चैप्टर—1
चिलचिलाती दोपहर में चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। परंतु कुछ देर बाद कमालपुरा में पदचापों और भक्तजनों के जयजयकार से वातावरण गूंज उठा। मुखिया ने सोचा कि पता नहीं आज कौन पधार रहा है। वह अपने घर से बाहर निकला ही था कि उसने देखा कि उसके साथी पास के रास्ते से एक साधु अपने दो चेलों के साथ गुजर रहे हैं। साधु को देखकर मुखिया के मन में उनके प्रति श्रद्धा का भाव उमड़ आया।
कुछ दूर जाने के बाद उसने एक आदमी से पूछा — भई, ये महाराज कौन हैं? यै कहां से आ रहे हैं?
उस आदमी ने प्रसन्नता भरे स्वर में कहा — इन्हें नहीं जानते? सब लोग इन्हें बाबा अलख निरंजन कहते हैं। बड़े पहुंचे हुए साधु बाबा हैं, हिमालय में दो सौ वर्षों की तपस्या के बाद इनका प्रथम आगमन हमारे ही गांव में हुआ है।
मुखिया ने देखा कि उनका प्रिय मित्र रमेंद्र भी भक्तजनों की टोली में शामिल है। रमेंद्र ने उल्लासित स्वर में मुखिया को बताया कि भई, ये महाराज हमारे गांव के शिव मंदिर में अपनी धूनी रमाएंगे और प्रसाद भी बंटेगा। तुम आओगे न?
मुखिया कुछ देर चुपचाप खड़ा रहा। फिर कुछ सोचकर बोला— तुम सब चलो। मैं अभी आया।
साधु बाबा अपने चेलों एवं भक्तजनों के सामने कुछ देर ठहरे। फिर उन्होंने सबको शिव मंदिर की तरफ प्रस्थान करने को कहा। फिर सबलोग मंदिर प्रांगण में पहुंच गए और वहां भजन—कीर्तन करने लगे— हर हर शंभू ! इस भजन—कीर्तन के बाद कब दोपहर से शाम हो गई लोगों को पता ही नहीं चला। धीरे—धीरे रात की कालिमा ने पैर पसारने शुरू कर दिए।
जब रात बढ़ने के साथ अन्य भक्तजन अपने—अपने घरों की तरफ जाने लगे और भजन—कीर्तन के सुर मंद पड़ने लगे तो मुखिया ने सोचा कि क्यों न मंदिर में बैठकर साधुबाबा की संगति का पुण्य लिया जाए। यह सोचकर वह मंदिर की ओर चल पड़ा। मंदिर के प्रांगण में कुछ भक्त जन बैठकर भजन गाकर आसपास के वातावरण को धर्ममय किए हुए थे। मुखिया सम्मोहित सा होकर उन भक्तजनों के बीच बैठ गया।
गांव के कुछ लेकर खाना वगैरह खाकर आने के बाद भक्तजनों के साथ बैठ गए और भजन—कीर्तन ने और जोर पकड़ लिया। कुछ भक्तजन आनंदित होकर झूम रहे थे। गांजे की खुशबू पूरे वातवरण को मादक बना रही थी।
रात के 11 बज चुके थे। अत: कई भक्तजनों ने अपने—अपने घरों को प्रस्थान करना उचित समझा। जब पूरा प्रांगण खाली हो गया तो मुखिया भी चलने के लिए उठा। वातावरण रात्रि की निस्तब्धता में डूब चुका था। केवल कुछ कुत्ते भौं—भौं करके अपनी ड्यूटी पूरी कर रहे थे। मुखिया ने भी रात गहराते देख अपने घर जाना उचित समझा।
मध्यरात्रि के बाद जब पूरा गांव नींद के आगोश में चला गया तो अचानक मंदिर से हर—हर महादेव और जय बम भोले के नारों की आवाजें आने लगी। इन नारों की आवाज इतनी तेज थी कि अधिकतर गांव वाले जग गए और उनमें से कुछ तो बिस्तर छोड़कर मंदिर की आरे चल पड़े। मुखिया भी इन जाग चुके ग्रामीणें में शामिल था। ये सब जब मंदिर पहुचे तो देखा कि साधु बाबा अपने चेलों के साथ गांव की ओर मुंह करके जोर—जोर से ये नारे लगा रहे हैं और शंख, घडियाल और घंटा बजा रहे हैं।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)