चैप्टर—2
ये सब जब मंदिर पहुचे तो देखा कि साधु बाबा अपने चेलों के साथ गांव की ओर मुंह करके जोर—जोर से ये नारे लगा रहे हैं और शंख, घडियाल और घंटा बजा रहे हैं। जब काफी भीड़ जमा हो गई तो साधु ने उल्लासित स्वर में गांव वालों को बताया— कमालपुरा धन्य है! यहां के निवासी धन्य हैं! सज्जनों आपको जानकर प्रसन्नता होगा कि इस पावन भूमि पर हमारे अराध्य देव शिव ने जिस प्रकार समुद्र मंथन के समय विष पीकर कंठ को नीला कर लिया था ठीक उसी प्रकार आज आपके गांव में उन्होंने स्वयं ही अपनी प्रतिमा का रंग बदलकर नीला कर लिया है।
सब ग्रामीणों ने आश्चर्य देखाकि सच में शिव का रंग सफेद की जगह नीला हो गया है। यह चमत्कार देखकर वहां मौजूद तमाम ग्रामीण शंकरजी एवं बाबा की जय—जयकार करने लगे। उन्होंने खूब चढ़ावा भी चढ़ाया।
अगले दिन आसपास के सभी गांवों में इस चमत्कार की चर्चा फैल गई। जो भी ग्रामीण इस चमत्कार के बारे में सुनते वे फौरन मंदिर की ओर चल पड़ते। धीरे—धीरे न केवल कमालपुरा बल्कि अन्य गांवों के लोग भी शिवमंदिर में आने लगे। मंदिर की आय और प्रतिष्ठा में आशातीत वृद्धि होने लगी।
मुखिया इन सभी बातों से काफी चमत्कृत था और स्वयं को कमालपुरा का निवासी होने में काफी गर्व महसूस कर रहा था। उससे जब नहीं रहा गया तो उसने कानपुर निवासी अपने दोस्त शचींद्र से फोन पर बात की।
मुखिया — शचींद्र तुम पत्रकार हो। चटपटी खबरें ढूंढते रहते हो। हमने तुम्हारे लिए भी एक विशेष खबर खोजी है।
शचींद्र — वह क्या?
मुखिया — यही कि हमारे गांव में बहुत पहुंचे हुए साधु अलखनिरंजन आए हुए हैं। उनके आने के साथ ही कमालपुरा में चमत्कार होने लगे है। इससे न केवल हमारे गांव का बल्कि आसपास के गांव का भी वातावरण धर्ममय हो गया है।
शचींद्र — भई, ऐसा क्या कमाल हो गया कमालपुरा में?
मुखिया— वही तो बता रहा हूं। मालूम है इन तपस्वी बाबा के चमत्कार से गांव में सफेद रंग की शिवजी की मूर्ति नीले रंग की हो गई है। यदि तुम्हें यह चमत्कार देखना है तो तुरंत कमालपुरा आ जाओ।
शचींद्र को यह मामला काफी रोचक लगा। अत: वह बोला — मैं कल सुबह ही कमालपुरा आ जाउंगा और करूंगा शिवजी तथा बाबा के चमत्कार के दर्शन!
शचींद्र के गांव पहुंचने पर मुखिया ने उसका हार्दिक स्वागत किया। शचींद्र ने शाम को ही मुखिया के साथ शिव मंदिर जाने का निश्चय कर लिया।
शाम को जब शचींद्र मुखिया के साथ मंदिर पहुंचा तो उसने देखा कि भक्तजन काफी तन्मयता के साथ भजन—कीर्तन में लगे हुए हैं। साधु बाबा गांजे की दम लगाकर खांस रहे हैं और दो चेले उके पैर दबाने में व्यस्त हैं। मंदिर के दरवाजे के अंदर एक दानपेटी रखी हुई है जिस पर लाल रंग से लिखा हुआ था — श्रद्धालु दान कृपया पेटी में डालें। मंदिर के अंदर कुछ पोटलियां भी रखी हुई हैं जिनके बारे में मुखिया ने बताया कि ये सब साधु बाबा अपने साथ लाए हैं। उन पोटलियों में क्या था, यह साधु बाबा और उनके चेलों के अलावा शायद किसी को पता नहीं था।
कुछ देर बाद शचींद्र ने अपने मोबाइल फोन के कैमरे से वहां के चित्र लिए फिर अपना काम खत्म कर मंदिर के बाहर निकलने को तैयार हो गया।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)