रचनाकार : दिविक रमेश, नोएडा
मेरी दृष्टि में बालसाहित्य से तात्पर्य ऐसे साहित्य से है जो बालोपयोगी साहित्य से भिन्न रचनात्मक साहित्य होता है अर्थात जो विषय निर्धारित करके शिक्षार्थ लिखा हुआ न होकर बालकों के बीच का अनुभव आधारित रचा गया बाल साहित्य होता है । वह कविता, कहानी नाटक आदि होता है न कि कविता, कहानी, नाटक आदि के चौखटे अथवा शिल्प मे भरी हुई विषय प्रधान जानकारी, शिक्षाप्रद अथवा उपदेशपूर्ण सामग्री होता है। वह विषय नहीं बल्कि विषय के अनुभव की कलात्मक अभिव्यक्ति होता है। दूसरे शब्दों में कलात्मक अनुभव होता है । इसीलिए वह मौलिक भी होता है।
मोबाइल भी कहानी का विषय बन सकता है लेकिन तब जब वह रचनाकार के किसी अनुभव विशेष का अंग बन जाए। कोरी जानकारी उपयोगी हो सकती है लेकिन रचना बनने के लिए उसे ’रचनात्मक शर्तों’ से गुजरना होता हॆ और ’रचनात्मक शर्तों’ का आशय केवल कविता या कहानी के फॉर्म का उपयोग करना नहीं होता।
कोई जब कहता है कि ’कम्प्यूटर जी लॉक कर दीजिए तो वह कहने या अभिव्यक्ति की खूबसूरती है अन्यथा लॉक तो आदमी ही करता है। यहां मुझे रचनाकार कल्पना कुलश्रेष्ठ का महत्त्वपूर्ण चिंतन भी ध्यान में आ रहा है।उन्होंने अपने अंग्रेजी में लिखे एक लेख ‘राइटिंग साइंस फिक्शन फॉर चिल्ड्रन’ में जोर देकर विज्ञान कथा और विज्ञान लेख का भेद किया है। उन्होंने माना है कि विज्ञान कथा लेखन बच्चों को विज्ञान सिखाने के लिए नहीं होता, उसके लिए विज्ञान लेख होते हैं। विज्ञान कथा लेखन बच्चों में वैज्ञानिक स्वभाव बनाने के लिए होता है।
उनके शब्दों में –“ It should kept in mind that it is not the job of science fiction to teach science for the kids. There are science articles for that purpose. Rather, science fiction is actually there to help develop scientific temperament and a genuine interest for science among children. Writers should not let the scientific theme be too complicated and hard to understand for a child.” (Writing Science Fiction For Children, Journal of Scientific Temper, Vol.7(3&4), Jul-Dec, 2019).
वस्तुत आज वैज्ञानिक सोच या दृष्टि पर बल दिया जाता है और वह आज के हिंदी के उत्कृष्ट बालसाहित्य में बराबर मिलती है – भले ही वह राजा-रानी, परियों, पशु-पक्षियों आदि किन्हीं से भी जुड़े अनुभवों से प्रेरित क्यों न हो। मेरी दृष्टि में बालसाहित्य से तात्पर्य ऐसे साहित्य से है जो बालोपयोगी साहित्य से भिन्न रचनात्मक साहित्य होता है अर्थात जो विषय निर्धारित करके शिक्षार्थ लिखा हुआ न होकर,बड़ों के रचनात्मक साहित्य की तरह, बालकों के बीच का अनुभव आधारित रचा गया बाल साहित्य होता है ।
वह कविता, कहानी नाटक आदि होता है न कि कविता, कहानी, नाटक आदि के चौखटे अथवा शिल्प मे भरी हुई विषय प्रधान जानकारी, शिक्षाप्रद सामग्री होता है। वह विषय नहीं बल्कि विषय के अनुभव की कलात्मक अभिव्यक्ति होता है । दूसरे शब्दों में कलात्मक अनुभव होता है । इसीलिए वह मौलिक भी होता है ।
आज का श्रेष्ठ बालसाहित्यकार पहले की सोच के अनेक बालसाहित्यकारों से इस दृष्टि से भी भिन्न है । सूची तो लंबी हो सकती है लेकिन अपनी बात के समर्थन में मैं कुछ रचनाकारों और कृतियों का उल्लेख करना चाहूँगा- बाल उपन्यास रंगीली, बुलेट और वीर ( समीर गांगुली) , संजीव जायसवाल का बाल उपन्यास होगी जीत हमारी , मिश्री मौसी का मटका (सुधा भार्गव), मधु पंत की कृति टुँइया’ आदि। प्रदीप शुक्ल की कविताएँ, दिशा ग्रोवर कविताएँ (शब्दों की शरारत) और बाल नाटक (बाघू के किस्से) आदि का भी उल्लेख कर सकता हूँ।
(क्रमशः)