मुश्किलों से घिरे गौतम की ख़ुशी का आज कोई ठिकाना नहीं था जब उसे पता चला कि भोपाल के बहुत बड़े कॉर्पोरटे समूह विधाता ग्रुप से इंटरव्यू के लिए बुलाया गया है। बस फिर क्या था वह तुरंत अपना बायोडाटा लेकर सही समय पर विधाता ग्रुप के ऑफिस पहुँच गया। लेकिन यह क्या जब इंटरव्यू के लिए उसकी बारी आयी और इंटरव्यू रूम में घुसते ही इंटरव्यू बोर्ड के एक मेम्बर ने शुरू में ही ऐसा सवाल पूछा जिसे सुनकर उसका दिलोदिमाग हिल गया।
बोर्ड मेम्बर – ‘कंपनी का एक इंपोर्टेंट प्रोजेक्ट चल रहा है। ठीक उसी समय आपके पिताजी की मृत्यु हो जाती है, तो आप क्या करेंगे पिताजी की अंत्येष्टि मे जाएंगे या कंपनी का प्रोजेक्ट पूरा करने में जुटे रहेंगे।’
यह सुनते ही गौतम के तन—मन में मानो आग लग गई और उसका पारा हाई हो गया। उसका मन हुआ कि टेबल पर रखा लैंडलाइन फोन सवाल दागने वाले के मुंह पर दे मारे। पर उसे नौकरी की जरूरत थी। उसके बुजुर्ग पिताजी कई दिनों से बेड—रिडेन थे। वे तीसरे स्टेज के कैंसर से जूझ रहे थे। फिर गौतम को अपनी छोटी बहन केतकी का ख्याल आया। उसके हाथ पीले करने का वक्त हो रहा था। उसका भाई गोविंद 12वीं की पढ़ाई पूरा करके कॉलेज की दहलीज पर पहुंचने वाला था। घर में दो और बुजुर्ग थे — गौतम की माताजी और दादी जी। इन सबकी जिम्मेदारी का बोझ गौतम के सिर पर ही आने वाला था। यह सोचकर गौतम अंदर तक हिल उठा। पिताजी की मृत्यु की कल्पना करके उसके रोंगटे खड़े हो गए। इतने मुश्किल हालात से गुजर रहे गौतम के मन में इंटरव्यू लेने वाले पर बेहद क्रोध आ रहा था। लेकिन फिर उसने सोचा कि गरज उसकी है। अगर उसे यह नौकरी नहीं मिली तो गृहस्थी की गाड़ी पटरी से उतर जाएगी। उसने एक गिलास ठंडा पानी गटका जिससे मन कुछ शांत हुआ। फिर रुआंसा होकर बोला ।
गौतम – ‘मैं कंपनी का प्रोजेक्ट पूरा करने में जुटा रहूंगा।’
यह सुनते ही इंटरव्यू लेने वाले मेंबर और चैयरमेन फौरन उससे हाथ मिलाने के लिए लपके और बोले ।
बोर्ड मेम्बर – ‘गौतम यू आर सेलेक्टेड।’
दूसरा बोर्ड मेंबर – ‘गौतमजी मैं ऐसा सवाल पूछने के लिए माफी चाहता हूं। ईश्वर आपके पिता को लंबी आयु दे। पर हम यह देखना चाहते थे कि आप मुश्किल से मुश्किल हालात में कैसे कंपनी का काम संभालोगे। दरअसल बायोडाटा से यह कतई अंदाज नहीं लगता कि आप किस सिचुएशन में क्या रिएक्शन दोगे। इसलिए इतना कड़ा सवाल हमने आपसे पूछा। आप इस परीक्षा में खरे साबित हुए। पर हम बताना चाहेंगे कि हमारी कंपनी के पॉलिसी एम्पलाई फ्रेंडली है। हम कर्मचारी के मुश्किल हालात में फंसने पर इंसानियत के नाते उसे काम में नहीं उलझाते बल्कि उस काम के लिए सब—आर्डिनेट्स या अन्य सहकर्मी को कह देते हैं। इससे कंपनी का काम भी नहीं रुकता और कर्मचारी का काम भी नहीं अटकता।’
यह सुनते ही गौतम का सारा गुस्सा उतर गया। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वह बोला ।
गौतम – ‘थैंक्यू सर!’ अब उसके सिर से तमाम चिंताओं का बोझ उतर चुका था।
(काल्पनिक कहानी )