जिसका डर था। अब तो तुम हमारा सहारा हो। तुम तो अभी बारह साल की हो। तुम्हारे आगे तो पूरी जिंदगी पड़ी है। हम चाहते हैं कि तुम्हारी जिंदगी जल्द से जल्द रोशनी से भर जाए। पापा तुम्हारे भी इलाज की व्यवस्था करने के लिए पैसे जुटाने में लगे हुए हैं। देखो वह दिन कब आता है जब हमारी बिटिया की आंखों का आपरेशन होगा और उसको पूरी तरह से दिखाई देने लगेगा। बेटा कितनी भी मुसीबत आए हिम्मत का दामन मत छोड़ना। ईश्वर सब भला करेगा।
राखी से कोई दस दिन पहले मां—बेटी में ऐसी भावुकताभरी बातें हो रही थीं। यह संवाद शायद कुछ देर और चलता। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। गोमती देवी ने दरवाजा खोला तो देखा सामने अनिता के पापा योगेश तिवारी खड़े हैं। वे अमन इंटरप्राइजेस में अपनी कैशियर की ड्यूटी पूरी करके घर आ चुके थे।
गोमती देवी — ओह! आप! अच्छा किया समय पर घर आ गए। नहीं तो मुझे बेहद चिंता हो जाती।
योगेश — अरे भागवान! वो तो बॉस आज अच्छे मूड में थे और उन्हें अपना जन्मदिन मनाने बीबी—बच्चों के साथ शाम को जल्दी घर जाना था। अत: हमारी छुट्टी जल्दी हो गई। अब बस, जरा चाय—वाय पिला दो ताकि ताजगी आ जाए। दिनभर काम कर—करके थक गया हूं।
योगेश ने अपना बैग सोफे पर रखते हुए कहा। फिर वे सोफे के बगल में रखे बेड पर लेटी हुई अनिता के पास गए और उसके सिर को सहलाते हुए बोले।
योगेश — क्या कर रही है हमारी प्यारी बिटिया?
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )