चैप्टर—4
गहने—जेवर, रुपये —पैसे आदि से दान पेटी देखते ही देखते लबालब भर गई। बाबा तिरछी नजरों से इस दान का अवलोकन कर रहे थे।
ज्यो—ज्यो रात गहरा गई भक्त जन अपने हृदय में आने वाले कल के प्रति आशंका का भाव लिए हुए अपने—अपने घरों की ओर प्रस्थान करने लगे। कुछ देर के बाद पूरा वातावरण रहस्य की चादर ओढ़कर सो गया।
मुखिया एवं शचींद्र इस घटना से विस्मित होकर मंदिर के पास की झाड़ियों की ओट में बैठे थे। कुछ देर बाद मंदिर से एक चेला बाहर निकला औरचारों ओर का मुआयना कर मंदिर में घुस गया।
शींद्र के मन में उत्सुकता हुई कि देखा जाए कि बाबा एवं उनके चेले मंदिर में क्या गुल खिला रहे हैं। ऐसे में उसने झाड़ियों से निकलकर मंदिर की एक अधखुली खिड़की पर मोर्चा संभाल लिया।
शवीदं ने साधु बाबा को फुसफुसाहट भरी आवाज में यह कहते सुना— इस गांव से हमें काफी माल हाथ लगा है। कल सुबह इससे पहले भक्तजन पहुंचे उसके पहले ही हमें प्रस्थान कर देना चाहिए।
शचींद्र ने खिड़की से चोरी—छिपे बाबा की सुनी हुई बात मुखिया को बताई तो उसे सहसा विश्वास नहीं हुआ। लेकिन शचीेद्र के जोर देने पर उसने यह मान लिया कि वास्तव में बाबा के मन में कुछ और ही है। शचींद्र ने मुखिया से कहा कि वह पास ही पुलिस थाने पहुंच जाए और पुलिस को बुला कर ले आए। मुखिया मदद मांगने के लिए झाड़ियों से निकलकर पुलिस थाने की ओर दौड़ पड़ा।
कुछ देर बाद शचींद्र ने बाहर से मंदिर का दरवाजा बंद कर दिया ताकि साधु बाबा और उसके चेले बाहर नहीं निकल सकें। दरवाजे की आहट से बाबा और उसके चेले चौंक उठे। शचींद्र ने अपने कैमरे से मंदिर के अंदर के दृश्य कैद कर लिए। उसने जो तसवीरें खींचीं उनसे जाहिर हो रहा था कि बाबा और उसके दोनों चेले मंदिर में न केवल मदिरापान कर रहे हैं बल्कि वहां इकट्ठे हुए माल—असबाब को भी पोटलियों में भरकर ले जाने की तैयारी में हैं।
जैसे ही मुखिया पुलिस टीम के साथ मंदिर में पहुंचा तो शचींद्र भागते हुए टीआई दीपक कुशवाहा के पास पहुंचा और उन्हें अपने कैमरे में कैद हुए दृश्यों को दिखाया। ये दृश्य देखकर दीपक ने कहा — यहां तो बाबा और उनके चेलों ने बहुत बड़ी गड़बड़ मचा रखी है। हमे उन्हें पकड़ना ही होगा।
इसके बाद टीआई ने अपनी टीम को पूरे मंदिर को घेरने का आदेश दिया और लाउडस्पीकर से कहा — बाबा! अलखनिरंजन अपने चेलों के साथ हाथ उपर करके बाहर निकल आओ। वरना शूट कर दिए जाओगे।
पहले तो बाबा ने टीआई के आदेश की अवहेलना करने की हिम्मत की तो टीआई ने अपने दो कांस्टेबलों को हवाई फायरिंग करने के आदेश दिए। पुलिस की बंदूकों की गरज सुनकर बाबा और उनके चेलों के होश उड़ गए। वे मंदिर से बाहर निकलने के लिए जोरों से दरवाजा भड़भड़ाने लगे। टीआई और शचींद्र ने हिम्मत दिखाते हुए दरवाजे की बाहर से बंद कुंडी खोली। कुंडी खुलते ही बाबा और उसके चेलों ने धक्का—मुक्की करते हुए भाग निकलने का प्रयास किया पर टीआई और उनके साथ आए कांस्टेबलों ने उनके भागने की कोशिश नाकाम कर दी । उन्होंने बाबा और उनके चेलों को काबू में कर एक पेड़ से बांध दिया। इस बीच, मंदिर में हो रहे हो हंगामे और फायरिंग की आवाज सुनकर बड़ी संख्या में ग्रामीण इकट्ठे हो गए। उनमें से कुछ ने आक्रोश में भरकर पुलिस वालो वापस जाओ! के नारे लगाए।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)