रचनाकार : दिविक रमेश, नोएडा
हिन्दी में आज उत्कृष्ट बालसाहित्य लिखा भी जा चुका है और लिखा भी जा रहा है। लेकिन, बहुत ढर्रेदार, आज के संदर्भ में उबाऊ और औसत साहित्य की भी कम भरमार नहीं है। अच्छी बात यह भी है कि अब हिंदी साहित्य के पटल पर भी बालसाहित्य के सैद्धांतिक पक्ष पर गम्भीर चिंतन उपलब्ध होने लगा है।
बावजूद उपर्युक्त और जुड़ी कुछ अन्य सच्चाई के, विडम्बना ही कही जाएगी कि बाल साहित्य का नाम सुनते ही कितने ही बड़े विद्वान तक खुद को ‘बाल’ तक कैद कर लेते हैं, साहित्य को छोड़ देते हैं। वे भूले रहना चाहते हैं कि बालसाहित्य में ‘साहित्य’ अधिक महत्त्वपूर्ण है। असल में वे बालसाहित्य को मात्र बालक की चीज मानकर बालसाहित्य को न गम्भीरता से लेते हैं और न ही उसे ‘सहित्य’ के समकक्ष महत्त्वपूर्ण मानने को तैयार दिखते हैं। इस तरह की सोच का नि:संदेह आज प्रतिरोध भी शुरु हो चुका है
यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि बालसाहित्य भी सबसे पहले ‘साहित्य’ ही है। इसमें वे सब खूबियाँ, जरूरतें आदि हैं जो’ साहित्य’ के लिए अपेक्षित होती हैं या मानी जाती हैं। माना कि यह सबसे पहले बालक के लिए होता है अर्थात बालक की पहुँच में पहुँचने के लिए होता है, लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि पढ़े जाने की दृष्टि से यह केवल बालक तक ही सीमित रखने की वस्तु है। बालसाहित्य बड़ों के द्वारा लिखा जाता है, प्रकाशित किया जाता है, बेचा जाता है, मूल्यांकित किया जाता है इत्यादि, लेकिन वह बड़ों के लिए भी होता है, उनके पढ़ने के लिए, आनंद लेने के लिए, गुनने के लिए। यही कारण है कि आज के बालसाहित्य के पास नया चिंतन भी है और खुद के लिए नये प्रतिमान भी।
मैं अपने लेखों में, लगभग प्रारम्भ से ही दोहराता रहा हूँ कि बालसाहित्य हर आयुवर्ग के लिए होता है। खासकर माता-पिता, अभिभावकों, अध्यापकों आदि को तो उससे गहरे से जुड़ना चाहिए ताकि बच्चों को बालसाहित्य के प्रति जागरूक कर सकें और साथ ही उससे वह सब भी ग्रहण कर सकें जो ‘साहित्य’ से ग्रहण किया जाता है। फिर कह दूँ कि बालसाहित्य साहित्य ही होता है। ऐसा नहीं है कि मेरी यह बात या सोच केवल मेरी है। और भी बहुत हैं जिन्होंने अपने-अपने ढंग से, मेरी निगाह में सही, इस बात या सोच को अपने-अपने तरीके से कहा है।
मुझे याद हो आई है स्कॉटिश लेखक जॉर्ज मैकडोनाल्ड ( 10 दिसम्बर 1824-18 सितम्बर 1905) की। उन्होंने परियों की कहाँइयाँ लिखी थीं। सब जानते हैं कि वे आधुनिक फंतासी साहित्य के क्षेत्र में अग्रणी स्थान रखते थे। उनके साथी लेखक लुईस कैरोल थे जिनके वे गुरु भी थे। जब जॉर्ज मैक्डोनल्ड से जब पूछा गया कि क्या बालसाहित्य बच्चों के लिए होता है अथवा क्या आप बालसाहित्य सृजन केवल बच्चों के लिए क्रते हैं तो उन्होंने अपनी तरह से अपने शब्दों में बालसाहित्य को किसी भी आयु के आदमी के लिए माना था। उनके शब्दों में कहूँ तो, “ I write not for children, but for the child-like, whether they be of five, or fifty, or seventy-five.” स्पष्ट है कि बालसाहित्य बाल-मन के लिए होता है या कहूँ कि वह बाल-मन की समझ और उसके आनंद के लिए होता है।
हाल ही में (26 मार्च, 2024 को) मुझे नागेश पांडेय संजय ने यह सुखद सूचना भी दी है जिसकी ओर मेरा ध्यान नहीं जा सका था कि राष्ट्रबंधु जी ने भी लिखा है, “बाल साहित्य साझा साहित्य है।“ और यह भी कि बाल साहित्य को साझा न मानने के कारण उसके प्रति उपेक्षा शुरु हो जाती है।
(क्रमशः)