रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम ” , लखनऊ
बासंती खुशी
है चैतु बसंती लहलहान दिनु भाग कपकपी जाडै कै
शीतल मंद सुगंध बहत पवन , जनु ललना लसी किंवाडै से
अमवा बौरन खिली कलियाँ , टेसू मुश्क्यान बगैचन मा
जमुनी कै बेरवा महकि उठा भरि उठी ममखी छत्तन मा ।।
खिली गे गुलाब चम्पा खिली गे मुश्क्यानी चमेली रंग भरी
न्योते दोनवन भरि प्रेम अरी भवरा रस लूटय कच्ची कली
फूली सरसो रस रंग लिए पीला रंग फैल गवा है ख्यातन मा
मह मह महकै धरती माता धनु देखि सुखी भा ख्यातन मा ।।
धनु देखि किसनवा ख्यातन मा निज करनी का फलु पाई गवा
मन मगन मस्त होइ घूमि रहा जस संत यज्ञ फलु पाई गवा
खेती से लदि गै धरती गेहूँ सरसो जौ चना अरहरी ते
मन मस्त किसान घरै चला बोला मुश्कानि घरैतिन ते ।।
अबकी धरती माँ किहिन कृपा अब न अटी आनजु बखारिन मा
धनु बरसा हमरे ख्यातन मा यहु पावा तुम्हरी भागिन मा
हसुली टड़िया नथुनी झुमका करधनी बनवाउब हम तुमका
मुलु गुस्सा कबो कियो न हमते मुलु मान्यो सदा हमार कहा ।।
स्वरचित मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित है ।
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ऐ बसंत अब न तुम जाना
ऐ बसंत अब न तुम जाना
जीवन का सुख दे कर मुझको
अब तुम मुझसे दूर न जाना
ऐ बसंत अब न तुम जाना ।
ऐ बसंत अब न तुम जाना ।।
हरे हरे नव पल्लव जैसा
मेरा जीवन खिला हुआ
पतझड को मै भूल गई
तेरा मेरे जीवन मे आना ।
ऐ बसंत अब न तुम जाना ।।
पहले मै कली बनी फिर
फूल के जैसा खिल जाना
जैसे आके भवरा बैठ गया
फिर मेरे अंदर छिप जाना
वैसे बसंत तुम छिप जाना
ऐ बसंत अब न तुम जाना
मेरे मधुकण को पाने को
भवरे तितली सारंग तरस रहे
तुम आ कर मधुकण लेलो मेरे
अपने संग तुम ले जाना ।
ऐ बसंत अब न तुम जाना ।।
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मनिहार
मनिहार आवा चुरिया लईकै
गोहरवै भौजी नई नई ।
रंग विरंगी साडी पहिने
आवै भौजी नई नई ।।
धीरे धीरे हाथ दबावै
मुस्कावै भौजी नई नई ।
भैया खड़े खड़े आखी देखावै
मुस्कावै भौजी नई नई ।।
पक्की पक्की चुरिया पहिनावै
खनकावै चुरिया नई नई ।
भरि भरि हाथ चुरिया पहिनावै
भौजी के हाथन मा चुरिया नई नई ।।
लटकत झटकत भौजी अंगना डोळे
चुरिया देखावै सबका नई नई ।
सासु जेठानी जरी जरी जावै
मन मुस्कावै भौजी नई नई ।।
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बहुत सुंदर रचना