आखिरी चैप्टर
योगेश और गोमती देवी — अरे! कोई हमारी बेटी को बचाओ! वह नदी में डूब रही है! !
यह सब देख—सुनकर आटो ड्राइवर आरिफ का दिमाग चला। वह दौड़कर आर्मी चेक पोस्ट पर पहुंचा और वहां तैनात जवानों को वाक्या बताया। उसकी बात सुनकर एक जवान अपने साथी सत्येंद्र यादव से बोला।
जवान— फौरन जाओ! सिविलियन की मदद करो।
इसके बाद सत्येंद्र नदी के पास एक रस्सा लेकर पहुंचा और उसने धार तथा स्थिति का जायजा लेकर नदी में छलांग लगा दी। रस्से का एक सिरा उसके हाथ में था और दूसरा सिरा आरिफ ने पास के एक पेड़ से बांध दिया। इस बीच, अनिता पानी में नीचे की तरफ जाने लगी। पर उसे पता नहीं क्या सूझा उसने हाथ—पैर मारते हुए कुछ देर के लिए अपनी सांस रोक ली। इससे वह पानी की सतह से कुछ ऊपर उछल गई। कुछ देर मशक्कत करने के बाद सत्येंद्र ने कभी डूबती कभी उतराती अनिता की चोटी पकड़ कर उसे स्थिर कर दिया। उस समय अनिता को ऐसा लगा मानो उसका भाई अजीत उसकी चोटी खींच रहा हो।
सत्येंद्र ने अद्भुत साहस दिखाते हुए अनिता को रस्सी का सहारा लेते हुए नदी से बाहर निकाला और उसकी जिंदगी बचा ली। इस काम में तिवारी दंपति भी अपनी समझ के अनुसार मदद करते रहे।
अपनी बेटी को सही—सलामत देखकर तिवारी दंपति की जान में जान आ गई। इसके बाद आटो ड्राइवर ने अपने आटो में रखा फर्स्ट एड बॉक्स अनिता के मम्मी—पापा को मुहैया कराया। सत्येंद्र और आरिफ ने अनिता को प्राथमिक चिकित्सा मुहैया कराई। कुछ देर में अनिता की हालत स्थिर हो गई। वह अपनी आंखें मिचमिचाते हुई कांपते स्वर में बोली।
अनिता — पापा! मम्मी! मैं ठीक हूं। ये आर्मी वाले भैया कौन हैं?
अपने लिए भैया शब्द का संबोंधन सुनते ही सत्येंद्र की आंखें भर आईं। वह बोला— बहन! बहुत दिनों से अपनी फैमिली से दूर रह कर यहां ड्यूटी बजा रहा हूं। यह शब्द सुनने के लिए मेरे कान तरस गए थे। मैं सत्येंद्र हूं। मेरी तैनाती पिछले छह महीनों से इसी चेक पोस्ट पर है। तुमने मुझे अपना भाई कहा तो मुझे लगा कि संसार की सबसे बड़ी दौलत मुझे मिल गई है।
सत्येंद्र और अनिता के बीच हुई बातचीत जब तिवारी दंपति ने सुनी तो उन्हें बहुत बड़ी राहत महसूस हुई। वे बोले— हमारी बेटी की जिंदगी में भइया की जो कमी हो गई थी वह तुम्हारे मिल जाने से पूरी हो गई है। इस बार तुम अनिता से ही राखी बंधवा लेना। अनिता को सुकून मिल जाएगा।
इस पर सत्येंद्र बोला— इस बार क्या, मैं तो हर बार इससे राखी बंधवाऊंगा ! संयोग देखिए मैं घर का इकलौता लड़का हूं और मेरे जीवन में बहन की कमी थी। पर आप लोग इधर आए, यह दुर्घटना हुई और मुझे अपनी बहन मिल गई। मैं बड़ा खुशनसीब हूं जो ईश्वर ने मेरी इच्छा पूरी कर दी।
बेटा! तुमने हम पर बहुत बड़ा अहसान किया है — हमारी बेटी की जिंदगी बचाकर! हम आरिफ भाई के भी शुक्रगुजार हैं जो उन्होंने भागम—भागकर तुम्हें यहां बुला लिया और बिटिया को फर्स्ट एड भी मुहैया कराने में कोई कोताही नहीं बरती। समझ में नहीं आता कि कैसे इस अहसान का बदला चुका पाऊंगा।
अंकल इसमें अहसान जैसा कुछ नहीं है। भगवान की जो इच्छा होती है, वही होता है। मैंने तो अपना फर्ज अदा किया है। सत्येंद्र की ये बातें सुनकर सब उसकी भूरि—भूरि प्रशंसा करने लगे। अनिता के हावभाव देखकर सत्येंद्र समझ गया कि उसे देखने में दिक्कत होती है। उसने कुछ सोचकर कहा — अंकल! आप अनिता की चिंता नहीं करें। राखी की दक्षिणा के रूप में मैं इसकी आंखों का इलाज भी करवा दूंगा।
बेटा! इतना कुछ करने की जरूरत नहीं है! तुम अपनी ड्यूटी पूरी मुस्तैदी से निभाओ। बाकी सब तो हम देख लेंगे। इतना कहकर तिवारी फैमिली अपने घर की ओर रवाना हो गई। अब अनिता बेहद खुश थी कि उसे राखी आने से पहले ही एक भैया मिल गया है।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )